Pradosh Vrat Katha: प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा पाने के लिए महत्वपूर्ण माना गया है. प्रदोष व्रत की पूजा तभी पूरी मानी जाती है, जब प्रदोष व्रत की कथा पढ़ी जाए. यहां पढ़ें प्रदोष व्रत कथा.
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Pradosh Vrat : भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत हर महीने की दोनों त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है. प्रदोष व्रत की पूजा में प्रदोष व्रत की कथा जरूर पढ़ना चाहिए, तभी पूजा का पूरा फल मिलता है. भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 31 अगस्त 2024, शनिवार को पड़ रही है. इसलिए इसे शनि प्रदोष कहा जाएगा. यह भाद्रपद महीने का पहला और अगस्त महीने का आखिरी प्रदोष व्रत है. प्रदोष व्रत कर रहे हैं तो सुबह भगवान शिव की पूजा करें, पूरे दिन व्रत रखें और शाम को प्रदोष काल में फिर से शिव-पार्वती जी की विधि-विधान से पूजा करें. पूजा में प्रदोष व्रत कथा जरूर पढ़ें.
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प्रदोष व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीनकाल में एक गांव में गरीब पुजारी रहता था. उस पुजारी की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर दिन भर भीख मांगती थी और फिर शाम को घर वापस आती थी. एक दिन उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई, जो कि अपने पिता की मृत्यु के बाद दर-दर भटकने लगा था. उसकी यह हालत पुजारी की पत्नी से देखी नहीं गई, वह उस राजकुमार को अपने साथ अपने घर ले आई और पुत्र जैसा रखने लगी.
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एक दिन पुजारी की पत्नी अपने साथ दोनों पुत्रों को शांडिल्य ऋषि के आश्रम ले गई. वहां उसने ऋषि से शिव जी के प्रदोष व्रत की कथा एवं विधि सुनी तथा घर जाकर अब वह भी प्रदोष व्रत करने लगी.
एक बार दोनों बालक वन में घूम रहे थे. उनमें से पुजारी का बेटा तो घर लौट गया, परंतु राजकुमार वन में ही रह गया. उस राजकुमार ने गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते हुए देखा तो उनसे बात करने लगा. उस कन्या का नाम अंशुमती था. उस दिन वह राजकुमार घर देरी से लौटा. राजकुमार दूसरे दिन फिर से उसी जगह पहुंचा, जहां अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी. तभी अंशुमती के माता-पिता ने उस राजकुमार को पहचान लिया तथा उससे कहा कि आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार हो ना, आपका नाम धर्मगुप्त है.
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अंशुमती के माता-पिता को वह राजकुमार पसंद आया और उन्होंने कहा कि शिवजी की कृपा से हम अपनी पुत्री का विवाह आपसे करना चाहते है, क्या आप इस विवाह के लिए तैयार हैं? राजकुमार ने अपनी स्वीकृति दे दी तो उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ. बाद में राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला किया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त की तथा पत्नी के साथ राज्य करने लगा.
फिर वह महल में पुजारी की पत्नी और उसके पुत्र को आदर के साथ ले आया और साथ रखने लगा. पुजारी की पत्नी तथा पुत्र के सभी दुःख व दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे.
एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से इन सभी बातों के पीछे का कारण और रहस्य पूछा, तब राजकुमार ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरी बात बताई और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व और व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया. तब से ही लोग अपने जीवन के कष्टों से निजात पाने के लिए प्रदोष व्रत करने लगे. इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी कष्ट और पाप नष्ट होते हैं एवं मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)