Vamana Avatar: जब 'दानवीर' बलि का अहंकार तोड़ने के लिए श्रीहरि ने लिया वामन अवतार, 2 पग में माप डाले धरती और स्वर्ग
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Vamana Avatar: जब 'दानवीर' बलि का अहंकार तोड़ने के लिए श्रीहरि ने लिया वामन अवतार, 2 पग में माप डाले धरती और स्वर्ग

Lord Vishnu Paanchva Avatar Katha: सृष्टि के रचनाकार जहां भगवान ब्रह्मा हैं, वहीं इस सृष्टि के नियमों को सही ढंग से चलाने का जिम्मा भगवान विष्णु का है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, धरती पर जब-जब पाप और अनाचार बढ़ा है, तब-तब भगवान विष्णु विभिन्न रूपों में अवतार लेकर पृथ्वी पर आए हैं और सत्य-धर्म की फिर से स्थापना की है. अपनी विष्णु के 10 अवतार सीरीज में आज हम उनके 5वें अवतार यानी वामन अवतार के बारे में बताने जा रहे हैं. 

Vamana Avatar: जब 'दानवीर' बलि का अहंकार तोड़ने के लिए श्रीहरि ने लिया वामन अवतार, 2 पग में माप डाले धरती और स्वर्ग

Lord Vishnu Vamana Avatar Katha: पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, एक बार पृथ्वी पर दैत्यराज बलि का शासन था. वह बेहद शक्तिशाली था लेकिन इसके साथ ही वह भगवान विष्णु का अनन्य उपासक और प्रसिद्ध दानी भी था. वह नियमित रूप से दान-पुण्य करता रहता था. कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति उसके दरबार से खाली नहीं जाता था. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे स्वर्ग का स्वामी बना दिया. अपना स्वर्ग अचानक छिन जाने से देवराज इंद्र समेत बाकी देवता बहुत परेशान व दुखी हो गए. 

इसके बाद सभी देवता एकत्रित होकर महर्षि कश्यप के आश्रम में पहुंचे और उन्हें अपनी समस्या बताई. इसके बाद पति ऋषि कश्यप के कहने पर उनकी पत्नी अदिति ने एक व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उनकी कोख से वामन देव ने जन्म लिया. धीरे- धीरे वक्त के साथ वह बालक बड़ा होता रहा लेकिन उसका कद काफी छोटा था, जिसकी वजह से उन्हें वामन देव कहा गया. अपने पिता की तरह भिक्षावृति करके वामन देव आजीविका चलाते थे.

वामन देव ने बलि से मांगी 3 पग भूमि

एक दिन भिक्षा मांगने वामन देव दैत्यराज बलि के दरबार में पहुंच गए और भिक्षा मांगी. अपने दरबार में एक गरीब ब्राह्माण को आया देख बलि ने उनके आगे जोड़े और उनसे कहा कि वह उनकी क्या सहायता कर सकता है. इस पर वामन देव ने उनसे कहा कि उन्होंने सुना है कि बलि बहुत बड़े दानी हैं और किसी को भी खाली हाथ नहीं लौटाते. क्या वे उन्हें भी दान दे सकते हैं.

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इस पर राजा बलि ने कहा कि क्यों नहीं, आप मांगिए. आपको मैं क्या दान दे सकता हूं. कुछ क्षण सोचने के बाद वामन देव ने कहा कि मुझे 3 पग भूमि दान में चाहिए. इस पर बलि मुस्कराए और कहा कि यह उनके लिए कौन सा बड़ा काम है. मैं पूरी धरती और स्वर्ग का स्वामी हूं. ऐसे में तीन पग भूमि दान देना मेरे लिए लिए कौन सी बड़ी बात है. जब दैत्यराज बलि 3 पग भूमि दान करने का संकल्प ले रहे थे. संयोग से उसी दौरान दैत्यों के गुरू शुक्राचार्य भी वहीं मौजूद थे.

शुक्राचार्य समझ गए, कौन हैं वामन देव?

शुक्राचार्य समझ गए कि वामन देव कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान विष्णु हैं. उन्होंने बलि को समझाते हुए कहा कि ये कोई साधारण बालक नहीं बल्कि स्वयं सृष्टि के संचालक श्रीहरि हैं, जो तुम्हारा राजपाट लेने आए हैं. उन्होंने बलि को कहा कि वह उन्हें कोई भी दान न दे. इस पर दैत्यराज बलि ने कहा कि यदि यह गरीब ब्राह्मण के बजाय स्वयं भगवान विष्णु भी हैं और मेरे द्वार पर दान मांगने आए हैं तो भी उन्हें इनकार नहीं कर सकते. 

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उन्हें हठ करते देख शुक्राचार्य ने बेहद बारीक रूप धारण किया और कमंडल की दंडी में जाकर बैठक गए, जिससे उससे पानी बाहर न निकल सके और राजा बलि हाथ में जल लेकर संकल्प न ले सकें. उन्हें सूक्ष्म रूप धारण करता देख वामन देव उनकी योजना समझ गए और तुरंत ही एक पतली लकड़ी लेकर कमंडल की दंडी में डाल दी, जिससे उसमें बैठे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और वे बाहर निकलने को मजबूर हो गए. इसके बाद राजा बलि ने हाथ में जल लेकर वामन देव को तीन पग भूमि दान देने का संकल्प ले लिया.

जब बलि से अत्यंत प्रसन्न हुए श्री हरि

जब वामन देव ने देखा कि राजा बलि ने अब दान का संकल्प ले लिया है तो उन्होंने अपना आकार बड़ा कर एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्ग को माप लिया. इसके बाद उन्होंने दैत्यराज बलि से कहा कि अब मैं तीसरा पग कहां रखूं. यह देख बलि का सबसे बड़ा दानी होने का अहंकार टूट गया क्योंकि उनके पास समस्त संपत्ति खत्म हो चुकी थी और उनका दान का संकल्प अब भी अधूरा था. इसके बाद राजा बलि घुटने के बल बैठ गए और भगवान विष्णु के आगे हाथ जोड़कर कहा कि आप तीसरा पग मेरे सिर पर रख सकते हैं. 

बना दिया पाताल लोक का राजा

राजा बलि की यह दान वीरता देख वामन देव प्रसन्न हुए. इसके बा भगवान विष्णु ने अपने असली रूप में आकर उन्हें दर्शन दिए और आशीर्वाद दिया कि बलि का नाम सदियों तक लोग श्रद्धा के साथ लेते रहेंगे. इसके बाद श्रीहरि ने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया. धार्मिक विद्वानों के अनुसार, त्रेतायुग के भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को ऋषि कश्यप और माता अदिति के घर वामन देव का जन्म हुआ था. इसीलिए उस दिन को वामन जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. इस तिथि को वामन द्वादशी भी कहा जाता है. इस दिन उपवास पर रहकर वामन देव की पूजा की जाती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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