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सरकार को पता भी नहीं चला और ग्रामीणों ने खुद बना लिया अपना पुल, यहां की है ये घटना

Bettiah News: हम 21वीं सदी में हैं, जहां इंसान चांद और मंगल पर जा रहा है. एक ओर सरकार विकास को लेकर तमाम दावा कर रही है, लेकिन दूसरी ओर बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बेतिया से आई यह तस्वीरें सरकार के विकास के दावा को खोखला साबित कर रही है. अधिकारियों को खबर तक नहीं है और ग्रामीणों ने स्थाई लोहे का पुल खुद ही बना लिया है. ग्रामीणों ने नदी के ऊपर पक्का सात पाया का पुल बना लिया है. यह घटना और तस्वीरें नरकटियागंज के नौतनवा पंचायत की है, जहां बिरहा नदी पर ग्रामीणों ने चंदा एकत्रित कर स्थाई लोहे का पुल बना दिया है. ग्रामीणों ने नदी में सात पाया का पुल बनाया है. 

नदी के ऊपर स्थाई पुल

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नदी के ऊपर स्थाई पुल

ग्रामीणों के द्वारा नदी के ऊपर लोहे के चादर से स्थाई पुल बनाया गया है. पुल की लंबाई 70 से 80 फिट है. तो वहीं, पुल की चौड़ाई करीब 6 फिट की है. ठाठवा गांव के ग्रामीणों ने करीब 12 लाख आपस में चंदा एकत्रित कर इस स्थाई पुल का निर्माण किया है.

 

वोट बहिष्कार

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वोट बहिष्कार

करीब एक दर्जन गांवों का यह पुल लाइफलाइन पुल है. ग्रामीणों ने 2019 में पुल बनाने की मांग को लेकर वोट बहिष्कार किया था. इस बार चुनाव में पहले ही अधिकारी पहुंच गए थे, ग्रामीणों को समझाया था कि इस बार वोट बहिष्कार नहीं करें. पुल तीन महीने में बना दिया जाएगा, लेकिन चुनाव खत्म हुआ तो अधिकारियों की ड्यूटी भी खत्म हो गई.

 

ग्रामीणों ने चंदा एकत्रित कर बनाया पुल

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ग्रामीणों ने चंदा एकत्रित कर बनाया पुल

जब कोई अधिकारी और जनप्रतिनिधि ग्रामीणों की सुध नहीं लिए तो ग्रामीणों ने चंदा एकत्रित कर बिरहा नदी पर स्थाई पुल बना दिया. आप यह पुल देख हैरान हो जाएंगे. नदी में कैसे ग्रामीणों द्वारा तीन पाया सीमेंट का बनाया गया है. यह ग्रामीणों का इंजिनियरिंग है. पुल के ऊपर लोहे के चादर को बिछाया गया है.

नदी में सात पाया

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नदी में सात पाया

अब सवाल उठता है कि नदी में एक नहीं दो नहीं सात-सात पाया ग्रामीणों ने बनाया तो अधिकारी कहां थे. नदी में स्थाई पुल का ग्रामीणों ने निर्माण कर दिया, लेकिन आज तक इस पुल को देखने ना अधिकारी पहुंचे हैं और ना ही कोई जनप्रतिनिधि पहुंचे हैं.

20 साल से पुल की थी मांग

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20 साल से पुल की थी मांग

ग्रामीणों ने बताया कि 20 साल से पुल के लिए दर्जनों गांव के ग्रामीण अधिकारियों से मांग कर रहे थे, लेकिन आज तक लोगों को आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला. पुल में अभी कुछ काम बाकी है, जिसे हम लोग पूरा कर रहे हैं. 

 

लाइफलाइन

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लाइफलाइन

बता दें कि यह पुल जो ग्रामीणों के द्वारा बनाया गया है, यह एक दर्जन गांवों का लाइफलाइन है. लोगों ने बताया कि हम लोगों को प्रखंड मुख्यालय और जिला मुख्यालय जाने के लिए 15 किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती थी.

 

लंबी दूरी

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लंबी दूरी

अगर लोगों को कब्रिस्तान या शमसान जाना होता था तो उस पार जाने के लिए उन्हें 13 किलोमीटर का लंबा सफर तय करना पड़ता था. लोगों को इतनी परेशानी थी फिर भी अधिकारी और नेता को इनकी गुहार सुनाई नहीं दे रही थी. इसलिए थक हार के ग्रामीणों ने खुद चंदा एकत्रित कर स्थाई पुल बनाया, ताकि उन्हें परेशानियों से निजात मिल सकें. (इनपुट - धनंजय द्विवेदी)