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Shri Ram And Shiv ji Story: श्रीराम जी 14 वर्ष के वनवास काल के दौरान जब जाबालि ऋषि से मिलने गुप्त रूप से नर्मदा के तट पर आए, उस समय वह स्थान पर्वतों से घिरा था. रास्ते में भगवान शंकर भी उनसे मिलने को आतुर थे लेकिन भगवान और भक्त के बीच वे नहीं आ रहे थे. भगवान राम के पैरों को कंकर न चुभें इसके लिए शंकर जी ने छोटे-छोटे कंकरों को गोलाकार कर दिया. इसी लिए कंकर-कंकर में शंकर बोला जाता है.
जब प्रभु श्रीराम रेवा तट पर पहुंचे तो गुफा से नर्मदा का जल बह रहा था. राम यहीं रुके और बालू एकत्र कर शिवलिंग बनाया और एक माह तक उसका नर्मदा के जल से अभिषेक करते रहे. आखिरी दिन लिंग के स्थान पर शंकर जी स्वयं विराजित हो गए और भगवान राम शंकर का मिलन हुआ.
रामचरित मानस में कई ऐसे दृष्टांत हैं, जिनमें दोनों प्रभु एक-दूसरे की आराधना करते दिखते हैं. प्रभु राम जिस समय लंका पर चढ़ाई की तैयारी कर रहे थे और समुद्र पर सेतु का काम चल रहा था, उस समय भी प्रभु राम के मन में भोलेनाथ की भक्ति हिलोरें मारने लगी. मानस के मुताबिक प्रभु राम ने कहा यहाँ की भूमि परम रमणीय और उत्तम है. इसकी असीम महिमा वर्णन नहीं की जा सकती. मैं यहाँ शिव जी की स्थापना करूँगा, मेरे हृदय में यह महान संकल्प है.
परम रम्य उत्तम यह धरनी ।
महिमा अमित जाइ नहिं बरनी ।।
करिहउँ इहाँ संभु थापना ।
मोरे हृदयँ परम कलपना ।।
इसके बाद ही राम ने यहां शिवलिंग की स्थापना की, जिसका नाम रामेश्वरम हुआ. श्रीराम ने रामेश्वरम नाम की व्याख्या करते हुए कहा कि जो राम के ईश्वर हैं वही रामेश्वर यानी शिव हैं। वहीं दूसरी ओर शिव जी ने रामेश्वरम नाम की व्याख्या करते हुए कहा कि राम जिनके ईश्वर वह रामेश्वर. जब दोनों ही भगवान एक-दूसरे को अपना स्वामी मानते हैं तो फिर एक की पूजा से दूसरे का प्रसन्न होना स्वाभाविक है. भगवान शिव केवल अपने आराध्य राम की सेवा की खातिर ही हनुमान जी के रूप में अवतरित हुए और साबित कर दिया कि तीनों लोक में उनसे बड़ा राम भक्त दूसरा नहीं है. इसीलिए सावन में यदि भोलेनाथ की प्रसन्नता प्राप्त करनी है तो उनके साथ प्रभु राम यानी उनके आराध्य को किसी न किसी रूप में जोड़ दीजिए. भगवान महेश्वर अवश्य प्रसन्न होंगे.
एक बात स्पष्ट रूप से समझनी चाहिए कि महादेव और श्री राम दोनों अभिन्न हैं, इसलिए किसी एक की पूजा और दूसरे का निरादर कतई संभव नहीं है. यदि कोई श्रीराम का द्रोही है लेकिन शिव उपासक है या फिर राम उपासक है किंतु शिव द्रोही है, ऐसे व्यक्ति को उपासना का फल तो दूर नरक में जाने की बात कही गई है.
संकरप्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास।
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास॥
सावन में शिव मंत्र ॐ नमः शिवाय एवं श्री राम जय राम जय जय राम' मंत्र का उच्चारण कर शिव को जल चढ़ाने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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