EWS Reservation: मुद्दा यही है -कोटा देने का आधार कास्ट हो या क्लास?
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar1431927

EWS Reservation: मुद्दा यही है -कोटा देने का आधार कास्ट हो या क्लास?

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच से EWS कोटे पर फैसला आया है. इनमें से तीन जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बी एला त्रिवेदी और जस्टिस पारडीवाला ने संविधान के 103वें संशोधन को वैध बताया है. इसी संविधान संशोधन के तहत EWS कोटे का प्रावधान किया गया था.

इस फैसले के बाद बिहार में सियासी बयानबाजी जारी है.

पटना: EWS यानी आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को आरक्षण चाहे वो सवर्ण ही क्यों न हो...सुप्रीम कोर्ट ने EWS को 10 प्रतिशत आरक्षण बरकरार रखा है. इस फैसले के सियासी फलीभूत हैं. लिहाजा बाकी देश की तरह बिहार में भी सियासत गरम है. कौन इसका सियासी लाभ लेने की कोशिश कर रहा है, किसे सियासी लाभ मिलने की उम्मीद है? 

EWS कोटे पर फैसला
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच से EWS कोटे पर फैसला आया है. इनमें से तीन जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बी एला त्रिवेदी और जस्टिस पारडीवाला ने संविधान के 103वें संशोधन को वैध बताया है. इसी संविधान संशोधन के तहत EWS कोटे का प्रावधान किया गया था.इन तीन जजों ने कहा कि ये कोटा संविधान के मूल ढांचे और बराबरी के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता.

लेकिन बाकी दो जजों चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यूयू ललित और जस्टिस रविंद्र भट ने इसपर असहमति जताई. इन्होंने कहा कि -'ये भेदभाव सामाजिक उत्पत्ति पर आधारित है इसलिए बारबरी के सिद्धांत का उल्लंघन करता है'. इस टिप्पणी के पीछे बात ये है कि इस कोटे में SC/ST को शामिल नहीं किया गया है. जो हाल इस बेंच का रहा, वही हाल बाकी देश और सियासत का है. कुछ का मानना है कि आरक्षण कास्ट पर आधारित होना चाहिए लेकिन कुछ का कहना है कि ये क्लास पर आधारित होना चाहिए.

फैसले पर बिहार में सियासत
जाहिर है इस फैसले के बाद बिहार में सियासी बयानबाजी जारी है. बीजेपी नेता सुशील मोदी ने कहा, 'आरजेडी, डीएमके और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने संसद में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के खिलाफ वोट किया था, जबकि आम आदमी पार्टी, सीपीआई और AIDMK ने मतदान का बहिष्कार किया था.' बीजेपी सांसद ने कहा कि ऐसी स्थिति में जब सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी सरकार के निर्णय पर अपनी मुहर लगा दी है तो ये दल अब किस मुंह से आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों से वोट मांग पाएंगे. 

जीतनराम मांझी का बयान
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने ट्वीट कर कहा, 'मैंने पूर्व में EWS के आधार पर सवर्ण जातियों के लिए आरक्षण की मांग की थी. माननीय उच्चतम न्यायलय ने भी मेरी बातों पर मुहर लगा दी है. अब 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसको मिले उतनी हिस्सेदारी' का आंदोलन शुरू होगा.'

नीतीश कुमार की मांग
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग की है. उन्होंने कहा है कि Ews पर जो निर्णय आया वो ठीक है. एक बार जाति जनगणना ठीक से हो जाए तो 50% आरक्षण की सीमा बढ़नी चाहिए. Ews अपनी जगह सही है, लेकिन जरूरी है कि अच्छी तरह से जातियों की संख्या का आकलन हो. हम बिहार में जाति जनगणना करा रहे हैं. गरीब किसी भी वर्ग से हो, उनका भला हो. आरक्षण की 50% सीमा भी बढ़ जाए तो अच्छा होगा.

आरक्षण की ऊपरी लिमिट
अब बड़ा मुद्दा यही होगा. सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की ऊपरी लिमिट 50% तय कर रखी है लेकिन EWS कोटे पर कोर्ट की मुहर लगने के बाद ये सीमा कितनी रहेगी ये देखने वाली बात होगी. एक बार ये 50% से ऊपर हो जाता है तो मराठा से लेकर जाट आदि, आदि जातियों की आरक्षण की मांग को दरकिनार करना आसान नहीं होगा.

आरक्षण का आधार
आज भी मूल सवाल वही है..आरक्षण का आधार क्लास हो या कास्ट? इस सवाल के पीछे जो तर्क है वो ये कि अगर कथित अगड़ी जाति का कोई गरीब भी है तो उसकी सामाजिक हैसियत उतनी नहीं घटती जितनी किसी दलित की. एक तो दलित, ऊपर से दरिद्रता का दंश. 

कोटे की लिमिट कहां तक
जहां तक सियासत की बात है-सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण मिलने का पूरा माइलेज बीजेपी लेने की कोशिश करेगी. सवर्ण बीजेपी के वोट बैंक माने जाते हैं, लिहाजा आने वाले चुनावों में इस फैसले को भुनाने की पूरी कोशिश करेगी. अब बड़ा सवाल ये है कि कोटे की लिमिट कहां तक जाएगी और लिमिट का तर्क क्या होगा?

Trending news