Parsi society news: नौवीं शताब्दी में गुजरात में कुछ लोग आकर बस गए. उस दौरान समाज के लोगों की संख्या कितनी थी यह तो कोई नहीं बता सकता लेकिन पूर्वज बताते हैं कि उस दौरान पारसी समाज खेती-बाड़ी करते थे और एक बेहतरीन शिल्पकार भी हुआ करते थे.
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Parsi society: भारत में पारसी समाज के लोगों ने बहुत योगदान दिया है. टाटा, गोदरेज, वाडिया, मिस्त्री, पूनावाला का नाम तो लगभग सभी ने सुना होगा, क्योंकि यह देश के एक बड़े और प्रतिष्ठित व्यापारिक घराने से हैं. यह सभी पारसी समुदाय से हैं जोकि सदियों से भारत में रह रहे हैं. भारत के विकास में इस समुदाय ने बहुत ही अच्छा योगदान दिया है. भारत के अंदर यह समाज बेहद मॉर्डनाइज और अत्याधिक पढ़ा लिखा है. भले ही समाज की आबादी घट रही हो लेकिन जितनी भी आबादी है वह बहुत ही शिक्षित है.
ऐसे बसा पारसी समाज
नौवीं शताब्दी में गुजरात में कुछ लोग आकर बस गए. उस दौरान समाज के लोगों की संख्या कितनी थी यह तो कोई नहीं बता सकता लेकिन पूर्वज बताते हैं कि उस दौरान पारसी समाज खेती-बाड़ी करते थे और एक बेहतरीन शिल्पकार भी हुआ करते थे. खासतौर पर वुडक्राफ्ट में वह काफी रूचि रखते थे. यह मेहनती होते थे, इसलिए खेती-बाड़ी अच्छी करते थे. जब देश में अंग्रेजों का शासन हुआ और उन्होंने स्कूल खोले तो इसका सबसे ज्यादा फायदा पारसी समाज के लोगों ने उठाया. खास बात यह है कि उस समय पारसी समाज के लड़कों के साथ-साथ उनके घर की लड़कियां भी शिक्षा हासिल करने में बड़ी संख्या में जाती थी. अंग्रेजों ने भी पारसी समाज को व्यापार में ज्यादा महत्व दिया. इसकी वजह यह थी कि उनके अंदर हिंदू और मुस्लिम समाज की तरह रीति रिवाज नहीं थे. पारसी समाज बिल्कुल अलग था. इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें ज्यादा प्राथमिकता दी और पारसी समाज सबके साथ मिलजुल कर रहने लगा.
मुंबई में आकर बस गए
इंग्लैंड के किंग चार्ल्स द्वितीय को दहेज के रूप में पुर्तगाली शासन ने करीब साढ़े तीन सौ साल पहले मुंबई आयलैंड दिया था. धीरे-धीरे मुंबई में व्यापारिक गतिविधियां बढ़ गई और कोलकाता से ज्यादा बिजनेस मुंबई में होने लगा. फिर धीरे-धीरे पारसी समाज भी अंग्रेजों के साथ यहां आकर रहने लगा. मुंबई को बनाने वाला पारसी समाज ही है. पारसी समाज ने ही मुंबई में अपने लोगों के लिए कई कालोनियों का निर्माण किया था. जिन्हें आज बाग के नाम से जाना जाता है.
धीरे-धीरे देर से होने लगी शादियां
जैसे-जैसे पारसी समाज के लोग शिक्षित होते गए वैसे-वैसे उनके घर में शादियां भी देर से होने लगी. इनकी पूरी संस्कृति वेस्टर्न जैसी हो गई. अक्सर उस दौर में लड़कियां 26, 27 साल तक पढ़ाई पूरी कर दी थी. फिर अपने को कहीं सेटल करती थी. इसके बाद शादी करने का निर्णय लेती थी. नतीजा यह हुआ कि अब वहां शादियां लेट होने लगी. पहले के समय पारसी समाज बहुत बड़ा था मगर धीरे-धीरे अब इनका आकार छोटा होता जा रहा है क्योंकि पहले शिक्षा, चिकित्सा यह सब बहुत सस्ता हुआ करता था. लेकिन अब उतना ही महंगा हो गया है.
30 फीसदी लोग हैं अविवाहित
पारसी समाज में अभी भी 30% लोग अविवाहित है. दुनिया में सबसे कम विवाह का औसत इसी समाज में है. शादी हो भी गई तो बच्चे बहुत कम है. जिस कारण समाज के लोगों की संख्या कम होती जा रही है. दिल्ली में तो 40 से 50 फ़ीसदी पारसी मिक्स मैरिज कर रहे हैं, लेकिन अब धीरे-धीरे आबादी बढ़ाने की कोशिश की जा रही है. दिल्ली में करीब 800 के आस-पास पारसी समाज के लोग हैं.
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