International Space Station: NASA और SpaceX ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) को ठिकाने लगाने की अपनी योजना के बारे बताया है. इसके लिए एक महाशक्तिशाली, बेहद विशाल Dragon स्पेसशिप का इस्तेमाल किया जाएगा. नासा और स्पेसएक्स का प्लान ISS की कंट्रोल्ड रीएंट्री कराने का है, फिर इसके टुकड़ों को महासागर में ठिकाने लगा दिया जाएगा. इस मिशन की टारगेट डेट 2031 की शुरुआत में रखी गई है. आइए आपको बताते हैं कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को कैसे अंतरिक्ष से पृथ्वी पर लाया जाएगा.
NASA को उम्मीद है कि स्पेस स्टेशन कम से कम 2030 तक ऑपरेशनल रहेगा. तब तक शायद प्राइवेट कंपनियां अपने खुद के स्टेशन लॉन्च कर चुकी होंगी. अगर 2030 तक कोई कॉमर्शियल स्पेस स्टेशन ऑपरेशनल नहीं होता तो साइंटिफिक रिसर्च जारी रखने के लिए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को जिंदा रखा जा सकता है.
NASA ने स्पेस स्टेशन को अंतरिक्ष में डी-असेंबल करने और उसके टुकड़ों को धरती पर वापस लाने का विचार त्याग दिया है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी यह भी नहीं चाहती कि प्राइवेट कंपनियां ISS के पार्ट्स का इस्तेमाल अपने आउटपोस्ट बनाने के लिए करें.
NASA के मुताबिक, अनुसार, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को कक्षा में कभी भी अलग करने का इरादा नहीं था. ऐसा करने की कोई भी कोशिश न सिर्फ महंगी केवल महंगा होगी, बल्कि डी-असेंबली प्रोसेस में शामिल अंतरिक्ष यात्रियों के लिए भी खासा जोखिम पैदा करेगी. अभी इतना बड़ा कोई स्पेसक्राफ्ट है भी नहीं जो ISS के सभी टुकड़ों को धरती पर वापस ले आए.
नासा ने इस ऑप्शन पर भी विचार किया कि ISS को बूस्ट करके और ऊंची कक्षा में भेज दिया जाए. हालांकि, इस विकल्प को लॉजिस्टिकल चुनौतियों और अंतरिक्ष में कचरे के खतरे को देखते हुए खारिज कर दिया गया.
नासा के अनुसार, सबसे विवेकपूर्ण कदम यह होगा कि ISS को उसकी वर्तमान कक्षा में तब तक रहने दिया जाए जब तक कि और बेहतर विकल्प नहीं मिल जाता. अभी इंटरनेशनल स्पेस को पृथ्वी से करीब 420 किलोमीटर ऊपर वाली कक्षा में रखा जाता है. इस कक्षा में बरकरार रखने के लिए स्पेस स्टेशन को समय-समय पर बूस्ट किया जाता है. अगर बूस्ट न किया जाए तो स्पेस स्टेशन नीचे आने लगेगा और आखिकार अनियंत्रित तरीके से धरती पर गिरेगा.
नियंत्रित और सुरक्षित तरीके से री-एंट्री सुनिश्चित करने के लिए नासा ISS को दक्षिण प्रशांत या हिंद महासागर के ऊपर ठिकाने लगाने की योजना बना रहा है. NASA को लगता है कि स्पेस स्टेशन के कुछ घने कंपोनेंट्स जिनका आकार 'एक माइक्रोवेव ओवन से लेकर एक सेडान' जितना बड़ा हो सकता है, री-एंट्री में बच जाएंगे. ये कंपोनेंट्स लगभग 2,000 किलोमीटर में मलबा फैला देंगे.
पहले NASA ने डी-ऑर्बिटिंग प्रक्रिया के लिए तीन रूसी सप्लाई यानों का इस्तेमाल करने की सोची थी. लेकिन धीरे-धीरे यह साफ हो गया कि और मजबूत स्पेसक्राफ्ट की जरूरत पड़ेगी. तभी तो NASA ने जून में SpaceX को $843 मिलियन का ठेका दिया ताकि वह खास डी-ऑर्बिट वीइकल बनाए.
SpaceX ने इस मिशन के लिए अपने Cargo Dragon को नया रूप देने की सोची है. एक रेगुलर ड्रैगन में 16 इंजन होते हैं, लेकिन इस कार्गो ड्रैगन में 46 ड्रेको इंजन लगे होंगे. इसका ट्रंक भी बहुत बड़ा होगा जिसमें इंजनों के अलावा 16,000 किलोग्राम ईंधन रखा जाएगा.
नासा ने कहा कि कक्षा में पहुंचने के लिए खास तौर पर शक्तिशाली रॉकेट की जरूरत पड़ेगी. SpaceX के कैप्सूल को स्टेशन की प्लान्ड डीकमिशनिंग से डेढ़ साल पहले लॉन्च किया जाएगा. स्पेस स्टेशन को नीचे लाते समय एस्ट्रोनॉट्स भीतर ही रहेंगे. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के अंत से छह महीने पहले, क्रू को बाहर निकाल पृथ्वी पर वापस ले आया जाएगा.
जब स्टेशन लगभग 137 मील (220 किलोमीटर) की ऊंचाई तक आ जाएगा, तो ड्रैगन कैप्सूल फाइनल डीसेंट शुरू करेगा और चार दिनों के भीतर स्टेशन को नीचे ले आएगा.
नासा ने अंतरिक्ष स्टेशन के भीतर से कुछ छोटी वस्तुओं को वापस लाने की इच्छा जताई है ताकि इन्हें संग्रहालयों में प्रदर्शित किया जा सके. स्टेशन के आखिरी एक-दो साल में, SpaceX के सप्लाई यान इन कलाकृतियों को वापस पृथ्वी पर ले आएंगे.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, जापान और कनाडा ने साझा कोशिश से तैयार किया था. इसे 1998 में लॉन्च किया गया था. दो साल बाद, अंतरिक्ष यात्रियों ने ISS पर रहना शुरू किया. पहले इसका आकार छोटा था जो समय के साथ बढ़ता गया. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का वर्तमान साइज एक फुटबॉल मैदान के बराबर है. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का वजन लगभग 1 मिलियन पाउंड (430,000 किलोग्राम) है.
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