जौनपुर: सुब्बन खां का कहना है कि इस बार रामलीला में जितने भी पुतले हैं. उनको हमने अपने परिवार के साथ मिलकर बनाया है.
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अजीत सिंह/जौनपुर: शाहगंज तहसील क्षेत्र में दशहरा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. क्षेत्र में सामाजिक सौहार्द की मिसाल हमेशा से चली आ रही है, जिसकी वजह रही है कि प्रेम और सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश करने वाले यहां हमेशा नाकाम रहे. इस दशहरे को और ऐतिहासिक बनाने के लिए हिंदू मुस्लिम की एकता की मिसाल पेश करते हुए एक मुस्लिम परिवार बीते तीन पीढ़ियों से रावण का पुतला बना रहा है जो लोगों के लिए एक नजीर पेश कर रहा है.
तीन पीढ़ियां निभा रही जिम्मेदारी
नगर के ऐतिहासिक विजयादशमी मेले में रावण के पुतले के निर्माण में लगे सुब्बन खां की तीन पीढ़ियां राजा दशरथ का दीवान व अशोक वाटिका आदि तमाम पुतले की कृतियां बनाते चली आ रही हैं. तीसरी पीढ़ियों से भादी के निवासी सुब्बन खां का कुनबा प्रभु राम के इस काम में हाथ बटाता चला आया है. इस साल 90 फुट ऊंचा रावण का पुतला मेले के आकर्षण का केंद्र होगा. नगर में 186 वर्ष पूर्व रामलीला और विजयादशमी मेले की शुरुआत हुई तभी से रावण के पुतले सहित राजा दशरथ का दीवान, अशोक बाटिका, मेघनाथ, सुपनखा, जटायु, हिरन आदि का पुतला बनाने का काम एक मुस्लिम परिवार करता चला रहा है.
इस कार्य मे लगे सुब्बन खां बताते हैं कि उनके पहले उनके पिता कौसर खान रावण के पुतले को बनाने की जिम्मेदारी निभाते रहे. आज इस काम को सुब्बन खां करते हैं, जिनके सहयोग में अपनी पत्नी महजबी, पुत्री अफरीन, गुलसबा व पुत्र शाहनवाज, आकिब लगे होते हैं. सुब्बन खां का परिवार पीढ़ियों से बगैर किसी हिचक के विजयादशमी के पर्व में अपना सहयोग देकर चला आया है. उनका यह सहयोग आपसी भाइचारे की तहजीब की एक जीती जागती मिसाल है. सुब्बन ने बताया इस वर्ष दिल्ली से आए कलाकार सिराजुद्दीन 90 फुट ऊंचा रावण का पुतला बना रहे है, जो कि पिछले वर्ष 80 फुट का बना हुआ था। इस साल पुतले के बनाने में लोहे के रिंग का भी उपयोग हो रहा है, जो पुतले को मजबूती देगा और उसे खड़ा करने में भी मददगार होगा.
विजयादशमी का मेला पूर्वांचल में है काफी फेमस
विजयादशमी का मेला पूर्वांचल में अपना एक अलग स्थान रखता है. यहां पर क्षेत्र के अलावा आजमगढ़, सुल्तानपुर, अंबेडकर नगर जिलों से भी लोग मेले में शरीक होने के लिए पहुंचते हैं. मेले में बैलगाड़ी और ट्रैक्टर से महिलाओं के पहुंचने की एक अनोखी परंपरा सी रही है, जो बदले दौर में इक्का- दुक्का बैलगाड़ी ही दिखाई पड़ती हैं. इनकी जगह ट्रैक्टर और ट्रकों ने ले लिया है. गाड़ियों में चारपाई और चौकी आदि रख कर उस पर बैठकर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग मेले में शरीक होते हैं. मेला स्थल पर व्यवस्था को बनाए रखने में पुलिस प्रशासन के साथ ही रामलीला समिति के पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं.
क्या कहना है सुब्बन खां का?
सुब्बन खां का कहना है कि इस बार रामलीला में जितने भी पुतले हैं. उनको हमने अपने परिवार के साथ मिलकर बनाया है. सिर्फ रावण का पुतला दिल्ली से आए कलाकार सिराजुद्दीन बना रहे हैं, जो की एक आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. सिराजुद्दीन बताते हैं कि दिल्ली में होने वाली रामलीला में सभी पुतले खुद बनाते हैं. इस बार शाहगंज की रामलीला में रावण का पुतला बनाने का सौभाग्य मिला है.
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