Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ सरकार उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी, जिसमें साल 2012 में राज्य सरकार के द्वारा आरक्षण के प्रतिशत में बढ़ोतरी के मामले में हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है.
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Chhattisgarh: सत्य प्रकाश/रायपुर। आरक्षण को लेकर आए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के फैसले के खिलाफ भूपेश सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी. इस संबंध में सरकार की ओर से बयान जारी किया गया है. इसमें अनुसूचित जाति और जनजाति के हितों की रक्षा के लिए अंतिम सीढ़ी तक कानूनी लड़ाई लड़ने की बात कही हई है.
सरकार ने जारी किया बयान
राज्य सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि सरकार का मानना है कि भले 2012 में समुचित रूप से इस मामले में तथ्य तत्कालीन सरकार ने पेश नहीं किए थे, परन्तु फिर भी छत्तीसगढ़ राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण प्रतिशत को देखते हुए राज्य सरकार हाईकोर्ट के फैसले से पूरी तरह असहमत हैं.
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राज्य सरकार ये मानती है कि इस निर्णय से राज्य के आरक्षित वर्ग में समुचित विकास का मार्ग बाधित होगा. इस निर्णय से राज्य सरकार सहमत नहीं है और राज्य सरकार निर्णय को चुनौती देते हुए आरक्षित वर्ग को न्याय दिलाने में साथ खड़ी है. किसी भी सूरत में अनुसूचित जाति और जनजाति के हितों की रक्षा के लिए क़ानून की अंतिम सीढ़ी तक लड़ाई लड़ी जाएगी और जो भी आवश्यक हो कदम उठाए जाएंगे.
क्या हैं हाईकोर्ट के आदेश
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में 58% आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है. चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस पीपी साहू की बेंच कहा कि किसी भी स्थिति में आरक्षण 50% से ज्यादा नहीं होना चाहिए. बता दें साल 2012 में बनाए गए आरक्षण नियम को चुनौती देते हुए अलग-अलग 21 याचिकाएं दायर की गई थी.
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क्या है साल 2012 का आरक्षण नियम
छत्तीसगढ़ सरकार ने साल 2012 में आरक्षण नियमों में संशोधन किया था. इसके अनुसार अनुसूचित जाति वर्ग का आरक्षण प्रतिशत 4 फीसदी घटाकर 12 कर दिया गया था. वहीं, अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 20 से बढ़ाकर 32 कर दिया था. इसमें OBC का आरक्षण यथावत रखा गया था. ST/SC के आरक्षण में असामान्य ढ़ंग से हुई कटौती और बढ़ोतरी को लेकर हाईकोर्ट में याचिकाएं लगाई गईं थी.