Supreme Court News: एबॉर्शन (Abortion) का ये मामला आपको हैरान कर देगा. अदालत की सीढ़ियों से होता हुआ ये मामला हाईकोर्ट और फिर आखिरी पड़ाव में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. जहां 32 वें हफ्ते में भी प्रेग्नेंसी टर्मिनेट (pregnancy terminate) कराने पर अड़ी महिला की जिद पर कोर्ट ने ये टिप्पणी की है.
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SC rejects abortion case: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पिछले साल अक्टूबर में अपने पति को खो चुकी विडो महिला को 32 सप्ताह से अधिक का गर्भ गिराने की इजाजत देने से फाइनली मना (SC rejects pregnant widow petition) कर दिया. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान नाराजगी जताते हुए कहा कि मेडिकल बोर्ड ने यह माना है कि भ्रूण किसी भी तरह से असामान्य नहीं है. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना भालचंद्र वरले की बेंच ने दिल्ली हाईकोर्ट के 23 जनवरी के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया. दरअसल हाईकोर्ट ने 23 जनवरी के आदेश में चार जनवरी के अपने पहले के उस फैसले को वापस ले लिया था, जिसमें महिला को 29 सप्ताह के भ्रूण को समाप्त करने की इजाजत दे दी गई थी.
अदालत में चली लंबी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'यह 32 सप्ताह का भ्रूण है. इसे कैसे समाप्त किया जा सकता है? एम्स के मेडिकल बोर्ड ने भी कहा है कि इसे समाप्त नहीं किया जा सकता. अब बस केवल दो हफ्ते की बात है, फिर आप चाहें तो इसे गोद लेने के लिए आवेदन कर सकते हैं.' वहीं महिला की ओर से पेश वकील अमित मिश्रा ने कहा कि अगर वह बच्चे को जन्म देगी तो यह उसकी इच्छा के खिलाफ होगा और उसे जीवन भर ये सदमा सहना पड़ेगा.
बेंच ने कहा कि HC ने हर पहलू पर गंभीरता से विचार किया इसलिए हम मेडिकल बोर्ड की राय से आगे नहीं जा सकते'. बोर्ड ने कहा है कि यह एक सामान्य भ्रूण है. बोर्ड ने राय दी है कि अगर याचिकाकर्ता गर्भावस्था जारी रखती है तब भी उसे किसी तरह का खतरा नहीं है.' दूसरी ओर महिला के वकील की दलील थी कि उनकी मुवक्किल एक विधवा है और उसे जीवन भर सदमा सहना होगा और इसलिए सुप्रीम कोर्ट को उसके हित पर भी विचार करना चाहिए.
हम सिर्फ तुम्हारी क्यों सुने?
जस्टिस त्रिवेदी ने कहा, 'हमें सिर्फ उसके हित पर ही विचार क्यों करना चाहिए?' इसके बाद पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और याचिका खारिज कर दी. हाई कोर्ट ने अवसाद से पीड़ित विधवा को चार जनवरी को 29 सप्ताह के भ्रूण को इस आधार पर समाप्त करने की अनुमति दे दी थी कि गर्भावस्था जारी रखने से उसके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है. कोर्ट न कहा था कि प्रजनन विकल्प के अधिकार में प्रजनन न करने का अधिकार भी शामिल है.
हाई कोर्ट का 24 जनवरी का आदेश केंद्र द्वारा याचिका दायर किए जाने के बाद आया था, जिसमें गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन की अनुमति देने वाले चार जनवरी के आदेश को इस आधार पर वापस लेने का आग्रह किया गया था कि बच्चे के जीवित रहने की उचित संभावना है और अदालत को अजन्मे बच्चे के जीवन के अधिकार की सुरक्षा पर विचार करना चाहिए.
(एजेंसी इनपुट के साथ)