Dholpur: सरमथुरा में 200 साल पुराना बोहरे के ताल से बुझेगी प्यास, 22 गांवों को मिलेगी राहत
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Dholpur: सरमथुरा में 200 साल पुराना बोहरे के ताल से बुझेगी प्यास, 22 गांवों को मिलेगी राहत

Dholpur: धौलपुर के सरमथुरा से लगभग 18 किलोमीटर दूर गौलारी के जंगलों में करीब 200 साल पूर्व बने बोहरे का ताल फिर से जानवरों और ग्रामीणों को पानी पिलाएगा.गौलारी के जंगलों में 22 गांवों में पानी की कमी के चलते बौहरे गजाधर शर्मा ने मदनपुर के जंगलों में बौहरे के ताल का निर्माण करवाया था.

 

Dholpur: सरमथुरा में 200 साल पुराना बोहरे के ताल से बुझेगी प्यास, 22 गांवों को मिलेगी राहत

Dholpur: 22 गांवों को पानी पिलाएगा कई वर्षो पुराना एक ताल.धौलपुर के सरमथुरा से लगभग 18 किलोमीटर दूर गौलारी के जंगलों में करीब 200 साल पूर्व बने बोहरे का ताल उम्मीद बना हुआ है. गजाधर शर्मा ने मदनपुर के जंगलों में बौहरे के ताल का निर्माण करवाया था.

अब वापस करीब 200 साल बाद
अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा चंबल लिफ्ट परियोजना के तहत कालीतीर लिफ़्ट परियोजना द्वारा इस तालाब का जीणोद्धार कर यहाँ से पानी को राम सागर बांध व आगई बांध में पानी पहुंचाया जाएगा. जिससे वापस पहले की तरह लोगो की व जानवरों की प्यास बुझाएगा.

इस तालाब के निर्माणकर्ता बौहरे गजाधर शर्मा के
वंशज पूर्व कांग्रेस जिलाध्यक्ष बौहरे महावीर प्रसाद शर्मा ने बताया की लगभग 200 साल पूर्व गौलारी के जंगलों में 22 गांव पीने के पानी के लिए परेशान थे ये क्षेत्र घनघोर जंगल हुआ करता था. जंगल मे असंख्य जानवर रहा करते थे, ग्रामीणों द्वारा कहने पर हमारे पूर्वजों ने जानवरो के लिए तालाब व इंसानों के लिए कुंए का निर्माण करवाया जिससे अभी भी लगभग ढाई सौ बीघा जमीन पर सिचाई की जाती है और जंगली जानवर व गांव के जानवर पानी पीने आते हैं.

पूर्व में ताल की पाल पर रुकते थे अतिथि
बौहरे के पुरा निवासी धर्म सिंह ने बताया कि हमारे पूर्वजों ने हमे बताया था कि यहां पर पाल के ऊपर मचान बनाया गया था जिसमे बौहरे आकर रुका करते थे, पास में ही गौशाला हुआ करती थी जिसमे सैकड़ों गाय रहा करती थी और इसी तालाब से पानी पिया करती थी.

ताल में है 72 सीढ़िया व 4 फुट के पत्थरों से की गई है पाल की चुनाई
इस तालाब में उतारने के लिए 72 सीढ़ियां बनवाई गई थी रखरखाव के अभाव में वर्तमान में 27 सीढ़िया नजर आती है तथा तत्कालीन वास्तुकार द्वारा तालाब को पाल की चुनाई में चार फुट के पत्थरों का प्रयोग किया गया है. पाल पर ही अलग-अलग जगह पर पानी खीचने के लिए घाट का निर्माण भी किया गया है.

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