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Brij Bhushan Singh Narco Test: रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (डब्ल्यूएफआई) के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ चल रहे पहलवानों के विरोध के बीच 'नार्को टेस्ट' ताजा मुद्दा बन गया है. अपने ऊपर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों के बीच बीजेपी सांसद बृजभूषण सिंह ने एक बड़ा बयान देते हुए ऐलान किया है कि वह नार्को टेस्ट कराने को तैयार हैं लेकिन एक शर्त पर. सिंह ने विरोध करने वाले पहलवान विनेश फोगट और बजरंग पुनिया को भी नार्को टेस्ट कराने की चुनौती दी है. उन्होंने वादा किया है कि अगर दोनों पहलवानों का भी लाई डिटेक्टर टेस्ट होगा तो वे भी इसके लिए तैयार हैं. आइये जानते हैं नार्को टेस्ट के बारे में...
नार्को टेस्ट क्या है?
नार्को टेस्ट सच जानने के लिए किया जाता है. संदिग्ध, आरोपी या अपराधी से सच निकलवाने के लिए नार्को टेस्ट पूछताछ की एक उन्नत तकनीक है. इसे ट्रुथ सीरम टेस्ट के नाम से भी जाना जाता है. जांच एजेंसियां पहले भी कुछ अहम मामलों को सुलझाने के लिए नार्को टेस्ट का इस्तेमाल कर चुकी हैं. यह पॉलीग्राफ टेस्ट से अलग है. हाल ही में, यह हाई-प्रोफाइल दिल्ली के श्रद्धा वाकर हत्याकांड के आरोपी आफताब पूनावाला के परीक्षण के बाद सुर्खियों में था.
कैसे होता है नार्को टेस्ट?
इसमें नार्को टेस्ट से गुजरने वाले व्यक्ति को अंतःशिरा में दवा दी जाती है. यह सीरम सोडियम पेंटोथल, सोडियम थायोपेंटल, स्कोपोलामाइन या सोडियम एमाइटल हो सकता है. यह नार्को टेस्ट से गुजरने वाले व्यक्ति को एनेस्थिसिया के कई अलग-अलग चरणों में ले जाता है. यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर अवसादक के रूप में कार्य करते हैं. इस सीरम का इस्तेमाल सर्जरी के दौरान रोगियों को बेहोश करने के लिए दी जाने वाली खुराक की तुलना में बहुत कम खुराक में किया जाता है. इसका खुराक निर्धारित करने के लिए व्यक्ति का लिंग, आयु, शारीरिक और स्वास्थ्य स्थिति को ध्यान में रखा जाता है.
नार्को टेस्ट के दौरान व्यक्ति के साथ क्या होता है?
नार्को टेस्ट के दौरान व्यक्ति के सम्मोहित होकर जानकारी देने की संभावना अधिक हो जाती है. जिस जानकारी को वो छिपाना चाहता है या किन्हीं कारणों से नहीं बताना चाहता, उसके बारे में भी खुलासा कर सकता है. इस पूरी प्रक्रिया में व्यक्ति को नींद जैसी अवस्था में रखा जाता है और फिर घटना के बारे में सच्चाई बताने के लिए कहा जाता है. डॉक्टरों की मौजूदगी में उनसे पूछताछ की जाती है और उनके द्वारा किए गए खुलासे वीडियो में रिकॉर्ड किए जाते हैं.
तैयार की जाती है रिपोर्ट
इसके बाद विशेषज्ञ एक रिपोर्ट तैयार करते हैं जिसका उपयोग साक्ष्य संग्रह में किया जाता है. नार्को टेस्ट कराने के लिए कोर्ट के आदेश की जरूरत होती है. लाई डिटेक्टर टेस्ट कराने के लिए आरोपी/विषय की सहमति आवश्यक है. उनके पास एक वकील की पहुंच होनी चाहिए.