Kashmir Issue: हमेशा ये सवाल उठता है कि आखिर पंडित जवाहरलाल नेहरू के दिमाग में कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) ले जाने का विचार कैसे आया?
Trending Photos
हमेशा ये सवाल उठता है कि आखिर पंडित जवाहरलाल नेहरू के दिमाग में कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) ले जाने का विचार कैसे आया? अभी तक इस सवाल का जवाब नहीं मिल सका था. अब इससे पर्दा उठ गया है. कश्मीर के इतिहास पर भारतीय इतिहास अनुंसधान परिषद (ICHR) की नई शोध एवं तश्यपरक किताब 'जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख : थ्रू द एजेस' में ये जानकारी दी गई है. इस पुस्तक का प्रकाशन नेशनल बुक ट्रस्ट ने किया है.
इस किताब में बताया गया कि कश्मीर में घुसपैठ और उसके बाद की सैनिक गतिविधियों के कारण जब समस्या पैदा हुई तो उस दौरान 21 दिसंबर, 1947 की देर रात पंडित नेहरू ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली से मुलाकात थी. वह मीटिंग नई दिल्ली गवर्नमेंट हाउस (मौजूदा राष्ट्रपति भवन) में हुई थी. उस बैठक से ठीक पहले पंडित नेहरू ने लार्ड माउंटबेटन से मुलाकात की थी. उस दौरान माउंटबेटन ने कहा था कि यदि हम समझौता कर पाए तो भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी. किताब के मुताबिक उनके ही दबाव और सलाह पर पंडित नेहरू, कश्मीर का मुद्दा यूएन में लेकर गए.
अमित शाह ने क्या कहा?
इस पुस्तक का विमोचन गुरुवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किया. कश्मीर के शेष भारत के साथ संबंधों का जिक्र करते हुए गृहमंत्री ने कहा कि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जो भू-सांस्कृतिक है और जिसकी सीमाएं उसकी संस्कृति से बनती हैं. भारत को केवल भारतीय परिप्रेक्ष्य से ही समझा जा सकता है, भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से नहीं. उन्होंने कहा कि ‘सिल्क रूट’ से लेकर मध्य एशिया तक और शंकराचार्य मंदिर से लेकर हेमिस मठ तक; तथा व्यापार से लेकर अध्यात्म तक, दोनों का मजबूत आधार कश्मीर की संस्कृति में मौजूद है.
शाह ने कहा कि अनुच्छेद-370 ने यह गलत धारणा दी कि कश्मीर का भारत के साथ एकीकरण अस्थायी है. उन्होंने कहा, ‘‘कई लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि अनुच्छेद-370 और आतंकवाद के बीच क्या संबंध है. वे नहीं जानते कि अनुच्छेद-370 ने घाटी के युवाओं के मन में अलगाववाद के बीज बोए थे.’’ शाह ने कहा, ‘‘देश के कई अन्य हिस्सों में मुस्लिम आबादी है. वे क्षेत्र आतंकवाद से प्रभावित क्यों नहीं हैं?’’
गृहमंत्री ने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि कश्मीर पाकिस्तान की सीमा के करीब है, इसलिए यहां समस्या आई. उन्होंने सवाल किया, ‘‘लेकिन गुजरात भी पाकिस्तान की सीमा के करीब है. राजस्थान भी पाकिस्तान की सीमा के करीब है. वहां आतंकवाद क्यों नहीं पनपा?’’
शाह ने कहा कि अनुच्छेद-370 ने यह गलत धारणा दी कि कश्मीर का भारत के साथ एकीकरण अस्थायी है और इसने अलगाववाद के बीज बोये, जो बाद में आतंकवाद में बदल गए.
Amit Shah Kashmir Speech: कश्यप की कहानी जिनके नाम से बना कश्मीर, अमित शाह ने पलटे इतिहास के पन्ने
गृहमंत्री ने कहा कि दुर्भाग्य से कश्मीर में आतंकवाद के कारण 40,000 से अधिक लोगों की जान चली गई. उन्होंने कहा, ‘‘मोदी सरकार ने कश्मीर में न केवल आतंकवाद को, बल्कि आतंकवाद के ढांचे को भी खत्म किया.’’
शाह ने कहा कि कश्मीर का विकास दशकों तक लटका रहा, वर्षों तक कश्मीर में खून-खराबा होता रहा और देश को चुपचाप यह सब देखना पड़ा.
उन्होंने दावा किया, ‘‘अनुच्छेद-370 के खात्मे के बाद कश्मीर में आतंकवाद की घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी आई है और इससे साबित हो गया है कि अनुच्छेद-370 ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया. 2018 में कश्मीर में पत्थरबाजी की 2,100 घटनाएं हुईं, लेकिन 2024 में पत्थरबाजी की एक भी घटना नहीं हुई.’’
गृहमंत्री ने दावा किया कि जब यह अनुच्छेद (संविधान में) लाया गया था, तब भी लोग इसे नहीं चाहते थे. उन्होंने कहा कि संविधान सभा में भी बहुमत नहीं चाहता था कि अनुच्छेद-370 संविधान का हिस्सा बने, लेकिन यह संविधान का हिस्सा बना.
शाह ने कहा कि सौभाग्य से, कुछ दूरदर्शी लोगों ने इसे एक अस्थायी प्रावधान के रूप में लिखना आवश्यक समझा. उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन जो चीजें कृत्रिम होती हैं और प्राकृतिक नहीं होती हैं, वे लंबे समय तक नहीं रहतीं. प्रधानमंत्री मोदी की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद-370 को समाप्त कर दिया गया. मोदी ने स्वतंत्र भारत के इतिहास के एक काले अध्याय को समाप्त करने का काम किया है.’’