मथुरा में गोवर्धन पूजा की धूम, श्रद्धालुओं ने ढोल-नगाड़ों के साथ की 21 किमी परिक्रमा, गिरिराज जी को चढ़े 1008 तरह के व्यंजन
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मथुरा में गोवर्धन पूजा की धूम, श्रद्धालुओं ने ढोल-नगाड़ों के साथ की 21 किमी परिक्रमा, गिरिराज जी को चढ़े 1008 तरह के व्यंजन

Govardhan Puja 2024: गोवर्धन पूजा का पर्व आज मनाया जा रहा है. गोवर्धन पूजा का उत्तर भारत में खासकर ब्रज भूमि मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, गोकुल, बरसाना में इसका अधिक महत्व है. यहां पर देशी-विदेशी भक्तों की भीड़ उमड़ी है. 

Govardhan puja 2024

Govardhan puja 2024 Mathura: आज पूरे देश में गोवर्धन का पर्व मनाया जा रहा है. आज गोवर्धन के मौके पर मथुरा मेंभक्तों का सैलाब उमड़ा है. देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की. 21 किलोमीटर की परिक्रमा के बीच ही गोवर्धन पूजा चली. परिक्रमा के दौरान भक्त गिर्राज भगवान जी की , मैं तो गोवर्धन को कू जाऊं मेरे पीर नाय माने मेरो मनवा, गीत गाकर भक्ति में सराबोर रहे. अब तक तीन लाख से ज्यादा भक्तों ने परिक्रमा कर ली है. भारत के अलग-अलग राज्यों से आए भक्तों ने गिरिराज जी को 1008 तरह के व्यजनों का भोग लगाया.

धर्म की नगरी  मथुरा में आज के दिन गोवर्धन का उत्साह देखने को मिल रहा है. अन्नकूट का प्रसाद तैयार किया जा रहा है. तरह-तरह के भोग तैयार किए जा रहे हैं. गिर्राज जी के दर्शन के लिए बहुत भारी भीड़ मथुरा में पहुंची है. इस पर्व पर लोगों ने घरों में गाय के गोबर से गिरिराज जी को बनाकर पूजा की. 

दूध से अभिषेक और आरती
गोवर्धन के मौके पर गिर्राज जी का दूध से अभिषेक किया गया है. दानघाटी, मुकुट मुखारबिंद मंदिर और मानसी गंगा समेत हरदेव मंदिर पर भगवान का दूध से अभिषेक किया गया. इसके बाद  गिर्राज जी की विशेष आरती की गई.

56 भोग अर्पित करेंगे विदेशी भक्त
गिरिराज महाराज को अलग-अलग तरह के पकवानों को बनाकर भोग लगाने की परंपरा है. उनको 56 तरह के पकवानों का भोग लगाया जाता है. ब्रजवासी उनको भोग अर्पित करते हैं. इसके अलावा गिर्राज को विदेशी भक्त भी खास भोग अर्पित करते है. विदेशी महिला भक्त भी सर पर टोकरी रखकर गिरिराज जी को भोग लगाने के लिए जाती हैं.

मान्यता
ऐसा कहा जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र के कोप से बचाने के लिए  गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था. कान्हा जी ने सात दिन और सात रात तक गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था. जिसके बाद देवराज इंद्र ने अपनी हार स्वीकार कर ली थी. श्री कृष्ण से प्रसन्न होकर ब्रजवासियों ने कान्हा जी को अपने-अपने घरों से व्यंजन बनाकर लाए  और उनको अर्पित किया. तभी से गोवर्धन पर पूजा और भोग की परंपरा चली आ रही है.

Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. Zeeupuk इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.

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