Vishnu Sharma Indira Files: दिलचस्प ये भी है कि उनका एक अध्याय अपने आप में संपूर्ण है. आप दूसरे के बजाय 10वां अध्याय भी पढ़ लें, तब भी कुछ छूटेगा नहीं. ऐसे में आजकल की भागती दौड़ती जिंदगी में लोगों को अगर फास्ट फूड की तरह हिस्ट्री फैक्ट्स की क्विक डोज मिल जाए तो इससे बेहतर क्या होगा, वो भी तब जब हर कोई आजकल सोशल मीडिया पर विद्वान बना हुआ है.
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Indian History: जब भी किसी राजनैतिक हस्ती पर कोई किताब आती है तो सबसे पहले ये चर्चा होती है कि इसमें नया क्या है? क्योंकि इतना कुछ लोगों को पहले से पता होता है तो फिर लेखक नया क्या निकाल कर लाया होगा? शायद यही चुनौती थी विष्णु शर्मा के सामने. आम तौर पर एक से बढ़कर एक दिलचस्प तथ्य ढूंढ कर लाने वाले लेखक विष्णु शर्मा ने इस मामले में तो कतई निराश नहीं किया है. जिन लोगों को राजनीति में दिलचस्पी है, जिन लोगों को इतिहास में दिलचस्पी है, उनके लिए विष्णु शर्मा की ताजा बुक 'इंदिरा फाइल्स' मस्ट रीड जैसी साबित होगी.
लेकिन कंटेंट के नजरिए से देखें तो इसमें तथ्यों का खजाना है. पूरे 50 अध्याय इस किताब में है. इतिहास पर अपने ब्लॉग्स के लिए चर्चा में रहे विष्णु शर्मा की खासियत ये है कि वो आम जनता की नजर से इतिहास लिखते हैं. हर अध्याय 4 से 7 पन्नों के ही बीच है. ताकि जब भी दस मिनट मिलें, मेट्रो में आते जाते, कहीं किसी रेस्तरां में किसी का इंतजार करते या ग्राहकों का इंतजार करते शॉप कीपर्स, कोई भी कहीं भी एक अध्याय पढ़ सकता है.
दिलचस्प ये भी है कि उनका एक अध्याय अपने आप में संपूर्ण है. आप दूसरे के बजाय 10वां अध्याय भी पढ़ लें, तब भी कुछ छूटेगा नहीं. ऐसे में आजकल की भागती दौड़ती जिंदगी में लोगों को अगर फास्ट फूड की तरह हिस्ट्री फैक्ट्स की क्विक डोज मिल जाए तो इससे बेहतर क्या होगा, वो भी तब जब हर कोई आजकल सोशल मीडिया पर विद्वान बना हुआ है.
उन पर ये आरोप लग सकते हैं कि उन्होंने इस किताब मैं इंदिरा गांधी राज की कमियों पर ही ज्यादा फोकस किया है, लेकिन उनकी किताब के टाइटल से इस तरफ वो इशारा भी देते हैं और किताब की भूमिका में उन्होंने स्पष्ट भी कर दिया है कि उनकी बुक इंदिरा की तारीफ से ज्यादा आलोचना में हैं. लेकिन अच्छा पक्ष ये है कि हर अध्याय के बाद संदर्भों की पूरी सूची मिलती है कि कौन सा तथ्य या घटना किस श्रोत से लिया गया है, सो ऐसे में सवाल उठाना आसान भी नहीं.
इतिहास जितना रुचिकर फेसबुक पर लगता है, किताबों की भूल भुलैया में उतना ही जटिल होता जाता है. ऐसे में आम आदमी के हिस्से वही इतिहास आता है, जो भाषणों में होता है या फिर किसी मूवी या आजकल व्हाट्स एप पर. चूंकि जनता के पास मोटी मोटी किताबों में जाकर अपने काम के तथ्य निकलने के लिए समय नहीं और न सच पता करने की विशेषज्ञता, तो ये मोर्चा संभाला है विष्णु शर्मा ने. गागर में सागर भरते उनके लेख और वीडियो पहले से ही चर्चा में रहे हैं.
