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Ambulance Contract in Bihar: बिहार में एक तरफ जेल नियमों में बदलाव कर नीतीश सरकार ने आनंद मोहन सहित कई अपराधियों की जेल से रिहाई का रास्ता साफ किया. जिसपर अभी तक बिहार का सियासी पारा चढ़ा हुआ है. वहीं दूसरी तरफ बिहार के भागलपुर में पुल हादसे के बाद से विपक्षी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर हमला और तेज कर चुके हैं. इस सब के बीच सरकार के लिए एक और फैसला गले की फांस बन गया है. दरअसल यहां नीतीश सरकार पर विपक्ष उनके एक और फैसले को लेकर हमलावर है.
प्रदेश में 102 आपात सेवा के लिए जो एंबुलेंस चलाई जाती है. उसके तहत प्रदेश भर में 2125 एंबुलेंस चलाए जाते हैं. इन एंबुलेंस को चलाने का ठेका जिस कंपनी को दिया गया है वह कंपनी जहानाबाद के जेडीयू सांसदों के रिश्तेदारों की है. बता दें कि इस ठेके को देने में नियमों की अनदेखी और नियमों में बदलाव दिए जाने का आरोप सरकार पर लगाया जा रहा है.
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इस मामले को पहली बार बिहार में पाजद के विधायकों ने तब उठाया था जब बिहार में एनडीए यानी भाजपा-जदयू गठबंधन की सरकार थी. हालांकि राजद के सरकार में शामिल होते ही पार्टी की तरफ से इस मामले पर हल्ला बोल समाप्त हो गया. चूकि इस समय डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के पास स्वास्थ्य मंत्रालय भी है ऐसे में सवाल तो उठना लाजमी है कि जिसको लेकर राजद विधायक हंगामा खड़ा कर रहे थे अब उसी माले पर इतना सन्नाटा क्यों पसरा है.
बता दें कि इस एंबुलेंस सेवा का ठेका पशुपतिनाथ डिस्ट्रीब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड के पास है. जिसका काम बिहार में गंभीर मरीजों, गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों को एंबुलेंस की सेवा प्रदान कर अस्पताल तक पहुंचाने का है. यह सेवा बिल्कुल मुफ्त है. इसके लिए मरीजों को कोई पैसा नहीं देना पड़ता है.
ऐसे में इस सेवा को लेकर सवाल इसलिए उठ रहा है कि यह कंपनी जदयू सांसद चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी के रिश्तेदारों की कंपनी को मिला है. चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी जहानाबाद से मौजूदा सांसद हैं. इस कंपनी में सांसद के कई रिश्तेदार और बहु और बेटा निदेशक के पद पर हैं. मतलब पूरी कंपनी ही सांसद के घर की है. बता दें कि कंपनी के नाम दूसरी बार यह ठेका दिया गया है जबकि इस बार तो कंपनी इस ठेके के लिए अकेली ही दावेदार थी. इस कंपनी पर अनियमितता के आरोप के बाद पटना हाईकोर्ट को भी टिप्पणी करनी पड़ी थी.
इस ठेके को लेकर कहा गया कि इसके लिए नियमों में बदलाव किया गया. बता दें कि पहले नियम था कि जिस कंपनी को ठेके के लिए दावेदारी करनी है उसके पास 750 से ज्यादा एंबुलेंस चलाने का तीन साल का अनुभव, 50 लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस और 75 सीटों वाला कॉल सेंटर होना अनिवार्य था लेकिन इस कंपनी के पास ऐसा कुछ भी नहीं था. ऐसे में इस कंपनी को ठेका देने के लिए कई तरह के नियमों में बदलाव किया गया. इसके बाद गुणवत्ता और कीमत पर चयन के आधार को भी बदला गया और फिर न्यूनतम खर्च को इसका अंतिम आधार बना दिया गया.
इस ठेके को देने से पहले कागजों को लीक करने की बात भी सामने आई. हालांकि तब इसको लेकर राजद के विधायकों ने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे को पत्र लिखा था लेकिन राजद के साथ जैसे ही जेडीयू ने मिलकर सरकार बनाई इस मामले पर जो हंगामा था सांत हो गया. इस टेंडर प्रक्रिया के खिलाफ दावेदार दो कंपनियां जिसमें बीवीजी और सम्मान पाउंडेशन है पटना हाईकोर्ट पहुंच गई. इस याचिका पर पटना हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की थी और अदालत की अनुमति के बिना इस पर अंतिम निर्णय नहीं लेने को कहा था. अब इस पूरे मामले पर भाजपा जांच की मांग कर रही है तो वहीं इसको लेकर जेडीयू और राजद बचाव में उतर आए हैं.