भारत में नदियों को बेहद पवित्र माना जाता है. कई नदियों को मां का दर्जा दिया जाता और उनकी पूजा की जाती है. कहा जाता है कि इन नदियों में स्नान करने से पहले कई जन्मों की पाप नष्ट हो जाते हैं. लेकिन भारत के मध्य प्रदेश राज्य में एक ऐसी नदी है, जिसमें नहाना अशुभ माना जाता है. यही नहीं इस नदी को बाकी नदियों की तरह पूजा भी नहीं जाता....
इंदौर जिले के महू से निकलकर राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तक 965 किमी तक बहने वाली चंबल नदी कई रहस्यों से भरी हुई है. इस नदी की बारे में कई तरह की कहानियां सुनाई जाती हैं. चंबल नदी के किनारे रहने वाले लोग भी इस नदी में स्नान करना पसंद नहीं करते हैं.
चंबल नदी को कहानियों में श्रापित नदी भी कहा जाता है. एक कथा के अनुसार द्रौपदी ने नदी को श्राप दिया था. कहा जाता है कि महाभारत काल में चंबल के किनारे ही कौरवों और पांडवों के बीच द्युत क्रीड़ा हुई थी. इसमें पांडव द्रौपदी को दुर्योधन से हार गए थे. इस घटना से आहत होकर ही द्रौपदी ने चंबल की पूजा-अर्चना से परहेज किए जाने का श्राप दिया था.
शास्त्रों के अनुसार, जानवरों के खून से इस नदी का उद्गम हुआ माना जाता है. कहानी प्रचलित है कि राजा रंतिदेव ने हजारों यज्ञ व अनुष्ठान कराए थे. इन्हीं यज्ञों व अनुष्ठानों में कई निर्दोष पशुओं की बलि दी जाती थी. इन्हीं पशुओं के रक्त और बची हुई पूजन सामग्री से चर्मण्यवती यानी चंबल नदी का उद्गम माना जाता था.
चम्बल नदी का प्राचीन नाम चर्मण्वती बताया जाता है. जिसका मतलब है कि वह नदी जिसके किनारे चमड़ा सुखाया जाता है. कालांतर में यह नदी चर्मण नदी के नाम से प्रसिद्ध हुई और इसका नाम चर्मण्वती रखा गया. अब इसे चंबल कहा जाता है.
राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का बिहड़ों वाला हिस्सा चंबल क्षेत्र के नाम से जाता है. यह सुनसान इलाका दशकों से डाकुओं और बागियों का पनाहगार रहा है. कहा जाता है कि डाकू कई बार लोगों की हत्या के बाद शवों को चंबल में फेंक देते थे.
चंबल नदी देश की सबसे साफ नदियों में शुमार है. बावजूद इसके चंबल को पवित्र नहीं माना जाता है. नदियों को जीवनदायिनी भी कहा जाता है, क्योंकि इनके पानी से लोगों की प्यास बुझती और खेतों की सिंचाई होती है. लेकिन लोग आज भी बाकी पवित्र नदियों की तरह चंबल की पूजा नहीं करते हैं.
लोग इस नदी में स्नान करने से बचते हैं. हालांकि, ऐसा पूरी तरह सच नहीं है. नदी के किनारे रहने वाले लोग कई सालों से इस नदी में स्नान करते आए हैं. हां, लेकिन इसमें स्नान का प्रथा नहीं है. इसका एक तथ्य यह भी हो सकता है कि नदी में घड़ियालों की संख्या काफी ज्यादा है. जिससे जान का खतरा बना रहता है.
चंबल इलाकों में पहले के समय में लोगों की पहुंच चंबल नदी तक आसान भी नहीं हुआ करती थी. एक तो गहरे और ऊंचे बीहड़ों में आने जाने का कोई रास्ता नहीं था. दूसरा डाकुओं की वजह से लोग सुनसान नदी के किनारों पर जाने से बचा करते थे. इसलिए यहां नहाने की प्रथा ही शुरू नहीं हुई.
चंबल नदी के आसपास के ज्यादातर इलाकों में मीलों तक बीहड़ फैले हुए हैं. पहले समय में इन बीहड़ों में खेती करना आसान नहीं था. इसके अलावा 12 महीनों बहने वाली चंबल बारिश के मौसम में विकराल रूप धारण कर लेती है, जिसका पानी कई किमी तक फैल जाता है.
चंबल नदी राजस्थान के कोटा जिले को पार करने के बाद सवाई माधोपुर और धौलपुर जिलों की सीमा से होकर बहती है. फिर आखिर में यह नदी उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है और 32 किलोमीटर बहती है. यह नदी इटावा के पास यमुना नदी में मिल जाती है. यमुना देश की दूसरी सबसे ज्यादा पूजनीय नदी है.
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