झालावाड़: गाय के सींग से छोड़ को फाड़ने को माना जाता है असुरी शक्तियों पर जीत, जानें परंपरा
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झालावाड़: गाय के सींग से छोड़ को फाड़ने को माना जाता है असुरी शक्तियों पर जीत, जानें परंपरा

झालावाड़ जिले के डग क्षेत्र में गोवर्धन पूजा के अवसर पर ग्रामीण क्षेत्रों में छोड़-फाड़ का अनोखा आयोजन देखने को मिला. यह परंपरा बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर निभाई जाती है. 

 झालावाड़: गाय के सींग से छोड़ को फाड़ने को माना जाता है असुरी शक्तियों पर जीत, जानें परंपरा

Jhalawar: राजस्थान के झालावाड़ जिले के डग क्षेत्र में गोवर्धन पूजा के अवसर पर ग्रामीण क्षेत्रों में छोड़-फाड़ का अनोखा आयोजन देखने को मिला. यह परंपरा बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर निभाई जाती है. 

इसके तहत दीपावली के अगले दिन ग्रामीण अंचल में गोवर्धन पूजा के साथ छोड़-फाड़ का आयोजन किया गया. इस दिन समस्त ग्रामवासी और आसपास गांव से बड़ी संख्या में लोग गांव के बाहर एक बड़े मैदान में एकत्र हुए, जहां किसान गायों को लेकर पहुंचे और जानवर की खाल से बने छोड़ से गोवंश को आक्रामक किया गया, जिसके बाद गोवंश अपने सींग से छोड़ को फाड़ती हैं. 

जालनी गांव के सरपंच गोविंद सिंह ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र में छोड़-फाड़ परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है. इस दिन किसी मरे जानवर की खाल को साफ कर 'छोड़' बनाया जाता है, जिसे त्रिभुजाकार में एक लकड़ी से बांधा जाता है. वहीं, महिलाएं गोवर्धन पूजा करने के बाद छोड़ की पूजा करती हैं. इसके बाद छोड़ और गायों को सजाकर गांव के किसी मैदान पर ले जाया जाता है, जहां मैदान की पूजा के बाद छोड़ और गायों की पूजा होती है. 

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इसके बाद छोड़-फाड़ परंपरा का खेल शुरू होता है. इसमें गाय के मालिक अपनी गाय के साथ हिस्सा लेते हैं. एक तरफ चमड़े के छोड़ को आग में तपाकर युवक खड़े होते हैं. दूसरी तरफ मालिक अपनी गाय को लेकर आता है और गाय के सींगों से छोड़ रूपी चमड़े की खाल को फाड़ती है. इसके लिए निर्धारित संख्या में प्रयास करने के अवसर दिए जाते हैं. इस दौरान सबसे पहले जो गाय छोड़ फाड़ती है, वह विजेता कहलाती है. इसे असुरो पर देवी शक्तियों की विजय और गायों की रक्षा के रूप में मनाया जाता है. इस तरह ग्रामीण क्षेत्रों में अभी आज भी अजीबोगरीब परंपराओं का निर्वहन किया जाता है. 

Reporter- Mahesh Parihar

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