Karva Chauth Fast: पत्नी ने नहीं रखा करवा चौथ का व्रत, पति पहुंच गया कोर्ट; अब हाई कोर्ट ने कही ये बात
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Karva Chauth Fast: पत्नी ने नहीं रखा करवा चौथ का व्रत, पति पहुंच गया कोर्ट; अब हाई कोर्ट ने कही ये बात

Delhi High Court: अदालत ने कहा कि यदि पति या पत्नी में से कोई भी अपने जीवनसाथी को वैवाहिक संबंध से वंचित करता है तो विवाह टिक नहीं सकता और ऐसा करना क्रूरता है।

Karva Chauth Fast: पत्नी ने नहीं रखा करवा चौथ का व्रत, पति पहुंच गया कोर्ट; अब हाई कोर्ट ने कही ये बात

Husband-Wife Dispute: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि करवा चौथ के त्योहार पर उपवास न करना पत्नी की पसंद हो सकती है, यह न तो क्रूरता है और न ही वैवाहिक संबंधों को तोड़ने के लिए पर्याप्त वजह है. हालांकि हाईकोर्ट ने पति की तलाक अर्जी को स्वीकार किए जाने के फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा.

हाई कोर्ट ने महिला की याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला दिया. महिला ने पति के पक्ष में तलाक की अनुमति देने के फैमिली कोर्ट के निर्णय को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी.

क्या है मामला?
इस जोड़े की शादी अप्रैल 2009 में हुई थी और अक्टूबर 2011 में उनकी एक बेटी का जन्म हुआ. महिला ने बच्ची को जन्म देने से कुछ दिन पहले अपनी ससुराल छोड़ दी थी.

पति ने पारिवारिक अदालत में तलाक की याचिका दायर की थी और दावा किया था कि वैवाहिक जीवन की शुरुआत से ही उसकी पत्नी उसके प्रति उदासीन थी और उसे अपने वैवाहिक दायित्वों के निर्वहन में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी ने घर का काम करने से इनकार कर दिया जिसके बाद पति के पिता को भोजन पकाने जैसे नियमित कार्य करने के लिए मजबूर होना पड़ा. महिला ने पति द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज किया है.

पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी छोटी-छोटी बातों पर नाराज हो जाती थी और उसके परिवार से झगड़ा करती थी. उसने दावा किया कि एक बार उसने ‘करवाचौथ’ का व्रत रखने से इसलिए इनकार कर दिया था क्योंकि पति ने उसका मोबाइल फोन रिचार्ज नहीं करवाया था. हिंदू विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सलामती के लिए व्रत रखती हैं.

हाई कोर्ट ने इस घटना को माना अंतिम कदम
पति ने कहा कि अप्रैल 2011 में जब उसे स्लिप डिस्क की समस्या हुई, तो उसकी पत्नी ने उसकी देखभाल करने के बजाय अपने माथे से सिंदूर हटा दिया, अपनी चूड़ियां तोड़ दीं और सफेद सूट पहन लिया और घोषणा की कि वह विधवा हो गई है.

हाई कोर्ट ने इस घटना को ‘वैवाहिक रिश्ते को अस्वीकार करने का एक अंतिम कदम’  करार दिया, लेकिन पीठ ने स्पष्ट किया कि ‘करवाचौथ’ पर उपवास रखना या न रखना व्यक्तिगत पसंद हो सकती है और अगर निष्पक्षता से विचार किया जाए तो इसे क्रूरता का कार्य नहीं कहा जा सकता है.

अदालत ने कहा कि यदि पति या पत्नी में से कोई भी अपने जीवनसाथी को वैवाहिक संबंध से वंचित करता है तो विवाह टिक नहीं सकता और ऐसा करना क्रूरता है.

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा, ‘‘किसी पति के लिए उसके जीवित रहते अपनी पत्नी को विधवा के रूप में देखने से अधिक कष्टदायक कुछ और नहीं हो सकता तथा वह भी खासकर ऐसी स्थिति में, जब वह गंभीर रूप से घायल हो और उसे अपने जीवनसाथी से देखभाल एवं करुणा के अलावा और किसी चीज की उम्मीद नहीं हो.

निस्संदेह, याचिकाकर्ता/पत्नी के ऐसे आचरण को प्रतिवादी/पति के प्रति अत्यधिक क्रूरता का कार्य ही कहा जा सकता है.’

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