G20 Summit 2023: 'हम क्यों हैं विश्वगुरु', इस एक तस्वीर से पीएम मोदी ने दुनिया को दे दिया संदेश
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G20 Summit 2023: 'हम क्यों हैं विश्वगुरु', इस एक तस्वीर से पीएम मोदी ने दुनिया को दे दिया संदेश

History of Ancient Nalanda University: पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत में पहली बार हुए जी20 सम्मेलन में दुनिया को देश के गौरवशाली इतिहास से रूबरू कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने एक ऐसी ही तस्वीर शनिवार शाम से दुनियाभर में ट्रेंड करती रही.

G20 Summit 2023: 'हम क्यों हैं विश्वगुरु', इस एक तस्वीर से पीएम मोदी ने दुनिया को दे दिया संदेश

Who Established Nalanda University: देश में पहली बार आयोजित हुए जी-20 सम्मेलन (G20 Summit 2023) में पीएम नरेंद्र मोदी भारत की महान संस्कृति को बेहतरीन तरीके से उकेरने में सफल रहे. उन्होंने इसकी शुरुआत वसुधैव कुटुंबकम को समिट का ध्येय वाक्य बनाकर की. इसके बाद सम्मेलन के मेजबान के रूप में इंडिया के साथ हिंदी में भारत नाम को शामिल कर इसे आगे बढ़ाया. जबकि समिट का अंत दुनिया की सबसे प्राचीनतम नालंदा यूनिवर्सिटी को दिखाने से हुई.

राष्ट्रपति मुर्मू ने किया स्वागत

दिनभर वार्ताओं के अनेक दौर और घोषणा पत्र जारी करने के तनाव के बाद दुनियाभर के प्रभावशाली नेता शाम के समय राष्ट्रपति भवन में एकत्रित हुए. वहां पर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने उन सभी नेताओं का स्वागत किया. इस दौरान एक-एक करके सभी नेताओं ने मंच पर आकर राष्ट्रपति मुर्मू से मुलाकात की. मंच पर मौजूद पीएम मोदी ने विदेशी अतिथियों का प्रेजिडेंट मुर्मू से परिचय करवाया.

बैकग्राउंड में लगी थी ये तस्वीर

इस दौरान मंच पर बैकग्राउंड में 1 हजार साल पहले ध्वस्त हो चुकी बिहार की नालंदा यूनिवर्सिटी (Ancient Nalanda University) की तस्वीर लगी थी. पीएम मोदी मंच पर आने वाले सभी नेताओं को दुनिया की इस पहली और प्राचीनतम यूनिवर्सिटी के वैभव और ज्ञान के भंडार के बारे में विस्तार से बता रहे थे. वे बता रहे थे कि जब दुनिया अज्ञान के अंधेरे में डूबी थी, तब भारत पूरे विश्व में ज्ञान का उजियारा फैला रहा था. वे यह भी बता रहे थे कि नालंदा यूनिवर्सिटी दुनिया की पहली आवासीय यूनिवर्सिटी थी, जिसमें पढ़ने के लिए दुनियाभर के स्टूडेंट्स भारत आते थे. 

 

हिंदू सम्राट ने की थी स्थापना

बताते चलें कि बिहार के नालंदा जिले में बने नालंदा विश्वविद्यालय (Ancient Nalanda University) की स्थापना 427 ईस्वी में गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमारगुप्त ने की थी. वे एक महान हिंदू शासक थे लेकिन उन्होंने उस समय उभर रहे बौद्ध ज्ञान का भी समर्थन किया था और यह विश्वविद्यालय उसी का प्रतीक था. इस विश्वविद्यालय को बाद में चलकर महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला. 

90 लाख से ज्यादा किताबें

इस विश्वविद्यालय को दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय (Ancient Nalanda University) माना जाता है. इसमें विभिन्न विषयों की 9 मिलियन यानी 90 लाख से ज्यादा किताबें हुआ करती थी. दुनिया के पहले और प्रतिष्ठित इस विश्वविद्यालय में उस समय करीब पूर्वी और मध्य एशिया समेत विभिन्न देशों के 10 हजार छात्र-छात्रा पढ़ते थे. यहां से पढ़कर कई महान विद्वानों ने बाद में चिकित्सा, तर्क, गणित और बौद्ध धर्म से जुड़े सिद्धांत सामने रखे. खुद एक बार दलाई लामा ने कहा था, 'हमारे पास मौजूद सभी ज्ञान का स्रोत नालंदा से आया है.'

पढ़ते थे 10 हजार छात्र

नालंदा विश्वविद्यालय (Ancient Nalanda University) 7 शताब्दियों से भी अधिक समय तक खूब फला-फूला. इसके जैसा विश्वविद्यालय दुनिया में और कोई दूसरा नहीं था. इसने भारत के ज्ञान भंडार और संस्कृति को पूरी दुनिया में फैलाने में बड़ी मदद की. माना जाता है कि गणित के जनक आर्यभट्ट छठी शताब्दी ईस्वी में इस विश्वविद्यालय के प्रमुख थे. विश्वविद्यालय की ओर से अपने कुछ सर्वश्रेष्ठ विद्वानों को बौद्ध शिक्षाओं और दर्शन का प्रचार करने के लिए चीन, कोरिया, जापान, इंडोनेशिया और श्रीलंका जैसे स्थानों पर भेजा गया. इस सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम ने पूरे एशिया में बौद्ध धर्म को फैलाने और आकार देने में मदद की.

 

कैसे नष्ट हुआ नालंदा विश्वविद्यालय?

इतिहासकारों के मुताबिक वर्ष 1190 के दशक में तुर्क-अफगान सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में इस्लामी हमलावरों (Ancient Nalanda University) ने भारत पर हमला किया. उस वक्त बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार अफगानिस्तान समेत मध्य एशिया में धीरे-धीरे बढ़ रहा था. इससे इस्लामी शक्तियां खतरा महसूस करती थी. 

बख्तियार खिलजी का पहला उद्देय भारत पर हमला करके यहां से सोने-चांदी की लूट करना था. लेकिन इसके साथ ही दुनिया में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहा नालंदा विश्वविद्यालय भी उसके निशाने पर था. उसके निर्देश पर खिलजी के सैनिकों ने विश्वविद्यालय में आग लगा दी. यह आग इतनी भयानक थी कि कई महीनों तक बुझ नहीं सकी थी. इसके साथ ही दुनिया से भारतीय संस्कृति और ज्ञान का यह शानदार अध्याय हमेशा के लिए खत्म हो गया. 

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