Allahabad High Court News: अगर कोर्ट में केस जारी रहने के दौरान पति या पत्नी में से कोई अपनी सहमति वापस ले ले तो क्या तब भी कोर्ट तलाक की डिक्री जारी कर सकती है. इस मुद्दे पर हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है.
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Allahabad High Court order on Hindu couple divorce: अगर कोई दंपति कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल करे और पति- पत्नी दोनों उस पर राजी हों लेकिन बाद में कोई एक पक्ष कोर्ट में अपनी सहमति वापस ले ले तो क्या कोर्ट वह तलाक मंजूर कर सकती है? यह पेचीदा सवाल इलाहाबाद हाई कोर्ट में शनिवार को तब सामने आया, जब अदालत ने ऐसे ही एक मुकदमे में अहम टिप्पणी करते हुए तलाक खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि कहा कि एक हिंदू विवाह को अनुबंध की तरह भंग नहीं किया जा सकता. शास्त्र सम्मत विधि आधारित हिंदू विवाह को सीमित परिस्थितियों में ही भंग किया जा सकता है और वह भी संबंधित पक्षों द्वारा पेश साक्ष्यों के आधार पर.
दोनों की सहमति बने रहे पर ही तलाक संभव- इलाहाबाद हाई कोर्ट
जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस दोनाडी रमेश की पीठ ने विवाह को भंग किए जाने के खिलाफ एक महिला की अपील स्वीकार करते हुए कहा, 'पारस्परिक सहमति के बल पर तलाक मंजूर करते समय भी निचली अदालत को तभी विवाह भंग करना चाहिए था जब आदेश पारित करने की तिथि को वह पारस्परिक सहमति बनी रही.'
कोर्ट सहमति पर टिके रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकती
अदालत ने कहा, ‘यदि अपीलकर्ता का दावा है कि उसने अपनी सहमति वापस ले ली है और इस तथ्य को रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया गया है तो निचली अदालत अपीलकर्ता को मूल सहमति पर कायम रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकती.’ पीठ ने कहा, ‘ऐसा करना न्याय का उपहास होगा.’
क्या था तलाक का पूरा मामला?
महिला ने 2011 में बुलंदशहर के अपर जिला जज द्वारा पारित निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दाखिल की थी. अपर जिला जज ने महिला के पति की ओर से दाखिल तलाक की अर्जी मंजूर कर ली थी. संबंधित पक्षों का विवाह दो फरवरी, 2006 में हुआ था. उस समय, पति भारतीय सेना में कार्यरत था. पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी 2007 में उसे छोड़ कर चली गई और उसने 2008 में विवाह भंग करने के लिए अदालत में अर्जी दाखिल की. पत्नी ने अपना लिखित बयान दर्ज कराया और कहा कि वह अपने पिता के साथ रह रही है.
मध्यस्थता के दौरान पत्नी का बदल गया विचार
मध्यस्थता की प्रक्रिया के दौरान, पति, पत्नी ने एक दूसरे से अलग रहने की इच्छा जताई. हालांकि, वाद लंबित रहने के दौरान पत्नी ने अपना विचार बदल लिया और अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों से इनकार किया जिसके बाद दूसरी बार मध्यस्थता की गई, लेकिन पति द्वारा पत्नी को साथ रखने से इनकार करने की वजह से यह मध्यस्थता भी विफल रही.
दंपति के 2 बच्चे भी हुए लेकिन दिल नहीं मिल पाए
हालांकि, सेना के अधिकारियों के समक्ष मध्यस्थता में पति पत्नी साथ रहने को राजी हो गए और इस दौरान इनके दो बच्चे भी हुए. महिला के वकील महेश शर्मा ने दलील दी कि ये सभी दस्तावेज और घटनाक्रम, तलाक के मुकदमे की सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष लाए गए, लेकिन निचली अदालत ने महिला की ओर से दाखिल प्रथम लिखित बयान के आधार पर तलाक की याचिका मंजूर कर ली.
(एजेंसी भाषा)