तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने अपनी कितान 'कारगिल- फ्राम सप्राइज टू विट्री' में लिखा है कि इस ऑपरेशन की बराबरी 1987 के नार्दन ग्लेशियर के बाना टॉप ऑपरेशन से की जा सकती है.
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नई दिल्ली: कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने एक चुनौती को स्वीकार किया था, जिसमें पूरा करना लगभग असंभव सा माना जाता था. यह चुनौती थी प्वाइंट 5770 में पूर्व की दिशा से एक किलोमीटर ऊंची चोटी पर करीब 85 डिग्री पर चढ़ाई करना. जिस समय भारतीय सेना ने इस चुनौती को स्वीकार किया, तब चोटी पर मौजूद पाकिस्तानी सैनिक सपने में भी यह नहीं सोच सकते थे कि भारतीय सेना इस रास्ते से भी आक्रमण कर सकती है. यह भारतीय सेना के अद्भुत साहस का ही नतीजा है कि उन्होंने असंभव दिखने वाली चुनौती को पूरा कर पाकिस्तानी सैनिकों को अंजाम तक पहुंचा दिया.
तत्कालीन सेना प्रमुख वीपी मलिक ने अपनी पुस्तक 'कारगिल- फ्राम सप्राइज टू विट्री' में इस ऑपरेशन का जिक्र करते हुए लिखा है कि जून 1999 में दुश्मन एक बार फिर प्वाइंट 5770 को अपने कब्जे में लेना चाहता था. इस बीच 102 इंफेंट्री ब्रिगेड एक बोल्ड प्लान के साथ आगे आई और उसने पूर्व की दिशा से प्वाइंट 5770 को पर कब्जा करने का फैसला किया. 102 लाइट इंफ्रेंटरी का यह फैसला आसान नही था. जवानों को करीब एक किलोमीटर ऊंचे पहाड़ पर खड़ी चढ़ाई करनी थी. इस चुनौती को पूरा करने के लिए मेजर नवदीप चीमा के नेतृत्व में छह सदस्यीय टॉस्क फोर्स का गठन किया गया.
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रणनीति के तहत, यह भी तय किया गया कि आर्टिलरी फायरिंग तब तक नहीं की जाएगी, जब तक टॉस्क फोर्स की सुरक्षा के लिए जरूरी न हो. प्वाइंट 5770 तक पहुंचने के लिए टॉस्क फोर्स ने 25 जून को खड़ी पहाड़ी पर रोप-वे लगाना शुरू कर दिए. 26 जून की रात तक रोप वे लगाने का काम पूरा हो गया. 27 जून की सुबह करीब सात बजे मेजर नवदीप चीमा के नेतृत्व में टॉस्क फोर्स ने प्वाइंट 5770 के लिए चढ़ाई शुरू की. जवानों को इस चढ़ाई को पूरा करने में सात घंटे से अधिक का समय लग गया. ऊपर पहुंचकर इस टॉस्क फोर्स ने जो देखा, वह चिंता बढाने वाला था. दरअसल, भारतीय सेना के पहुंचने से पहले दुश्मन सेना के 11 जवान वहां पहले से ही मौजूद थे.
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हालांकि, पाकिस्तान सेना के जवान कभी सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि भारतीय सेना की टॉस्क फोर्स एक किलोमीटर ऊंची सीधी चढ़ाई करके प्वाइंट 5770 पर पहुंच सकते हैं. लिहाजा, 11 पाकिस्तानी जवानों में कुछ संगर बनाने के काम में जुटे थे, वहीं दो पाकिस्तानी जवान खत लिखने में मशगूल थे और बाकी जवान पास की एक झोपड़ी में आराम कर रहे थे. पाकिस्तानी सेना के जवान हरकत में आते इससे पहले भारतीय सेना के जाबांजों ने सभी जवानों को अंजाम तक पहुंचा दिया. भारतीय सेना की इस टॉस्क फोर्स ने मौके से भारी तादाद में हथियार और मोर्टार बरामद किए.
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वहीं पाकिस्तान को जब अपनी इस शिकस्त के बारे में पता चला तो वह बुरी तरह से बौखला गया. इसी बौखलाहट में पाकिस्तान लगातार तीन घंटों तक प्वाइंट 5770 पर आर्टिलरी फायरिंग करता रहा. पाकिस्तान की इस आर्टिलरी फायरिंग भारतीय सेना के टॉस्क फोर्स का कोई भी सदस्य हताहत नहीं हुआ. इस ऑपरेशन में मेजर नवदीप चीमा के साथ साथ कैप्टन श्यामल सिन्हा, हवलदार जोगिंदर, राइफल मैन सेवांग मोरुप ने साहस और वीरता अद्भुद उदाहरण पेश किया था. उस समय तत्तकालीन सेनाध्यक्ष वीवी मलिक ने इस ऑपरेशन को भारतीय सेना के इतिहात में शामिल मुश्किल ऑपरेशन में से एक बताया था.
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तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने अपनी कितान 'कारगिल- फ्राम सप्राइज टू विट्री' में लिखा है कि इस ऑपरेशन की बराबरी 1987 के नार्दन ग्लेशियर के बाना टॉप ऑपरेशन से की जा सकती है.