सुप्रीम कोर्ट में केस लिस्टिंग के लिए बेंच बदले जाने पर फिर बवंडर मचने के आसार, जानिए क्या है पूरा मामला
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सुप्रीम कोर्ट में केस लिस्टिंग के लिए बेंच बदले जाने पर फिर बवंडर मचने के आसार, जानिए क्या है पूरा मामला

Letter To CJI: यह पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में अहम मामलों की लिस्टिंग को लेकर है. पहले वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने सीजेआई को चिट्ठी लिखी. इसके बाद बार काउंसिल ने सीजेआई का बचाव करते हुए उसके अध्यक्ष मनन मिश्रा ने सीजेआई को चिट्ठी लिख दी है. 

सुप्रीम कोर्ट में केस लिस्टिंग के लिए बेंच बदले जाने पर फिर बवंडर मचने के आसार, जानिए क्या है पूरा मामला

Manan Mishra Dushyant Dave: सुप्रीम कोर्ट में अहम मामलों की लिस्टिंग को लेकर एक बार फिर बवंडर मचने के आसार दिख रहे हैं. केस लिस्टिंग के लिए बेंच बदले जाने का मामला उठाते हुए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने हाल ही में CJI को चिट्ठी लिखी थी, जिसके बाद बार काउंसिल ने CJI का बचाव किया. अब बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन मिश्रा भी इसमें कूद पड़े हैं. उन्होंने बिना नाम लेते हुए दुष्यंत दवे की चिट्ठी पर निशाना साधा है. उन्होंने शीर्ष अदालत के सामने लंबित संवेदनशील मामलों की सूची पर दुष्यंत के पत्र पर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह अनुचित प्रभाव पैदा करने और अपने अनुकूल फैसले हासिल करने का प्रयास है. केसों की लिस्टिंग और रोस्टर चयन को लेकर 12 जनवरी 2018 को भी सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए बेंच बदल जाने पर सवाल उठाए थे. अब नए 'लेटर वार' से ये मामला फिर से सुर्खियों में आ गया है..

कैसे हुई पूरे मामले की शुरुआत
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने छह दिसंबर को प्रधान न्यायाधीश सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर उच्चतम न्यायालय में मुकदमों को सूचीबद्ध करने और उन्हें अन्य पीठों को फिर से आवंटित करने के कुछ दृष्टांतों को लेकर नाराजगी जताई थी. उन्होंने तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने की मांग की थी. अब इसी पत्र का जवाब बार काउंसिल ऑफ इंडिया यानि के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने दिया है. दवे का नाम लिए बगैर बीसीआई अध्यक्ष ने कहा कि ऐसे पत्रों के जरिए किए गए प्रयास साफ तौर पर अवमाननापूर्ण आचरण के तहत आते हैं और गलत उद्देश्यों के लिए उठाया गया कदम था, इससे सख्ती से निपटा जाना चाहिए.

मनन कुमार मिश्र का पलटवार 
उन्होंने सीजेआई को लिखे अपने पत्र में कहा कि यह पत्र कोई इकलौती घटना नहीं है बल्कि यह हैंडबुक एक क्लासिक चाल है जिसे हाल-फिलहाल में भारत के लगभग हर प्रधान न्यायाधीश के सामने बार-बार आजमाया गया है. ऐसे पत्र स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली के कामकाज पर अनुचित प्रभाव और दबाव पैदा करने का न्यायेत्तर तंत्र है. उन्होंने कहा कि पत्र में किए गए दावे सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए रत्ती भर भी सच नहीं हैं और किसी भी प्रामाणिक उद्देश्य से पूरी तरह रहित हैं. इतना ही नहींमिश्रा ने सीजेआई से इन पत्रों के माध्यम से ‘व्यवधान पैदा करने की कोशिशों को खत्म करने तथा ऐसे प्रयासों के खिलाफ एक स्थायी मिसाल पेश करने का अनुरोध किया है.

कार्रवाई की मांग कर डाली!
मिश्र ने मिसाल की बात कहकर एक प्रकार से कार्रवाई की मांग कर डाली है. वहीं दवे के पत्र लिखने से एक दिन पहले उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश संजय किशन कौल ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पदोन्नति और स्थानांतरण के विषय पर कॉलेजियम की सिफारिशों पर कदम उठाने में केंद्र सरकार की कथित देरी से संबंधित याचिकाओं को वाद सूची से अचानक हटाए जाने पर हैरानी जताई थी. प्रशांत भूषण समेत कुछ वकीलों ने यह मुद्दा उठाया था. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के पूर्व अध्यक्ष रहे दवे ने सीजेआई को लिखे पत्र में कहा था कि वह उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री द्वारा मुकदमों को सूचीबद्ध किए जाने को लेकर कुछ घटनाओं से बहुत दुखी हैं. 

दवे ने आगे क्या कहा था?
दवे ने कहा था कि मानवाधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्र और वैधानिक व संवैधानिक निकायों के कामकाज से जुड़े कुछ मामले संवेदनशील प्रकृति के हैं. दवे ने इस पर खेद जताया था कि उन्हें कुछ वकीलों द्वारा सीजेआई से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात करने के प्रयास कामयाब नहीं होने के बाद यह खुला पत्र लिखना पड़ा है. फिलहाल अब देखना होगा कि इस पर सीजेआई की क्या प्रतिक्रिया क्या आती है. यह पहली बार नहीं है जब केस असाइनमेंट को लेकर ऐसी घटना देखने को मिली है. 2018 में चार जजों ने मीडिया से मुखातिब होकर सुप्रीम कोर्ट में प्रशासनिक अनियमितताओं के आरोप लगाए थे. उन्होंने बताया था कि प्रशासन ठीक से नहीं चल रहा है, केस असाइनमेंट ठीक से नहीं हो रहे हैं.

2018 वाली चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस याद आई.
हुआ यह था कि 12 जनवरी, 2018 को नई दिल्ली में तुगलक रोड पर बंगला नंबर चार में सुप्रीम कोर्ट के चार जज जे. चेलेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी. लोकुर और कुरियन जोसफ जनता के बीच आए और मीडिया के सामने सात पेज का पत्र मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नाम जारी किया था. यह अभूतपूर्व घटना थी. सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीश जनता के बीच खुद मीडिया से मिलने आए. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जजों ने सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठाए थे. उन्होंने आरोप लगे कि सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा है, अगर ऐसा चलता रहा तो लोकतांत्रिक परिस्थिति ठीक नहीं रहेगी. उन्होंने कहा कि हमने इस मुद्दे पर चीफ जस्टिस से बात की, लेकिन उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी.

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