क्षेत्र के कई श्रद्धालुओं और व्यापारियों की दिनचर्या यहीं से शुरू होती है. सुबह-शाम को नियमित दर्शन करने वाले कई श्रद्धालुओं का मानना है कि नियमित दर्शन करने से उनकी समस्याओं का निवारण होता है. रविवार को दिन में तीन बार पूजा होती है. यह स्थल आसपास के 12 गांवों का आस्था का केंद्र है.
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Chittorgarh: जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर आजोलिया का खेड़ा मेड़ीखेड़ा के बीच पहाड़ी पर स्थित प्राचीन सगरा माता मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. ऐसी मान्यता है कि यहां से कोई खाली हाथ नहीं लौटता.
पानी की धराणी के नाम से विख्यात यह मंदिर तलहटी से करीब 700 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जहां लगभग सवा तीन सौ सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है. सगरा माता श्रद्धालुओं की आस्था और अटूट विश्वास का केंद्र है. ग्रामीणों की मान्यता है कि इस मंदिर की दहलीज पर आने वाले श्रद्धालु कभी खाली हाथ नहीं लौटते. यहां जो श्रद्धालु सच्चे मन से पूजा-अर्चना करता है, उनकी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं.
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क्षेत्र के कई श्रद्धालुओं और व्यापारियों की दिनचर्या यहीं से शुरू होती है. सुबह-शाम को नियमित दर्शन करने वाले कई श्रद्धालुओं का मानना है कि नियमित दर्शन करने से उनकी समस्याओं का निवारण होता है. रविवार को दिन में तीन बार पूजा होती है. यह स्थल आसपास के 12 गांवों का आस्था का केंद्र है.
किसने करवाया मंदिर का निर्माण
इस मंदिर के बारे में एक किंवदंती प्रचलित है कि 1400 वर्ष पूर्व सकरा नामक एक बंजारे की बालद (बैलों की जोड़ी) गुम हो गई, जो काफी ढूंढने पर भी नहीं मिली. तब उसने सगरा माता से मन्नत मांगी. माताजी के आशीर्वाद से उसे बालद मिल गई और उसने वहां मंदिर का निर्माण कराया. ऐसी मान्यता है कि सगरा माता से पानी की पाती मिलने पर नलकूप या - कुएं में पानी हो जाता है. इस मंदिर की पूजा-अर्चना का कार्य भील और गुर्जर जाति के लोग करते हैं.
इस स्थान के बारे में दंतकथा यह भी है कि एक बार नारसिंह माता अपनी बड़ी बहन सगरा माता से मिलने आई. अगवानी के लिए जब सगरा माता अपनी जगह से उठी तो नारसिंह माता वहां बैठ गई. इसके बाद से सगरा - माता खड़ी ही रही. माताजी के चमत्कारों की कई कथाएं प्रचलित हैं. कलयुग में भी चमत्कार देखने को मिलते हैं. कुछ वर्ष पूर्व एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को गहनों के लालच में मंदिर के पीछे स्थित कुई में धकेल दिया और ऊपर से पत्थर की बरसात करके भाग खड़ा हुआ लेकिन वह लड़की बच गई, इसे भी माता का चमत्कार ही माना जा रहा है.
अनेक विकास कार्य किए जा रहे
वर्ष 2002 में यहां नवरात्रि में पहली बार तीन - दिवसीय मेला आयोजित किया गया. तब से आश्विनी नवरात्रि में यहां तीन दिन - मेला लगता है एवं मंदिर की तलहटी में आर्केस्ट्रा आदि के साथ कई कार्यक्रम - आयोजित होते हैं. मंदिर मण्डल द्वारा श्रद्धालुओं को बेहत्तर सुविधा देने के उद्देश्य से अनेक विकास कार्य किए जा रहे हैं, जिनमें सराय का निर्माण एवं मंदिर मे आकर्षक गुम्बद का निर्माण कराया गया है, जो इस मंदिर का आकर्षण - बढ़ाता है.
Reporter- Deepak Vyas
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