Madar Shah Baba Fair 2025: बगहा: विश्व प्रसिद्ध मदार शाह बाबा के मेला को मदरिया पहाड़ मेला भी कहा जाता है, यह नेपाल में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक मेला है, जो हर साल फरवरी महीने में महाशिवरात्रि के मौके पर लगता है और हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है. विश्व प्रसिद्ध मदार शाह उर्स सीमावर्ती नेपाल के महलवारी में लगने वाला मेला है. सूफी संत मत से जुड़े होने के कारण मदार शाह बाबा के मजार पर हर वर्ष की भांति इस साल भी लाखों भक्त पहुंच रहें हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि बिना किसी भेदभाव किए हर धर्म समुदाय के लाखों लोग यहां मन्नतें मांगने, अपनी मुराद पुरी करने के लिए सात पहाड़ी पार कर अकीदत और शिद्द्त के साथ चादरपोशी करने पहुंचते हैं. दरअसल दो धर्मों का अटूट संगम महाशिवरात्रि के मौके पर इंडो नेपाल सीमा पर स्थित महलवारी के सात पहाड़ियों पार कुतबूल शाह मजार पर देखने बनता है. लिहाजा देश-विदेश से लाखों भक्त और श्रद्धालु दम मदार बेड़ा पार के नारे बुलंद कर यहां दर्शन करने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि जनता बाबा मदार शाह सच्चे मन से मन्नतें मांगने पहुंचने वाले भक्तों की मुरादें पूरी करते हैं.
बताया जा रहा है कि वाल्मीकिनगर से सटे इंडो नेपाल बॉर्डर पार कर लोग दुर्गम पहाड़ियों पर स्थित वही उद्दीन कुतबूल शाह मदार उर्स मेला का सदियों से गवाह बनते चले आ रहें हैं, जहां आस्था का जनसैलाब उमड़ता है. अफगानिस्तान से सदियों पूर्व सात पहाड़ी पार कर कुतबूल मदार शाह बाबा यहां पहुंचे थे, जो अल्लाह/ईश्वर की इबादत और साधना में लीन रहें, लिहाजा उनके मर्णोपरान्त मदार शाह बाबा का यहीं मजार बन गया.
सबसे बड़ी बात है कि उन दिनों नेपाल के राजा ने बाबा की साधना से प्रभावित होकर मजार की जमीन के लिए भू दान कर दिया, क्योंकि कुतबूल शाह साधना काल में मदार यानी की अकवन के दूध का सेवन किया करते थे, लिहाजा उनको भक्तों ने मदार शाह बाबा का नाम दें दिया.
जानकारी के मुताबिक, इंडो नेपाल बॉर्डर के वाल्मीकिनगर स्थित गंडक बराज से तकरीबन 5 किलोमीटर दूर नेपाल के महलवारी पहाड़ी पर मदार शाह बाबा का उर्स मेला महाशिवरात्रि के मौके पर हर वर्ष लगता है. इस बार भी 17 फरवरी से 26 फरवरी तक यहां उर्स मेला लगा है. जिसकी यात्रा महलवारी स्थित मस्जिद से शुरू होती है. इस दौरान भक्त सात पहाड़ियों के रास्ते नकदरवा पहाड़ पार कर पुरातन मजार पर पहुंचते हैं.
बता दें कि मदार शाह उर्स मेला में पहुंचने के लिए सफर की शुरुआत महलवारी मस्जिद से होती है, जिसमें पहला पड़ाव गुद्दर बाबा का स्थान आता है. यहां भक्त कपड़ों का दान और चढ़ावा करते हैं, जबकि दूसरे पड़ाव में टिमकी नगाड़ा है जो चट्टानों के आकार का है, यहां मुजावर नगाड़े ताशा बजाते दिखते हैं.
वहीं, तीसरे पड़ाव में नकदरवा पहाड़ है, जहां ऊपर चढ़ते वक्त पहाड़ से आपको नाक रगड़ना पड़ता है, जो बेहद कठिन है. ऐसे में मदार शाह मजार तक पहुंचने में इन कठिन रास्तों के दोनों ओर हजारों फुट गहरी खाई बेहद डरावनी लगती है. बावजूद इसके उत्तर प्रदेश समेत बिहार और देश के अन्य कई जगहों के साथ-साथ नेपाल से भारी संख्या में लोग यहां हर साल उर्स मेला में शिरकत करते हैं.
सबसे खास बात यह भी है कि मदार शाह उर्स में मजार के करीब रखा गया पत्थर उठाने वालों की मुरादें पुरी होने की निशानी मानी जाती है. बेऔलाद जोड़ें यहां संतान प्राप्ति की मन्नतें मानने के लिए खास तौर पर पहुंचते हैं.
सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर एक ओर भारतीय सेना के SSB जवानों के साथ पुलिस प्रशासन की चौकसी है, तो वहीं दूसरी ओर नेपाल APF के जवानों की कड़ी निगरानी में कौमी एकता का अंतराष्ट्रीय समागम स्थल मदार शाह उर्स मेला भक्तों से आज फिर गुलजार है. (इनपुट - इमरान अजीज)
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