Climate change in India: बिजली के बाद भारत में हीट वेव दूसरी सबसे घातक प्राकृतिक शक्ति हैं. सीएसई कि एक रिपोर्ट के मुताबिक 2000- 2020 में भारत में 20,615 से ज्यादा लोग लू से मारे गए हैं. इस साल प्री-मानसून की तुलना में मानसून का मौसम ज्यादा गर्म रहा है.
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Climate change in India: भले ही मानसून ने देशभर में अपने पैर जमा लिए हैं, लेकिन कई इलाकों में उमस के स्तर में तेजी से वृद्धि होती नजर आ रही है. इसके कारण लोगों को भीषण गर्मी से थोड़ी भी राहत मिलती नहीं दिख रही. इस साल गर्मी के मौसम में भारत ने झकझोर देने वाली गर्म हवा कि लहरों का सामना किया है और तापमान में भी काफी वृद्धि होती नजर आई. ये सब जलवायु परिवर्तन के की वजह से हो रहा है, जिसे अगर समय पर रोका नहीं गया तो इसके प्रभावों के और भी ज्यादा बिगड़ने की उम्मीद है.
मेगा सिटी में गर्मी ने तोड़े सारे रिकॉर्ड
साल 2016 के बाद 2022 में देश में सबसे ज्यादा गर्मी पड़ी है. दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और हैदराबाद समेत सारे मेगा शहरों में गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे- हीट आइलैंड इफेक्ट. सभी शहरों में लोगों ने कंक्रीट कि सड़कें बनाई हैं, जो दिन भर कड़ी धूप को सोखती हैं, जिससे नॉर्मल तापमान से ज्यादा गर्मी लोगों को महसूस होती है.
पूरे देश में बढ़ रहा है तापमान
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की एक नई रिपोर्ट ये साबित करती है कि भारत मौसम विज्ञान (IMD) के वर्गीकरण के मुताबिक, भारत में उत्तर-पश्चिम के राज्यों में ज्यादा गर्मी और गर्म हवाओं की लहरें महसूस की जाती हैं. सभी लोग इन्हीं जगहों को गर्म क्षेत्र मान लेते हैं, जिस वजह से पूरे देश में बढ़ते तापमान की ओर लोगों का ध्यान नहीं जाता.
नीतिगत तैयारियों की भारी कमी
CSE की निदेशक अनुमिता राय चौधरी का कहना है कि ये एक बहुत गंभीर परेशानी है. भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी को कम करने के लिए जो नीतिगत तैयारी होनी चाहिए वो लगभग न के बराबर है. हीट एक्शन प्लान के बिना हवा का बढ़ता तापमान, जमीन की सतह से निकलने वाली गर्मी, कंक्रीटिंग, हीट-ट्रैपिंग करने वाली मानव निर्मित संरचनाएं, इंडस्ट्रियल एक्टिविटी और एयर कंडीशनर से निकलने वाली गर्मी लगातार बढ़ती ही चली जाएगी. गर्मी से लोगों को बचाने वाले जंगलों, शहरी हरियाली और वाटर रिजर्वायर के अभाव में भारत में लोगों का स्वास्थ्य और बिगड़ता चला जाएगा.
सबसे ज्यादा प्रभावित है आंध्र प्रदेश
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के डाटा के मुताबिक, भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के बाहर के राज्यों में हीट-स्ट्रोक के कारण ज्यादा मौतें हुई है, जिसमें जलवायु तनाव से होने वाली आकस्मिक मौतों को भी शामिल किया गया है, इस डाटा से ये पता चलता है कि 2015 और 2020 के बीच, 2,137 लोगों की कथित तौर पर हीट स्ट्रोक के कारण मौत हो गई थी. उत्तर-पश्चिम के राज्यों में लोग ज्यादातर हीट स्ट्रोक के शिकार हुए. दक्षिणी क्षेत्र में पर्यावरण में बढ़ते गर्मी के कारण 2,444 मौतों की सूचना मिली थी, अकेले आंध्र प्रदेश में प्रभावित लोगं की संख्या आधे से अधिक थी. दिल्ली ने इसी अवधि में केवल एक मौत की सूचना दी.
ज्यादातर मौतें कामकाजी उम्र के पुरुषों (30-60 साल के लोगों) में हुई हैं, जिन्हें आमतौर पर तापमान से हो रहे परेशानियों के प्रति ज्यादा संवेदनशील नहीं माना जाता है. भारत में हीट वेव जैसी मौसम संबंधी परेशानियों के स्वास्थ्य पर पड़ते असर को लेकर लोग ज्यादा जागरूक नहीं है.
(इनपुट- अनुष्का गर्ग)
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