Kashi Dev Deepwali: लाखों दीप, लोगों के चेहरे पर रौनक, 3डी लेजर शो और भव्य काशी के घाट. 15 नवंबर को मानो काशी में देवता उतर आए. लोगों ने जोरों-शोरों से यह त्योहार मनाया. वाराणसी के घाट दीयों की रोशनी से सजे हुए नजर आए. वाराणसी में देव दीपावली उत्सव में 3डी लेजर शो के जरिए काशी का इतिहास, संतों और ऋषियों की कहानियां और गंगा नदी के धरती पर अवतरण के महत्व को दिखाया गया. देव दीपावली हर साल कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाती है.
परंपरा और आधुनिक टेक्नोलॉजी का मिश्रण यह 25 मिनट का 3डी लेजर शो दिन में चार बार- शाम साढ़े पांच बजे, सात बजे, आठ बजे और आठ बजकर 45 मिनट पर, दिखाया गया. अधिकारियों ने बताया कि लेजर शो में हाई कैपिसिटी वाले 24 प्रोजेक्टर का इस्तेमाल हुआ, जिन्होंने घाटों की ऐतिहासिक इमारतों पर काशी के धार्मिक और सांस्कृतिक विकास की जीवंत छवि तैयार की.
इस भव्य समारोह में दीपमाला और प्रसिद्ध गंगा आरती का आयोजन किया गया, लेकिन इसका मुख्य आकर्षण मल्टीमीडिया अनुभव रहा, जिसने काशी के समृद्ध आध्यात्मिक और पौराणिक इतिहास को जीवंत कर दिया.
लेजर शो में शहर के इतिहास के अहम क्षणों को दिखाया गया, जिसमें काशी में भगवान शिव का आगमन, ऋषियों और मुनियों की कहानियां, भगवान बुद्ध की यात्रा और तुलसीदास और कबीर जैसे संतों का योगदान शामिल हैं.
देव दीपावली के मौके पर पुलिस कमिश्नरेट वाराणसी ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 163 के तहत पूरे शहर को "नो फ्लाई जोन" घोषित किया है. इस अवसर पर भीड़भाड़ और विशिष्ट अतिथियों के घूमने की स्थिति को देखते हुए बिना इजाजत के ड्रोन, पतंग, गुब्बारा, रिमोट से चलने वाले माइक्रो लाइट्स एयरक्राफ्ट और पैराग्लाइडर के इस्तेमाल पर पूरी तरह बैन लगाया गया है.
देव दीपावली के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप्स की महिलाओं ने गाय के गोबर से दीये बनाए. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के उपायुक्त पवन सिंह ने बताया कि कुल सात सेल्फ हेल्प ग्रुप्स की 25 परिवारों की महिलाएं इस काम में जुटी हुई थीं और उन्होंने गोबर से 30,000 दीप तैयार किए.
सिंह ने बताया कि ये महिलाएं पहले जहां देव दीपावली पर मुश्किल से 400-500 रुपये कमाती थीं, अब उन्हें इस काम के लिए लगभग 4,000 से 5,000 रुपये की आमदनी हो रही है. ये महिलाएं अब घर-घर जाकर दीपों की बिक्री नहीं करतीं, बल्कि उन्हें पहले से ही बड़े पैमाने पर ऑर्डर मिलने लगे हैं.
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