कांग्रेस ने वर्शिप एक्ट 1991 के पक्ष में आवाज उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अदालत से कहा है कि यह कानून भारत में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए जरूरी है और सांप्रदायिक सद्भाव यकीनी बनाने के लिए जरूरी है. कांग्रेस के इस कदम के बाद भाजपा ने उसे नई मुस्लिम लीग करार दिया है.
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Amit Malviya on Congress: भाजपा ने कांग्रेस के ज़रिए पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट जाने को 'हिंदुओं के खिलाफ खुले युद्ध' का ऐलान करार दिया है. साथ ही कहा कि पार्टी अब 'नई मुस्लिम लीग' बन गई है. भाजपा के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर कहा,'कांग्रेस ने ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने के लिए कानूनी उपायों के हिंदुओं के मौलिक संवैधानिक अधिकार को अस्वीकार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. मालवीय ने आगे कहा कि कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से 'धर्मनिरपेक्षता की रक्षा' के बहाने पूजा स्थल अधिनियम 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने का आग्रह किया है.'
अमित मालवीय ने कहा,'कांग्रेस ने धार्मिक बुनियाद पर भारत के विभाजन को मंजूरी दी. इसके बाद, इसने वक्फ कानून पेश किया, जिससे मुसलमानों को अपनी मर्जी से संपत्तियों पर दावा करने और देश भर में मिनी-पाकिस्तान स्थापित करने का हक मिल गया. बाद में इसने पूजा स्थल अधिनियम लागू किया, जिससे हिंदुओं को अपने ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों को वापस लेने का अधिकार प्रभावी रूप से नकार दिया गया. अब, कांग्रेस ने हिंदुओं के खिलाफ खुली जंग का ऐलान कर दिया है.'
इससे पहले कांग्रेस ने पूजा स्थल अधिनियम के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाते हुए कहा कि यह कानून भारत में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए जरूरी है और सांप्रदायिक सद्भाव यकीनी बनाने के लिए जरूरी है. कांग्रेस ने इस अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि यह अनुच्छेद 14 (कानून के सामने बराबरी और बराबरी का संरक्षण), अनुच्छेद 15 (धर्म की बुनियाद पर भेदभाव का विरोध), अनुच्छेद 25 (अपने धर्म को मानने और उसका पालन करने का हक), अनुच्छेद 26 (किसी समुदाय को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का हक) और अनुच्छेद 29 (नागरिकों के सांस्कृतिक अधिकारों की हिफाजत) का उल्लंघन करता है.
बता दें कि भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए आंदोलन के मद्देनजर नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार के ज़रिए इसे लागू करने के कदम के बाद से ही पूजा स्थल अधिनियम का विरोध किया था. भाजपा के कड़े विरोध के बीच पास होने वाले इस बिल में अयोध्या में विवादित स्थल को छोड़कर सभी पूजा स्थलों के स्वरूप को स्थिर करने की बात कही गई है, जैसा कि 15 अगस्त 1947 को था. इसका मकसद वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह पर संघ परिवार के कब्जे को रोकना था, लेकिन हाल के दिनों में यह पहली बार है कि भाजपा ने अपना रुख दोहराया है.
याचिकाकर्ताओं और संघ परिवार ने कहा है कि वाराणसी की मस्जिद का निर्माण 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक यानी पौराणिक काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाई गई थी और मथुरा ईदगाह भगवान कृष्ण की जन्मभूमि पर बनी है. भाजपा का रुख इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने चेतावनी दी है कि हर मस्जिद के नीचे मंदिर खोजने की जरूरत नहीं है. एक ऐसा रुख जिसे प्रमुख हिंदू धार्मिक हस्तियों ने खारिज कर दिया है और ऐसा लगता है कि यह उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदुओं की संपत्तियों और मंदिरों को वापस लेने की कोशिश के विपरीत है, जिन्हें 1978 के दंगों में कई लोगों की जान जाने के बाद उन्हें छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था.