Dungarpur: 10 दिवसीय गणेशोत्सव का आगाज, इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा से दिया जाएगा झील संरक्षण का संदेश
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Dungarpur: 10 दिवसीय गणेशोत्सव का आगाज, इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा से दिया जाएगा झील संरक्षण का संदेश

प्रथम आराध्य भगवान गजानन का जन्मोत्सव 31 अगस्त को देशभर में मनाया जाएगा. डूंगरपुर जिले में भी 10 दिवसीय गणेश महोत्सव को लेकर शहरों सहित गांव-गांव में गणेश भक्तों की तैयारियां चल रही है. 

10 दिवसीय गणेशोत्सव का आगाज

Dungarpur: प्रथम आराध्य भगवान गजानन का जन्मोत्सव 31 अगस्त को देशभर में मनाया जाएगा. डूंगरपुर जिले में भी 10 दिवसीय गणेश महोत्सव को लेकर शहरों सहित गांव-गांव में गणेश भक्तों की तैयारियां चल रही है. शहर की हृदयस्थली गेपसागर झील को घातक रसायनों से मुक्ति दिलाने के लिए शहर के विभिन्न गणेश मंडल मिट्टी की गणेश प्रतिमाओं की स्थापना करेंगे. शहर के सोमपुरा समाज के कलाकार इन मूर्तियों को अंतिम रूप देने में लगे है.

विघ्न हरण लंबोदर के जन्मोत्सव पर प्रतिमा स्थापना निश्चित ही भक्तों की श्रद्धा से जुड़ा मामला है लेकिन लोगों की यह श्रद्धा कहीं न कही पर्यावरण को आघात भी पहुंचा रही है. इसी पर्यावरण के आघात को ध्यान में रखते हुए प्रकृति को बचाने के लिए डूंगरपुर शहर के विभिन्न गणेश मंडलो ने प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी गणेश भगवान के जन्मोत्सव पर घातक रसायनों के साथ प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी गणेश प्रतिमा की बजाय मिट्टी और घास से गणेश प्रतिमा का निर्माण करवा रहे है. शहर के सलाटवाड़ा में मिट्टी की प्रतिमा बना रहे मूर्तिकारों का कहना है कि पहले लोग पीओपी की गणेश प्रतिमा को स्थापित करने को ज्यादा प्राथमिकता देते थे लेकिन पिछले कुछ वर्षों से लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता आई है, जिसके चलते लोग प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्ति की जगह मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा बनवा रहे है.

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मूर्तिकारों का कहना है कि मिट्टी से बनी प्रतिमा से जहां जलस्त्रोत में प्रदूषण नहीं होता, साथ ही जलाश्यों की खाद्य श्रृंखला भी प्रभावित नहीं होती. वहीं अगर प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी गणेश प्रतिमाओं की बात करें तो प्लास्टर ऑफ पेरिस पर्यावरण और खासकर जलस्त्रोतों के लिए बहुत अधिक हानिकारक है. इसमें पाए जाने वाले केमिकल जल में रहने वाले जीवों के जीवन चक्र को प्रभावित करते ही है. साथ ही जलस्त्रोंतों की भराव क्षमता को कम करने के साथ प्रदूषित भी करते है. इतना ही नहीं मिट्टी की प्रतिमा निर्माण से गणेश मंडलो पर आर्थिक भार कम पड़ रहा है. 

पीओपी से बनी मूर्ति जहां 5 से 10 हजार की पड़ती है. वहीं स्थानीय मूर्तिकारों द्वारा बनाई जा रही मिट्टी की गणेश प्रतिमाएं कम कीमत में उपलब्ध हो रही है. शहर के गणेश मंडलों के युवाओं द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए किया जा रहा प्रयास काबिले तारिफ है. ऐसे में आवश्यकता है कि डूंगरपुर शहर के गणेश मंडलों के युवाओं से प्रेरणा लेकर जिले और प्रदेशभर के गणेश मंडल भी इस प्रकार की ईको फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं का निर्माण कर भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा को जताने के साथ-साथ पर्यावरण के संरक्षण में भी अपना योगदान दें.

Reporter: Akhilesh Sharma

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