800 वर्षों से कल्पवृक्ष के रूप में आस्था का प्रतीक है 'बूढ़ा बाबा', रहस्य जानकर वैज्ञानिक भी हैरान
Advertisement
trendingNow12625086

800 वर्षों से कल्पवृक्ष के रूप में आस्था का प्रतीक है 'बूढ़ा बाबा', रहस्य जानकर वैज्ञानिक भी हैरान

झूंसी का 800 साल पुराना कल्पवृक्ष (बाओबाब) गंगा की उर्वराशक्ति और भारतीय आस्था का प्रतीक है, जिसकी दीर्घायु में गंगाजल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. वैज्ञानिक शोधों के अनुसार, यह वृक्ष दक्षिण अफ्रीका से आया हो सकता है. 

800 वर्षों से कल्पवृक्ष के रूप में आस्था का प्रतीक है 'बूढ़ा बाबा', रहस्य जानकर वैज्ञानिक भी हैरान

Prayagraj Kalpavriksha: प्रयागराज के झूंसी क्षेत्र में शेख तकी की मजार के पास स्थित कल्पवृक्ष (बाओबाब), गंगा की उर्वराशक्ति का जीवंत प्रमाण है. "बूढ़ा बाबा" के नाम से विख्यात यह वृक्ष, 800 वर्षों से अधिक पुराना है और श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है. वैज्ञानिक भी इसे गंगा की पवित्रता और महात्म्य का प्रतीक मानते हैं. ऐसे में चलिए जानते हैं 800 वर्षों से आस्था के प्रतीक माने जाने वाले इस बूढ़ा-बाबा के बारे में. 

बाओबाब के दीर्घायु होने के क्या है रहस्य

भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) के  वैज्ञानिक के मुताबिक, रोमानिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रो. एड्रियन पैट्रट के साथ किए गए शोध में इस वृक्ष की आयु निर्धारित की गई थी. यह अध्ययन 2020 में "जर्नल प्लॉस वन" में "रेडियोकॉर्बन डेटिंग ऑफ टू ओल्ड बाओबाब्स फ्रॉम इंडिया" शीर्षक से प्रकाशित हुआ था. वर्तमान में डॉ. आरती बीएसआई, देहरादून में कार्यरत हैं.

किस प्रजाति का है यह पेड़?

वनस्पति विज्ञान के जानकार बताते हैं कि गंगा की उपजाऊ मिट्टी और जलवायु ने इस वृक्ष के जीवन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई है. यह वृक्ष एडनसोनिया डिजिटाटा प्रजाति का है, जो दक्षिण अफ्रीका के सवाना क्षेत्र में पाया जाता है. वहां की जलवायु भारत से भिन्न है, लेकिन गंगाजल में मौजूद खनिज तत्व और अनुकूल परिस्थितियों ने इसे जीवित रखने में सहायता की. गर्मियों में जब सूर्य की किरणें रेत पर पड़ती हैं, तो इसे सवाना जैसा वातावरण मिलता है, जिससे इसकी उम्र बढ़ने में मदद मिलती है.

कैसे हुआ भारत में कल्पवृक्ष का आगमन?

यह कल्पवृक्ष भारत कैसे आया, इसका कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है. लेकिन ऐसा माना जाता है कि अरबी, डच और पुर्तगाली व्यापारी जब भारत आए, तो उनके साथ यह पौधा भी लाया गया होगा. यह वृक्ष सदियों से हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों की आस्था से जुड़ा हुआ है और इसे पूजनीय माना जाता है.

जीवन संघर्ष की क्षमता बढ़ाता है कल्पवृक्ष

वनस्पति विज्ञान के जानकारों के मुताबिक, किसी भी वृक्ष की आनुवंशिक संरचना में मौजूद 15-20 फीसदी जीन सक्रिय होते हैं, जबकि 80 फीसदी निष्क्रिय रहते हैं. जब कोई पेड़ कठिन परिस्थितियों का सामना करता है, तो निष्क्रिय जीन भी सक्रिय हो जाते हैं, जिससे उसकी उम्र लंबी हो जाती है.

क्या है कल्पवृक्ष का जीवन स्रोत?

वैसे तो बाओबाब वृक्ष (वानस्पतिक नाम: एडनसोनिया डिजिटाटा) की प्राकृतिक आयु ही लंबी होती है. दक्षिण अफ्रीका में इस प्रजाति का एक वृक्ष 2,000 वर्षों से अधिक पुराना है. भारत में भी प्रयागराज (झूंसी) और बाराबंकी के पारिजात वृक्ष इसके प्रमुख उदाहरण हैं. समय के साथ झूंसी के कल्पवृक्ष में क्षरण देखने को मिला, लेकिन गंगा के प्रवाह ने इसे निरंतर जीवन दिया. इसी तरह बाराबंकी के पारिजात वृक्ष के लिए गोमती नदी का जल सहायक रहा है. हालांकि, जल संकट के कारण अब वहां कृत्रिम रूप से जलापूर्ति की जा रही है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

Trending news