Mahabharat Interesting Story:कहते हैं कि वनवास के दौरान पांडवों को कभी भी भोजन की कमी मससूस नहीं हुई. क्या आप जानते हैं इसके पीछे की रहस्यमयी पात्र की कहानी. आइए जानते हैं महाभारत में वर्णित उस अक्षय पात्र के बारे में.
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Mahabharat Interesting Facts: पौराणिक काल में वनवास का जीवन कठिन और चुनौतीपूर्ण होता था. वनवासियों को सबसे बड़ी समस्या सुरक्षित निवास और भरपेट भोजन की होती थी. महाभारत में वर्णित है कि पांडवों ने भी लंबे समय तक वनवास किया. लेकिन क्या आप जानते हैं कि वनवास के दौरान पांडवों को भोजन की कमी क्यों नहीं हुई? आखिर वह पात्र (बर्तन) कौन सा था जिसकी वजह से उन्हें वनवास के दौरान भोजन की कमी महसूस नहीं हुई. आइए जानते हैं उस चमत्कारी अक्षय पात्र के बारे में.
पांडवों को किसने दिया था अक्षय पात्र
वनवास के दौरान पांडवों के साथ उनका बड़ा परिवार था, और उनकी कुटिया में प्रतिदिन कई साधु-संत आते थे. रोजाना अन्न की कमी उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी. द्रौपदी ने इस समस्या के समाधान के लिए युधिष्ठिर से आग्रह किया. तब युधिष्ठिर ने अपने कुलगुरु धौम्य की सलाह पर सूर्यदेव की कठोर तपस्या की. कहते हैं कि तब सूर्यदेव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें एक अक्षय पात्र दिया. यह पात्र तब तक अन्न, फल और शाक उत्पन्न करता था, जब तक द्रौपदी ने दिन का अंतिम भोजन नहीं कर लिया. इस अक्षय पात्र ने पांडवों को और उनके अतिथियों को कभी भूखा नहीं रहने दिया.
दुर्योधन का षड्यंत्र
जब दुर्योधन को अक्षय पात्र के बारे में पता चला, तो उसने पांडवों को फंसाने का षड्यंत्र रचा. उसने दुर्वासा ऋषि को पांडवों के यहां भोजन के लिए भेजा. उस वक्त तक द्रौपदी भोजन कर चुकी थीं. अक्षय पात्र उस दिन और भोजन नहीं दे सकता था. द्रौपदी ने श्रीकृष्ण से सहायता मांगी. कृष्ण ने अक्षय पात्र में बचा हुआ एक चावल का दाना खाया. उनके ऐसा करते ही दुर्वासा ऋषि और उनके शिष्यों का पेट भर गया. परिणामस्वरूप, दुर्वासा ऋषि पांडवों के आश्रम गए ही नहीं और पांडव ऋषि के श्राप से बच गए.
वनवास के बाद अक्षय पात्र का क्या हुआ
वनवास खत्म होने के बाद पांडव महल लौटे और अक्षय पात्र को वहां सुरक्षित रख दिया. चूंकि अब उनकी जीवनशैली बदल चुकी थी, इसलिए उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं रही.