Parliament Suspension Row Vice President Mimicry: आजादी के बाद भारत के संसदीय इतिहास में नोकझोंक, तीखी बहस, आरोप-प्रत्यारोप बार-बार लगे लेकिन हास्य के पुट से वो गुस्सा हवा हो जाता. ऐसे मौके कम ही आए जब दंडात्मक कार्रवाई की गई और किसी पक्ष की बात नहीं सुनी गई. हंगामेदार शीतकालीन सत्र के बार उस दौर को याद कर लेना चाहिए.
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संसद के एक और सत्र का समापन हो गया है. लोकसभा की सुरक्षा में चूक के साथ-साथ इस शीतकालीन सत्र को 143 सांसदों को सस्पेंड किए जाने और राज्यसभा के सभापति की नकल उतारने के लिए जाना जाएगा. जन प्रतिनिधियों को सस्पेंड किए जाने की वजह अमर्यादित आचरण बताई गई है. विपक्ष के सांसद लोकसभा की सुरक्षा में चूक पर पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से संसद में बयान देने की मांग कर रहे थे. सदन में विपक्ष के सांसदों ने तख्तियां दिखाईं तो तीखी आलोचना हुई. खूब हंगामा, शोरगुल हुआ. अब संसद खामोश है. समय मिला है तो जरा इतिहास के पन्ने पलट लेते हैं. क्या सरकार और विपक्ष के बीच देश के 70 साल के इतिहास में ऐसा ही होता आया है? क्या विरोध, आलोचना और ऐक्शन ऐसे ही होता रहा है? पक्ष या विपक्ष पर उंगली मत उठाइए, बस पीछे जाकर जरा माहौल भांप आते हैं. हमारे देश के दिग्गज नेताओं नेहरू, लोहिया, अटल, सुषमा के समय कैसे संसद चली थी?
जब नेहरू के सामने कहा 'चपरासी'
एक बार की बात है. नेहरू पर डॉ. राम मनोहर लोहिया बरस रहे थे. उन्होंने कहा, 'मैं यह साबित कर सकता हूं कि प्रधानमंत्री के दादा चपरासी थे.' हालांकि तब सत्ता पक्ष में से किसी ने भी इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया और न ही सरकार के इशारे पर नेहरू की जाति के लोग अपमान की बात करते हुए प्रोटेस्ट करने उतरे. इसकी बजाय नेहरू ने हास्य का पुट लेकर कहा, 'मुझे खुशी है कि माननीय सदस्य ने आखिरकार वो बात स्वीकार कर ली, जो मैं उन्हें इतने सालों से बताने की कोशिश कर रहा था कि मैं जनता का आदमी हूं.'
'फिरोज गांधी लैपडॉग'
एक बार पूर्व वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी ने फिरोज गांधी को नेहरू का 'लैपडॉग' कह दिया, लेकिन कोई निलंबन नहीं हुआ. उलटे फिरोज गांधी ने कृष्णामचारी को 'पिलर ऑफ नेशन' बताते हुए कहा कि वह वही करेंगे जो एक डॉग को पिलर के साथ करना चाहिए. कुछ ऐसे ही उच्च सदन में गूंजे ह्यूमर को पूर्व महासचिव योगेंद्र नारायण ने इकट्ठा कर पंक्तिबद्ध भी किया है. बाद के वर्षों में भी यह हंसी मजाक सदन में गूंजता रहा. अब जरा आज का उदाहरण ले लीजिए कोई किसी बड़े नेता को 'डॉग' कह दे तो क्या होगा? वैसे कहना भी नहीं चाहिए.
सांप और मदारी की चर्चा
एक बार मदारियों द्वारा सांपों को मारने के विषय पर बहस हो रही थी. लालू प्रसाद यादव ने पूछ लिया कि क्या सरकार के पास उन सांपों के लिए कोई प्लान है जो शास्त्रों के अनुसार पुनर्जन्म लेने वाले हैं! सदन में ठहाके गूंजने लगे तो मुरली मनोहर जोशी बोल पड़े, 'आपसे मेरा एकमात्र निवेदन यह है कि उनमें से किसी को भी इस सदन में आने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए!'
