याचिका में कहा गया कि सरकार की ओर से जातीय जनगणना के नाम पर राज्य के हर एक आदमी की जाति पूछकर रिकॉर्ड तैयार किया जा रहा है. इससे समाज बंटेगा और अराजकता फैलेगी.
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Bihar Caste Census: बिहार में जाति आधारिक जनगणना का मामला अब हाईकोर्ट पहुंच गया है. उच्च न्यायालय में जातीय जनगणना को रोकने के लिए याचिका लगाई गई है. याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार के पास जातीयों को गिनने का अधिकार नहीं है. ऐसा करके सरकार संविधान का उल्लंघन कर रही है. इसके अलावा याचिका में कहा गया कि सरकार की ओर से जातीय जनगणना के नाम पर राज्य के हर एक आदमी की जाति पूछकर रिकॉर्ड तैयार किया जा रहा है. इससे समाज बंटेगा और अराजकता फैलेगी.
याचिका में कहा गया कि जाति आधारित जनगणना में लोगों की जाति के साथ-साथ उनके कामकाज और उनकी योग्यता का भी ब्यौरा लिया जा रहा है. ये उसके गोपनियता के अधिकार का हनन है. याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अपराजिता सिंह और हाईकोर्ट के अधिवक्ता दीनू कुमार केस लड़ रहे हैं. इससे पहले सोमवार (1 मई) को सुनवाई होगी. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विनोज चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ इस याचिका पर सुनवाई करेगी. इससे पहले इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने भेजा था हाईकोर्ट
पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने जातीय जनगणना को रोकने की याचिका को रद्द करते हुए उन्हें हाईकोर्ट जाने को कहा था. इतना ही नहीं सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट को तीन दिन के भीतर याचिका पर सुनवाई करने का आदेश दिया था. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि हाईकोर्ट इस याचिका पर सुनवाई करके अंतरिम आदेश जारी करे.
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ट्रांसजेडर्स के लिए बड़ा फैसला
इस बीच बिहार सरकार ने ट्रांसजेडरों के लिए बड़ा फैसला लिया है. सरकार ने अब ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को अपनी जाति चुनने का अधिकार दे दिया है. जातीय जनगणना में लगे अधिकारियों को एक आदेश जारी करके इसकी जानकारी दी गई है. यह फैसला ट्रांसजेंडर को एक जाति के रूप में वर्गीकृत किए जाने के विवाद के बाद आया है. सरकार ने पहले 'किन्नर/कोथी/हिजड़ा/ट्रांसजेंडर' को कोड-22 दिया गया था. इसको लेकर ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट रेशमा प्रसाद ने पटना हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की थी.