Naga Sadhu Life: नागा साधु बनना बेहद कठिन है और बनने के बाद नियमपूर्वक जीवन जीना भी आसान नहीं है. नागा साधुओं का रहन-सहन काफी अलग होता है और उन्हें कई सख्त नियमों का पालन करना पड़ता है. नियम पालन में गलती होने पर उन्हें सजा भी मिलती है.
आदि शंकराचार्य ने सदियों पहले अखाड़ों की स्थापना की थी. पहले आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था. यह भी कहा जाता है कि अलख शब्द से ही 'अखाड़ा' शब्द की उत्पत्ति हुई है. इन अखाड़ों में कई साधु-संत होते हैं लेकिन नागा साधुओं के बारे में जानने को लेकर लोगों के मन में खासी जिज्ञासा होती है.
जब कोई महिला या पुरुष नागा साधु बनता है तो उसे अखाड़ों के कानून को मानने की शपथ लेनी होती है. अखाड़े का जो सदस्य इस कानून का पालन नहीं करता है उसे सजा दी जाती है. वहीं कुछ मामलों में तो उसे निष्काषित भी कर दिया जाता है.
यदि अखाड़े के दो सदस्य आपस में लड़ें-भिड़ें. कोई नागा साधु विवाह कर ले या दुष्कर्म का दोषी पाया जाए. यदि वो चोरी करे या किसी देवस्थान को अपवित्र करे तो उसे सजा मिलती है. इसके अलावा वर्जित स्थान पर प्रवेश करने, किसी यजमान से अभद्र व्यवहार करने पर भी नागा साधुओं को सजा मिलती है.
छोटी गलती के दोषी साधु को अखाड़े के कोतवाल के साथ गंगा में 5 से लेकर 108 डुबकी लगाने तक के लिए भेजा जाता है. इसके बाद उसे देवस्थान पर आकर अपनी गलती के लिए क्षमा मांगनी होती है.
वहीं विवाह, हत्या या दुष्कर्म करने जैसे मामलों में नागा साधु को अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है. इसके बाद इन पर भारतीय संविधान में बताया गया कानून लागू होता है और सजा दी जाती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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