Maharashtra Muslims: महाराष्ट्र के अंदर सभी सियासी पार्टियां मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने में लगी हुई हैं. चुनावों में मुसलमान भी एक अहम किरदार अदा करता है. चुनाव में देखा जा रहा है कि सभी पार्टियां मुसलमानों को अपना बताने की होड़ में लगी हुई हैं लेकिन वो असल में मुसलमानों की कितनी हितेशी हैं आज ये इस रिपोर्ट में जानने की कोशिश करेंगे.
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Maharashtra Muslims: महाराष्ट्र में 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनाव से पहले सभी पार्टियों ने वोटर्स को अपनी तरफ खींचने के लिए तमाम जोर लगाए हुए हैं. चुनाव जीतने के लिए ताना-बाना बुना जा रहा है. पार्टी लाइन पर नए नारे गढ़े जा रहे हैं. ध्रुवीकरण से लेकर वर्गीकरण हो रहा है. मराठा अस्मिता से लेकर मुसलमानों तक को साधा जा रहा है. महाराष्ट्र की राजनीति में रणनीति बनाने के दो धुर साफ हैं. एक धड़ा जो मुसलमानों का वोट चाहता है तो एक धड़ा जो हिंदुत्व की धार देता है.
मुसलमानों के रहनुमा बनने का दावा ठोकने वाली पार्टियां मुसलमानों की कितनी सगी हैं? मुसलमानों की बात करने वाले नेताओं का चाल चरित्र और असली चेहरा आज हम आपको बताने की कोशिश करेंगे. क्या सच में जो नेता मुसलमानों को अपना बताते हैं वो मुसलमानों के हितैशी हैं? इसका फैक्ट चेक करेंगे और इसी के साथ सवाल उठाएंगे कि आखिर महाराष्ट्र का मुसलमान किसके भरोसे है. मुसलमानों का जिक्र बातों बातों में हर कोई कर रहा है, जो मुसलमानों के वोट पर आश्रित हैं वो भी और जो नहीं हैं वो भी. लेकिन क्या सच में महाराष्ट्र के मुसलमानों के बारे में कोई सोचता है? सवाल बहुत बड़ा है.
➤ 'एक रहेंगे तो नेक रहेंगे' का नारा देने वाली पार्टी बीजेपी ने महाराष्ट्र के चुनाव में भी मुस्लिम उम्ममीदवार नहीं उतारा है.
➤ अजित पवार की NCP की तरफ से भी सिर्फ पांच मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में हैं.
➤ वहीं शिंदे गुट की शिवसेना ने सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया है.
➤ महाविकास अघाड़ी की बात करें तो कांग्रेस ने भी महज आठ मुस्लिम उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है.
➤ शिवसेना उद्धव ने भी एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है.
➤ वहीं शरद पवार गुट की शिवसेना ने भी महज एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारा है.
➤ इस चुनाव में सबसे ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार AIMIM ने खड़े किए हैं. 16 सीटों पर चुनाव लड़ रही AIMIM के सभी उम्मीदवार मुस्लिम हैं.
नेता मंच पर मुसलमानों के हित की बात कर रहे हैं, खुद को मुसलमानों का हितैशी बता रहे हैं, लेकिन आंकड़े तो बता रहे हैं कि महाराष्ट्र में टिकटों के हिसाब से मुसलमानों की हिस्सेदारी नाम मात्र है. ऐसे में मुसलमान अपना मानें तो किसे मानें? वोट दें तो किसे दें, भारी धर्मसंकट पैदा हो गया है. मुसलमानों के वोट के सहारे पार्टियां महाराष्ट्र चुनाव में जीत का सपना तो देख रही है लेकिन मुस्लिम कैंडिडेट्स पर पार्टियों को भरोसा नहीं है.
मुसलमानों पर राजनीतिक पार्टियों ने भरोसा नहीं जयाता लेकिन आंकड़े तो ये भी बताते हैं कि महाराष्ट्र की 120 सीटें ऐसी हैं. जहां मुसलमानों के भरोसे ही चुनाव जीता जा सकता है. इनमें 60 सीटें ऐसी हैं जहां 15 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम वोटर हैं. 38 सीट पर 20 प्रतिशत से ज्यादा वोटर हैं. जबकि 9 सीटों पर 40 प्रतिशत से ज्यादा वोटर मुसलमान हैं और 5 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमानों का वोट प्रतिशत 50 फीसदी से ज्यादा है. इन आंकड़ों के बाद सवाल ये उठता है कि जो पार्टियां मुसलमानों का वोट मांगती हैं, वो उन्हें टिकट क्यों नहीं दे रही हैं?
महाराष्ट्र में मुसलमानों की स्थिति का अंदाजा इन आंकड़ों से भी लगाया जा सकता है. 2011 की एक रिपोर्ट बताती है कि एक तिहाई मुसलमानों की वार्षिक घरेलू आय 10,000 रुपये से कम है. जबकि 24.4% की आय 10,001 से 20,000 रुपये के बीच है, 7.5% की आय 20,001 से 30,000 रुपये के बीच, 3.8% की आय 30,001 से 40,000 रुपये के बीच है. सिर्फ 1% लोग ऐसे हैं जिन्होंने 40,001 से 50,000 रुपये के बीच अपनी आय बताई है. इसके अलावा 5.6 फीसद लोग ऐसे हैं जिन्होंने 50,000 रुपये से अधिक की आय अर्जित की है.
महाराष्ट्र में मुसलमानों की स्थिति देखकर राहत इंदौरी का एक शेर याद आता है.
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है