Ram Mandir: वो योद्धा जिसने लड़ी राम मंदिर बचाने की पहली जंग, अकेले मारे बाबर के 700 सैनिक
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Ram Mandir: वो योद्धा जिसने लड़ी राम मंदिर बचाने की पहली जंग, अकेले मारे बाबर के 700 सैनिक

Devideen Pandey Sacrifice: 22 जनवरी 2023 को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है. और इस मौके पर देवीदीन पाण्डेय के वंशज दिवाली की तरह जश्न मनाएंगे. वे दीपोत्सव करेंगे और बाबर की सेना के खिलाफ लड़ने वाले अपने पूर्वज को याद करेंगे.

Ram Mandir: वो योद्धा जिसने लड़ी राम मंदिर बचाने की पहली जंग, अकेले मारे बाबर के 700 सैनिक

Devideen War Against Babur Army: इतिहास विजेताओं के इशारे पर लिखा जाता है. इसलिए बलिदान की अचंभित कर देने वाली कई कहानियां उन पन्नों में जगह नहीं बना पाती हैं. ऐसी ही एक कहानी है पंडित देवीदीन पाण्डेय की, जिन्होंने राम मंदिर की रक्षा में अयोध्या का पहला भीषण युद्ध लड़ा था. राम मंदिर से सिर्फ 12 किलोमीटर दूर सनेथू गांव, जिसका अपना इतिहास और बलिदान की अपनी दास्तान है. बता दें कि सनेथू गांव के देवीदीन पाण्डेय और आस-पास के गांव के लोगों ने बाबर की सेना से राम मंदिर को बचाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी. ये कहानी इतिहास में ज्यादा जगह नहीं बना पाई लेकिन मौखिक इतिहास में ये कहानी जिंदा है.

बाबर के खिलाफ बनाई 90 हजार सैनिकों की सेना

पंडित देवीदीन पाण्डेय वो नाम हैं जिन्होंने 1518 में बाबर की सेना से लंबी लड़ाई थी. इसमें गजराज सिंह भी थे. इन लोगों ने 90 हजार सैनिकों की सेना तैयार की थी. लोगों का कहना है कि तब गुरिल्ला वॉर लड़ा गया था. अलग-अलग माध्यमों से ये लोग लड़ाई लड़ रहे थे. इस वक्त उनकी सातवीं पीढ़ी है. यहां कुछ लोग देवीदीन पाण्डेय के परिवार और कुछ गजराज सिंह की फैमिली से हैं.

सातवीं पीढ़ी ने संजो रखी है देवीदीन पाण्डेय की विरासत

देवीदीन पाण्डेय की पीढ़ी की दिव्या पाण्डेय ने बताया कि ये सातवीं पीढ़ी है. हम यहीं मंदिर में रहते हैं. बच्चे उनका नाम सुनकर जागृत होते हैं. वो राम मंदिर के लिए शहीद हो गए. देवीदीन की पीढ़ी में महिलाएं हों या पुरुष, युवा हों या बुजुर्ग अपनी पीढ़ियों के पराक्रम की विरासत को इन्होंने संजोकर रखा है. देवीदीन पाण्डेय की सातवीं पीढ़ी के सदस्य जनार्दन पाण्डेय ने बताया कि ये तलवार हमारे पूर्वजों का दिया हथियार है. इससे जंग लड़ी गई थी.

7 दिन तक चला था भीषण युद्ध

जनार्दन पाण्डेय ने आगे कहा कि 3 जून 1518 में युद्ध की शुरुआत हुई थी. संभाजी सिंह, जिनके नाम से घाट है, वहां ये लोग गुरिल्ला युद्ध लड़ते थे. दिन भर वो लोग दीवारें तैयार करते थे और ये लोग जाकर गिरा देते थे. फिर मीर बाकी से युद्ध हुआ. बाबर कभी यहां नहीं आया. मीर बाकी हाथी पर सवार होकर आया था. उसके पास बंदूकें थीं. हमारे पूर्वजों के पास भाला और तलवार थी. 90 हजार लोग शहीद हुए. 7 दिनों तक युद्ध चला. बाद में लखौरी ईंट से उनका देहांत हुआ, वो वीरगति को प्राप्त हुए.

देवीदीन पाण्डेय ने अकेले मारे 700 सैनिक

इसी परिवार के सुनील का दावा है कि देवीदीन पाण्डेय पर पीछे से वार किया गया था. लेकिन शहादत से पहले उन्होंने उस युद्ध में बाबर के 700 सैनिकों को अकेले मारा था. मीर बाकी की लाखों की सेना थी. आधुनिक अस्त्र-शस्त्र से लैस थी. पीछे से देवीदीन पाण्डेय के सिर पर ईंट से मारा गया. फिर उन्होंने पगड़ी से सिर को बांधा और अंत तक लड़ते रहे. ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अकेले 700 आतंकियों को मारा. वो घोड़े पर युद्ध लड़ते थे.

देवीदीन पाण्डेय के वंशजों का प्रण

ये शहादत सिर्फ राम मंदिर के लिए नहीं थी. ये शहादत अयोध्या और पूरे भारत वर्ष के लिए थी और इस बलिदान के आगे की कहानी मेघराज सिंह बादल की जुबानी जानिए. जिनका दावा है कि उनके पूर्वजों ने प्रण लिया था कि जब तक राम मंदिर नहीं बन जाता, वो ना पगड़ी बांधेंगे. ना चप्पल पहनेंगे और ना ही छाते का इस्तेमाल करेंगे.

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