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Ramayana Story of Lord Hanuman crossing sea to go Lanka: संपाति के माध्यम से वानरों को यह तो पता लग गया की सीता माता को रावण चुरा कर लंका ले गया है और उसने उन्हें वहां की अशोक वाटिका में खतरनाक राक्षसियों के पहरे में रखा हुआ है. वहां पर वह एक पेड़ के नीचे बैठ कर श्री रघुनाथ जी के बारे में ही विचार कर रही हैं. संपाति के जाने के बाद सभी वानर इस बात पर विचार करने लगे कि समुद्र के उस पार जाकर कैसे सीता माता का पता लगाया जाए. जामवंत जी ने अपने बारे में बताया तो युवराज अंगद ने भी वहां जाकर वापस आने में असमर्थता व्यक्त की. हालांकि जामवंत जी ने भी अंगद को जाने से यह कह कर मना कर दिया कि तुम युवराज हो और वानरों का नेतृत्व भी कर रहे हो इसलिए तुम मत जाओ.
ऋक्षराज जामवंत जी ने हनुमान जी की ओर देख कर कहा कि हे हनुमान, तुम क्यों चुप हो. तुम तो पवन के पुत्र हो और बल में पवन के समान हो. तुम तो बुद्धि, विवेक और विज्ञान की खान हो. इस जग में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो तुम नहीं कर सकते हो. तुम्हारा तो जन्म ही प्रभु श्री राम के कार्य को पूरा करने के लिए हुआ है. इतना सुनते ही हनुमान जी ने अपने शरीर के आकार को बढ़ाना शुरू किया और देखते ही देखते वे पर्वत के समान विशालकाय हो गए. गोस्वामी तुलसीदास जी राम चरित मानस में लिखते हैं कि उनका सोने जैसा रंग और तेज सुशोभित होने लगा मानो दूसरा सुबेल पर्वत खड़ा हो गया है.
विशाल शरीर बनाने के बाद हनुमान जी बोले कि वह इस खारे पानी के विशाल समुद्र को खेल खेल में ही लांघ सकते हैं. इतना ही नहीं मैं रावण के सभी सहयोगियों को मार कर त्रिकूट पर्वत को उखाड़ कर यहां पर ला सकता हूं. उन्होंने जामवंत जी से पूछा कि अब वह आज्ञा दें कि उन्हें क्या करना है. तब उन्होंने कहा कि अभी तो तुम लंका जा कर सीता जी को देख कर लौट आओ और खबर दो. तब श्री रघुनाथ अपने बाहुबल से सभी राक्षसों से सहित रावण का संहार कर सीता जी को लेकर आएंगे. वानरों की सेना तो वह सिर्फ खेल के लिए ले जाएंगे.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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