Ganesh Chaturthi Puja: गणेश जी ने एक कार्य ऐसा भी किया है जिसे आजतक हम सभी सिर्फ श्रीकृष्ण को जानते हैं. असल में गणेश जी ने भगवान कृष्ण से पहले ही गीता का ज्ञान सुनाया था.
Trending Photos
पटनाः Ganesh Chaturthi Puja: देशभर में दस दिन की गणेश पूजा समारोह जारी है. भगवान गणेश की पूजा के लिए पांडालों में श्रद्धालुओं की भीड़ पहंच रही है. मान्यता है कि इन 10 दिनों में गणेश पूजा के साथ-साथ उनके परिवार यानी शिव परिवार की पूजा की जाए तो विशेष फल प्राप्त होता है. गणेश जी के कई अवतारों में उनकी कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणेश जी ने एक कार्य ऐसा भी किया है जिसे आजतक हम सभी सिर्फ श्रीकृष्ण को जानते हैं. असल में गणेश जी ने भगवान कृष्ण से पहले ही गीता का ज्ञान सुनाया था. यह गीता ज्ञान उन्होंने अपने पिता वरेण्य राजा को दिया था. असल में यह भी एक रहस्य है कि गणेश जी के पिता शिव जी हैं, लेकिन उनके एक पिता राजा वरेण्य भी हैं. गणेश जी द्वारा सुनाई गीता को गणेश गीता नाम से जाना जाता है.
कहानी द्वापरकाल में कुछ पहले की है. एक बार देवराज इंद्र और सभी देवी, देवता सिंदूरा नाम के दैत्य के अत्याचारों से परेशान थे. उस समय सभी देवता ब्रह्मा जी के पास अपना दुख लेकर गए. तब ब्रह्मा जी ने उन्हें गणपति जी के पास जाने को कहा. सभी देवताओं और ऋषियों की प्रार्थना सुनने के बाद उन्होंने माता पार्वती के घर गजानन के रूप में अवतार लिया. वहीं जिस समय गजानन ने अवतार लिया था उसी समय राजा वरेण्य की पत्नी पुष्पिका के घर भी एक बालक ने जन्म लिया था.
राजा को गणेश जी ने दिया था वरदान
प्रसव के दौरान रानी पीड़ा से मूर्छित हो गईं और रानी के पुत्र को राक्षसी उठा ले गई. लेकिन रानी के आंख खुलने से पहले ही भगवान शिव के गणों ने गजानन को रानी पुष्पिका के पास भेज दिया. शिव के गणों द्वारा ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि क्योंकि गणपति भगवान ने पूर्वजन्म में राजा वरेण्य की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वह उनके यहां पुत्र रूप में जन्म लेंगे. यही कारण था की उन्होंने गजानन का अवतार लिया था. लेकिन जब रानी पुष्पिका ने अपने पास गजानन को गजमुख गणपति के रुप को देखा तो वे भयभीत हो गईं.
राजा ने गणपति को जंगल में छोड़ दिया
जब राज्य में सभी को इस बात का पता चला तो राजा वरेण्य को बताया गया की ऐसा बालक राज्य के लिए अशुभ है. माया के प्रभाव से राजा भी अपने वरदान की बात भूल गए थे. यह बात सुनते ही राजा वरेण्य ने बालक को जंगल में छोड़ दिया. जंगल में इस शिशु के शरीर पर मिले शुभ लक्षणों को देखकर महर्षि पराशर उस बालक को आश्रम लाए. यहीं पर पत्नी वत्सला और पराशर ऋषि ने गणपति का पालन पोषण किया. बाद में राजा वरेण्य को सत्य का ज्ञान हुआ. अपनी इसी गलती से हुए पश्चाताप के कारण वह भगवान गणपति से प्रार्थना करते हैं कि मैं अज्ञान के कारण आपके स्वरूप को पहचान नहीं सका इसलिए मुझे क्षमा करें.
भगवान गणेश ने सुनाई गीता
भगवान गणेश ने राजा वरेण्य की प्रार्थना सुनी और उन्होंने राजा को अपने पूर्वजन्म के वरदान का स्मरण कराया. इसके बाद भगवान गणेश ने अपने पिता वरेण्य से अपने स्वधाम-यात्रा की आज्ञा मांगी. स्वधाम-गमन की बात सुनकर राजा वरेण्य ने आंसु भरी नेत्रों से गणेश जी से प्रार्थना करते हुए बोले की है कृपामय! मेरा अज्ञान दूरकर मुझे मुक्ति का मार्ग प्रदान करें. तब भगवान गणेश जी ने राजा वरेण्य को ज्ञानोपदेश दिया. जिसे आज गणेश-गीता के नाम से जाना जाता है.
यह भी पढ़े- Shri Hari stotram: बहुत शक्तिशाली है भगवान विष्णु का ये स्त्रोत, जानिए क्या है इसका अर्थ और लाभ