सुषम स्वराज की वो बात
'आउटलुक' की एक रिपोर्ट के मुताबिक संसद की पुरानी बिल्डिंग में एक वाकया भाजपा की दिवंगत नेता सुषमा स्वराज और उनके पति स्वराज कौशल का भी है. शबाना आजमी की संसद से विदाई में फेयरवेल स्पीच देते समय सुषमा ने कहा कि उनके पति उन्हें सबसे ज्यादा मिस करेंगे क्योंकि वह उन चुनिंदा महिला सहयोगियों में से एक थीं जो उनके साथ बैठती थीं! कौशल तुरंत खड़े हो गए और चेयर को संबोधित करते हुए कहा, 'सर, ये शिकायत करने का मंच नहीं है. इस पर तो घर पर बहुत चर्चा हो चुकी है'
ऐसे न जाने कितने उदाहरण हमारे संसदीय इतिहास में दबे पड़े हैं लेकिन अफसोस आज के नेता इसे पलटना नहीं चाहते हैं. नेहरू प्रधानमंत्री थे और अटल बिहारी वाजपेयी विपक्ष के उभरते चेहरे. नेहरू को वाजपेयी में 'भविष्य का प्राइम मिनिस्टर' दिखता था. खूब नोकझोंक चलती. एक बार अटल ने कहा था मैं जानता हूं पंडित जी रोज शीर्षासन करते हैं. वह शीर्षासन करें मुझे आपत्ति नहीं है लेकिन मेरी पार्टी (तब जनसंघ) की तस्वीर उल्टी न देखें. यह सुनकर नेहरू ने जोर का ठहाका लगाया था. आज संसद में वो हास्य शायद चमचमाती कालीन के नीचे दब गया है. बात-बात पर अपमान और मर्यादा की दुहाई दी जाने लगी है.
नेहरू के निधन पर अटल की ऐतिहासिक स्पीच
बाद में नेहरू नहीं रहे तो विपक्ष का होने के बावजूद अटल ने भारत के पहले प्रधानमंत्री की याद में जो कहा था वह आज भी पक्ष और विपक्ष के नेताओं की महत्ता को बताने के लिए शायद सबसे बड़ा उदाहरण है. अटल ने कहा था, 'एक सपना था जो अधूरा रह गया, एक गीत था जो गूंगा हो गया... सपना था एक ऐसे संसार का जो भय और भूख से मुक्त हो, लौ थी एक ऐसे दीपक की जो रातभर जलता रहा, हर अंधेरे से लड़ता रहा और हमें रास्ता दिखाकर निर्वाण को प्राप्त हो गया... कल कंचन की जिस काया को हम चंदन की चिता पर चढ़ा कर आए, उसका नाश निश्चित था लेकिन क्या यह जरूरी था कि मौत इतनी चोरी छिपे आती? जब संगी-साथी सोए थे, जब पहरेदार बेखबर थे, हमारे जीवन की एक अमूल्य निधि (संपत्ति) लुट गई. भारत माता आज शोकमग्न है, उसका सबसे लाडला राजकुमार खो गया. मानवता आज खिन्न है, उसका पुजारी सो गया. शांति आज अशांत है, उसका रक्षक चला गया. दलितों का सहारा छूट गया. जन-जन की आंख का तारा टूट गया. नीचे वीडियो देखिए इस स्पीच को अरुण जेटली ने दोहराया था.
Those who claim political legacy of Pt. Nehru must read Shri Atal Bihari Vajpayee’s ji obituary reference to Pt. Nehru : Shri @arunjaitley at #IndiaIdeasConclave2018
Watch full speech at https://t.co/j515fnmzvW pic.twitter.com/jk25lheKoV
— BJP (@BJP4India) October 28, 2018