बाबा महाकाल के मंदिर में देश, प्रदेश व नगर में उत्तम वर्षा के लिए पंचदिवसीय अनुष्ठान का आयोजन आज विधि विधान से संपन्न हुआ. इस दौरान कलेक्टर ने 16 पुजारी 21 पुरोहित व बटुकों के साथ यज्ञ में दी आहुति दी. साथ ही परंपराओं का निर्वहन करते हुए तलवार चलाई.
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राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल के धाम में नंदी हॉल में बैठ कर मंदिर के 16 पुजारी 21 पुरोहितों ने एक साथ देश, प्रदेश व नगर में उत्तम वर्षा वृष्टि के लिए पांच दिनों तक कामना की और बाबा महाकाल व ऋषि श्रृंगी का महारुद्राभिषेक किया. 23 जून से 27 जून तक चले इस अनुष्ठान के अंतिम दिन जिला कलेक्टर व मन्दिर समिति अध्यक्ष आशीष सिंह ने यज्ञ में तमाम पुजारी पुरोहितों संग आहुति दी. साथ ही तलवार से कद्दु को 3 से 4 बार काट परंपरा का निर्वहन किया.
बता दें कि गुरुवार को पहले दिन भी जिला कलेक्टर आशीष सिहं अपनी पत्नी के साथ शामिल हुए थे और परंपरा अनुसार भगवान महाकाल व ऋषि श्रृंगी के शीश पर शीतल जलधारा प्रवाहित कर पंच दिवसीय महारुद्राभिषेक की शुरुआत की पुजारी पुरोहितों के साथ की थी. भगवान महाकाल और ऋषि श्रृंगी को प्रसन्न करने के लिए यह परंपरा हर साल निभाई जाती है.
जानिये कैसे होता है महारुद्राभिषेक और क्या है महत्व
दरअसल महारुद्राभिषेक ब्राह्मण वेदमंत्र की ऋचाओं से भगवान महाकाल और ऋषि श्रृंगी का अभिषेक पूजन कर श्रेष्ठ वर्षा के लिए या अन्य किसी मौके पर कर बाबा महाकाल से इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए प्रार्थना की जाती है. जिसमें पुजारी, पुरोहित ही नहीं बटुक भी शामिल होते है. मंदिर के पुजारी आशीष गुरु ने कहा कि बाबा के धाम में समय-समय पर हर परिस्थिति में अनुष्ठान किया जाता है. उसी क्रम में इस वर्ष क्योकि गर्मी में सूर्य देव का प्रकोप ज्यादा दिखाई दिया तो महारुद्राभिषेक कर कामना की गई कि प्रदेश व नगर में अच्छी वर्षा हो, किसानो को व देश के तमाम नागरिको को राहत मिले कोई जनहानि जैसे हालात नहीं बने यही पूजा का उद्देश्य था.
जानिए कौन है ऋषि श्रृंगी
मंदिर के पुजारी घनश्याम गुरु ने बताया कि ऋषि श्रृंगी के मस्तक पर जन्म से ही सिंग था, जिसके कारण उनका नाम श्रृंगी पड़ गया. ऋषि श्रृंगी ही ऐसे ऋषि हैं, जिनके आव्हान से इंद्र देव प्रसन्न होते है और उत्तम वर्षा करते है, इसीलिए ऋषि श्रृंगी की मूर्ति पर बाबा महाकाल के साथ सतत जलधारा प्रवाहित की गई.
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