Arvinder Singh Lovely and Kailash Gehlot: दिल्ली की राजनीति में नेताओं का अपना रुख बदलना कोई नई बात नहीं है. अरविंदर सिंह लवली और कैलाश गहलोत जैसे नेता सत्ता के बदलते समीकरणों को देखकर अपनी रणनीति बनाते हैं.
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Delhi Election Result 2025: दिल्ली की राजनीति में कुछ नेता ऐसे होते हैं, जो सत्ता की दिशा को भांपने में माहिर होते हैं. इन नेताओं का राजनीतिक सफर इस बात पर निर्भर करता है कि सत्ता की बागडोर किसके हाथ में है. ऐसे ही दो नाम हैं अरविंदर सिंह लवली और कैलाश गहलोत, जिन्हें दिल्ली का सबसे बड़ा 'मौसम वैज्ञानिक' कहा जा सकता है.
अरविंदर सिंह लवली का कांग्रेस से BJP तक का सफर
दिल्ली कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे अरविंदर सिंह लवली को एक समय शीला दीक्षित का सबसे भरोसेमंद सहयोगी माना जाता था. उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने दिल्ली में लंबे समय तक शासन किया, लेकिन 2015 में जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई, तो लवली ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया. हालांकि, भाजपा में ज्यादा समय तक टिक नहीं सके और कुछ ही सालों बाद कांग्रेस में वापस लौट आए. राजनीतिक गलियारों में कहा जाता है कि लवली की राजनीति हमेशा सत्ता के समीकरणों पर टिकी रही है. जब कांग्रेस कमजोर हुई, तो उन्होंने भाजपा का रुख किया, लेकिन जब लगा कि कांग्रेस फिर से उभर सकती है, तो वापसी कर ली. अभी वर्तमान में लवली ने भाजपा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
कैलाश गहलोत: AAP के संकटमोचक या मौके के खिलाड़ी?
कैलाश गहलोत आम आदमी पार्टी के उन नेताओं में से एक हैं, जो केजरीवाल सरकार के संकटमोचक माने जाते रहे हैं. वे कई अहम विभागों की जिम्मेदारी संभालते रहे, लेकिन 2024 आते-आते पार्टी की कमजोर होती स्थिति को देखते हुए उनका रुख बदलने लगा. AAP सरकार पर जब भ्रष्टाचार के आरोप लगे और कई नेताओं पर ईडी-सीबीआई की जांच तेज हुई, तब गहलोत ने धीरे-धीरे खुद को बैकफुट पर डालना शुरू कर दिया. सूत्रों के अनुसार जब पार्टी की स्थिति कमजोर होती दिखी, तो वे दूसरी पार्टियों से बातचीत करने में भी लगे रहे. 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में जब AAP को करारी हार मिली, तो उन्होंने पार्टी नेतृत्व से दूरी बनानी शुरू कर दी.
राजनीति में 'मौसम वैज्ञानिकों' की भूमिका
दिल्ली की राजनीति में यह कोई नई बात नहीं है कि नेता समय के साथ अपने राजनीतिक झुकाव को बदलते रहते हैं. अरविंदर सिंह लवली और कैलाश गहलोत जैसे नेता सिर्फ सत्ता के समीकरणों को समझकर अपनी रणनीति बनाते हैं. इनका मकसद केवल एक ही होता है. सत्ता के करीब बने रहना. अब देखने वाली बात यह होगी कि आने वाले समय में ये दोनों नेता किस दिशा में जाते हैं और उनकी राजनीतिक भविष्यवाणी कितनी सही साबित होती है.
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