इंदिरा गांधी को भी लोगों ने 1971 के बांग्लादेश युद्ध और इमरजेंसी के बीच समेट दिया है, लेकिन उनकी जिंदगी को सही मायने में आम आदमी के लिए डिकोड किया विष्णु शर्मा ने 'इंदिरा फाइल्स' में. इस किताब के बिना इंदिरा और गांधी परिवार को समझना अधूरा है.
ऐसे ऐसे तथ्य आज के उन नौजवानों को मिलेंगे जो सोशल मीडिया के बौद्धिक मोर्चे पर सक्रिय हैं कि वो लोग चौंक जाएंगे. क्या कोई भारतीय पीएम संसद में खड़े होकर पाकिस्तान को न्यूक्लियर टेक ऑफर कर सकता है? क्या इंदिरा गांधी और नेहरू जी ने भारत के मित्र देश इजरायल से तीन तीन बार मदद लेकर भी उसे धोखा दिया था? क्या इंदिरा गांधी इतनी कमजोर पीएम थीं कि एक महिला ने उन्हें अपनी पसंद का सरकारी घर तक नहीं लेने दिया था? क्या इंदिरा ने अपने ही देश के एक शहर पर बमबारी का ऑर्डर दिया था? क्या इंदिरा काल में गुजरात से भी बड़े दो दंगे हुए थे? कैसे तैयार किए गांधी परिवार ने अंध भक्त? ऐसे सैकड़ों तथ्य इंदिरा फाइल्स में मिलने वाले हैं.
इंदिरा फाइल्स के साथ एक और खास बात ये है कि ये वर्तमान राजनीति से काफी जुड़ती है, तभी नेता, विश्लेषक और पत्रकार तीनों के मतलब की है. राहुल गांधी को सजा मिलने पर जैसे भोपाल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ट्रेन रोक दी तो वैसे ही इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी पर कांग्रेस के दो कार्यकर्ताओं ने पूरा प्लेन ही हाईजैक कर लिया था. पूरी कहानी इंदिरा फाइल्स में हैं. प्रियंका गांधी ने अपने परिवार को रामायण और महाभारत से जोड़ा, तो 'इंदिरा फाइल्स' में एक पूरा अध्याय गांधी परिवार के नेपोटिज्म पर है, 'अपने तो अपने होते हैं'.
प्रभात प्रकाशन ग्रुप से छप कर आई इस बुक में 296 पन्ने हैं. हालांकि लगता है प्रकाशक और लेखक ने ज्यादा से ज्यादा सूचनाएं, तथ्य और घटनाएं देने के लिए फोटोज, ग्राफिक्स और चार्ट्स आदि देने से परहेज ही किया है. आपको लाइंस के बीच में गैप भी काफी कम ही मिलेगा, तभी किताब जो 400 पेज से ऊपर होनी चाहिए, 296 पेजों में ही सिमट गई है.
यूं प्रकाशक ने इस किताब के पेपर बैक एडिशन की कीमत 450 रुपए रखी है, लेकिन अमेजन पर 260 रूपए तक में मिल रही है. यानी पूरे 42 प्रतिशत की छूट. हालांकि किंडल एडिशन तो और भी कम केवल 223 रुपए में मिल रहा है. अब तक इंदिरा फाइल्स अमेजन, फ्लिपकार्ट, उर्दू बाजार, मीशो, बुक चोर आदि ऑनलाइन प्लेटफोर्म पर उपलब्ध है. जब किताब दिल्ली बुक फेयर में आई थी तो आखिरी 3 दिन पहले ही आउट ऑफ स्टॉक हो गई थी. राजनीति की जितनी नई किताबें नई रिलीज हुई हैं, उनमें 'इंदिरा फाइल्स' लगातार नंबर 2 से लेकर नंबर पांच के बीच बनी हुई है.
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