S Jaishankar News: विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा, 'जिस चीज को एक राष्ट्र द्वारा स्वतंत्रता के रूप में माना जाता है, उसे दूसरे द्वारा हस्तक्षेप के रूप में देखा जा सकता है. कुछ मित्र अधिक जटिल हो सकते हैं. खासकर भारत जैसे विशाल देश के लिए मित्रता को विकसित करना आसान नहीं होता.
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S Jaishankar On Diplomatic Ties: विदेश मंत्री एस जयशंकर तीन से आठ नवंबर तक ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर की यात्रा पर रहेंगे. इस दौरान वो दोनों देशों के नेताओं से मुलाकात के साथ आसियान के 8वें गोलमेज सम्मेलन को संबोधित करेंगे. विदेश मंत्रालय के मुताबिक वो कैनबरा में आस्ट्रेलियाई समकक्ष पेनी वोंग के साथ 15वें विदेश मंत्रियों की रूपरेखा वार्ता की सह-अध्यक्षता भी करेंगे. इससे पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत के दूसरे देशों के साथ द्विपक्षीय रिश्तों और कूटनीतिक संबंधों पर बड़ा बयान दिया है.
उन्होंने कहा, 'इस बहुध्रुवीय दुनिया में स्पेशल फ्रेंडशिप जैसी बातों के मायने नहीं रह गए हैं, इसके बावजूद भारत खुद को ‘विश्व मित्र’ के रूप में स्थापित कर रहा है. भारत अधिक से अधिक लोगों के साथ दोस्ती करना चाहता है. लेकिन हर बार ये साधारण सा लगने वाला काम आसान नहीं होता. दोस्त बनाने... मजबूत रिश्ते रखने से जाहिर तौर पर भारत के प्रति सद्भावना और सकारात्मकता पैदा होती है. बहुत सी बातों को भारत द्वारा वैश्विक भलाई में किए जा रहे योगदान को देखकर समझा जा सकता है. जिसके अच्छे नतीजे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ भारत के करीबी जुड़ाव में साफ-साफ दिखाई देते हैं'.
'मित्र हमेशा प्रगति पर काम करते हैं'
उन्होंने कहा कि अंतिम विश्लेषण में मित्र ‘हमेशा प्रगति पर काम करते हैं’. जयशंकर ने कहा, ‘चूंकि हम मित्रवत हैं, तो क्या इसका अभिप्राय यह है कि हमारे कई मित्र हैं? फिर भी, इसका अभिप्राय यह नहीं है कि हम अतिशयोक्ति करें, अतिसरलीकरण करें और अति कल्पनाशील हो जाएं. जीवन इससे कहीं अधिक जटिल है.’ उन्होंने कहा कि सच्चाई है कि रिश्ते तब बनते हैं जब हित एक दूसरे से जुड़ते हैं या कम से कम साझा होते हैं. निस्संदेह, भावनाएं और मूल्य एक भूमिका निभाते हैं, लेकिन हितों से अलग होने पर नहीं.
‘भारत जैसे विशाल देश के लिए मित्रता विकसित करना आसान नहीं होता’
जयशंकर ने कहा कि भारत जैसे विशाल देश के लिए मित्रता विकसित करना कभी आसान नहीं होता. उन्होंने कहा कि भावनात्मक पहलू साझा अनुभवों से आता है और वैश्विक दक्षिण के संबंध में इसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. जयशंकर ने कहा, ‘मित्रताएं विशिष्ट नहीं होतीं, विशेषकर बहुध्रुवीय विश्व में.’ उन्होंने कई देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों का हवाला देते हुए अपना बात पूरी की.