वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घनघोर जंगलों के बीच इन दो मंदिरों में श्रावणी मेले की तैयारी पूरी
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वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घनघोर जंगलों के बीच इन दो मंदिरों में श्रावणी मेले की तैयारी पूरी

खबर पश्चिम चंपारण जिला के बगहा से है जहां इंडो नेपाल सीमा पर स्थित तमसा, सोनभद्र और नारायणी के संगम तट पर बसा वाल्मीकिनगर न सिर्फ अपनी नैसर्गिक सुंदरता बल्कि धार्मिक मान्यताओं के मामले में भी समृद्ध है.

(फाइल फोटो)

बगहा : खबर पश्चिम चंपारण जिला के बगहा से है जहां इंडो नेपाल सीमा पर स्थित तमसा, सोनभद्र और नारायणी के संगम तट पर बसा वाल्मीकिनगर न सिर्फ अपनी नैसर्गिक सुंदरता बल्कि धार्मिक मान्यताओं के मामले में भी समृद्ध है. यहां ऐतिहासिक जटाशंकर व कौलेश्वर मंदिर धर्मावलंबियों के लिए विश्व आस्था का केंद्र माना जाता है. इसीलिए तो बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी हर साल यहां खास तौर पर आकर पूजा अर्चना करते हैं और मत्था टेकने के साथ प्रवास करते हैं. सीएम नीतीश के खास पसंदीदा जगहों में शुमार पर्यटन नगरी वाल्मीकिनगर है.

पवित्र मास सावन के पहले दिन से ही यहां भक्तों की भीड़ लग जाती है जिसके लिए आज तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. तमसा सोनभद्र और नारायणी गण्डक नदी के संगम तट पर शिवभक्त स्नान कर ऐतिहासिक जटाशंकर और कौलेश्वर मंदिर में जल चढ़ाकर भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं.

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इस मंदिर की खासियत यह है कि दोनों मंदिर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घनघोर जंगल के बीचों बीच स्थित है. जिससे इसकी खूबसूरती और बढ़ जाती है.दोनों मंदिरों का इतिहास काफी पुराना है.

कौलेश्वर मंदिर त्रिवेणी संगम तट पर स्थित होने के कारण इसकी खूबसूरती में चार चांद लग जाता है, तो वही जटाशंकर मंदिर जंगल में होने के कारण और भी भव्य दिखाई देता है. विद्वानों और पंडितों की माने तो जटाशंकर मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों से किया था. इसका प्रमाण ग्रंथों में मिलता है.

श्रावणी मेले में जो भक्त त्रिवेणी संगम से जल भरते हैं तो उसे जटाशंकर भगवान को अर्पित कर अन्य जगहों पर जल चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं.आपको बता दें कि कोरोना आने के साथ ही वाल्मीकिनगर त्रिवेणी तट पर श्रावणी मेला का लगना बंद हो गया था. लेकिन इस वर्ष फिर से श्रावणी मेला का आयोजन हो रहा है. जिसे लेकर स्थानीय लोगों में काफी खुशी का माहौल है पुजारी भी पूजा अर्चना के लिए पूरी तरह तैयार हैं.

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