Darashikoh Murder Story: दाराशिकोह को औरंगजेब ने दो बार हराया था. 1658 में जून के महीने में आगरा के करीब सामूगढ़ में मात दी थी. उसके बाद मार्च 1659 में अजमेर के निकट देवराई में हराया था. देवराई में पराजित करने के बाद 30 अगस्त 1659 को दिल्ली में हत्या करा दी.
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Darashikoh Murder Story: दाराशिकोह की 30 अगस्त 1659 को मुगल बादशाह औरंगजेब ने हत्या कर दी थी, ऐसा माना जाता है कि शाहजहां को वो पहली पसंद थे और उनकी पसंद ही औरंगजेब की नापसंद बन गई. मुगल बादशाह शाहजहां बूढ़ा हो चला था. हिंदुस्तान के तख्त पर काबिज होने की महत्वाकांक्षा उसके चारों बेटों में प्रबल थी गद्दी की चाहत में वो एक दूसरे के खून के प्यासे बन गए थे. कई इतिहासकार मानते थे कि शाहजहां, दाराशिकोह को गद्दी सौंपना चाहता था लेकिन हिंदू धर्म के प्रति उसके झुकाव को ही औरंगजेब ने हथियार बनाया. अपने दो भाइयों की मदद से दाराशिकोह को काफिर करार दिया और गद्दी हासिल करने के लिए साजिशों को अंजाम देने लगा. अपने मकसद को हासिल करने के लिए पहले उसने अपने दो भाइयों को दाराशिकोह के खिलाफ भड़काया और जब दाराशिकोह को अंतिम रूप से परास्त कर दिया तो दोनों भाइयों को भी नहीं बख्शा.
सामूगढ़, देवराई में मिली थी हार
दाराशिकोह के बारे में कहा जाता है कि अगर उसे बादशाही मिली होती तो हिंदुस्तान की सियासत ने अलग रुख पकड़ा होता. लेकिन यहां पर हम जिक्र करेंगे कि किस तरह से शाहजहां के आंख के तारे को, लोगों के प्रिय शहजादे को औरंगजेब ने मरवा दिया. कहा जाता है कि दाराशिकोह की मौत पर पूरी दिल्ली रो पड़ी थी. सिर कलम किए जाने से पहले औरंगजेब ने दिल्ली वासियों को चांदनी चौक इलाके में इकट्ठा होने का हुक्म दिया था. देवराई के युद्ध में पराजित होने के बाद दाराशिकोह मारा मारा फिर रहा था हालांकि वो पकड़ में आ गया. कैदी बनाकर वो औरंगजेब के सामने पेश किया गया. कुछ देर बाद उसने अपने एक सिपहसालार नजर बेग को आदेश दिया कि दारा का सिर कलम कर दिया जाए. नजर बेग ने दारा के सिर को धड़ से अलग कर दिया.
पूरी दिल्ली रोती रही
एक तरफ दिल्ली के लालकिले में दाराशिकोह अंतिम गति को प्राप्त हो रहा था तो दूसरी तरफ चांदनी चौक इलाके में लोग कतारों में खड़े थे.औरंगजेब के सैनिक दारा के सिर लोगों को दिखाते रहे. पूरी दिल्ली अपने प्रिय शहजादे की मौत से दुखी थी, लोग रो रहे थे लेकिन औरंगजेब के खिलाफ कोई कैसे बोल सकता था. बताया जाता है कि दारा के सिर को उसने अपने पिता शाहजहां के पास भेजा था. शाहजहां अपने प्रिय बेटे के साथ साथ शाहशुजा और मुरादबख्श की मौत को बर्दाश्त न कर सका और अपने प्राण त्याग दिए.