Shiv Ji ki Aarti: जगत के संहारक शिव जी की करें आरती, प्रसन्न होते ही धन से भर जाएंगे घर
Advertisement
trendingNow12529409

Shiv Ji ki Aarti: जगत के संहारक शिव जी की करें आरती, प्रसन्न होते ही धन से भर जाएंगे घर

Shiv Ji ki Aarti: जगत के संहारक शिव जी की अगर आप आरती करते हैं तो वह काफी प्रसन्न होते हैं. ऐसा करने वाले भक्तों पर शिव जी प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी विशेष कृपा करते हैं.

Shiv Ji ki Aarti: जगत के संहारक शिव जी की करें आरती, प्रसन्न होते ही धन से भर जाएंगे घर

Shiv Ji ki Aarti: हिंदू कैलेंडर के मुताबिक सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित माना जाता है. मान्यता के मुताबिक भगवान शिव को देवताओं में सर्वोच्च स्थान हासिल है. शिव का अर्थ होता है ‘शुद्ध और संहारक’. पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव त्रिमूत्रि (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के बीच संहारक की भूमिका में हैं. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक वह कैलाश पर्वत पर तपस्वी का जीवन जीते हैं.

अलग-अलग नाम से बाबा को पुकारते हैं भक्त

यूं तो शिव को कई नाम से जाना जाता है. कोई इनकी आरधना महादेव के नाम से करता है तो कई पशुपति के नाम से. कोई भैरव के नाम से पूजता है तो कोई विश्वनाथ के नाम से याद करता है. भक्तों के लिए ये भोले नाथ हैं तो कोई इन्हें शंभू और शंकर के नाम से जानता है. अलग-अलग भक्त इन्हें अलग-अलग नाम से इनकी पूजा करते हैं. पूजा के भक्त आरती जरूर करते हैं ऐसा करने से शिव जी प्रसन्न होते हैं और मनवांछित फल देते हैं. भक्तों के लिए यहां हम आरती दे रहे हैं जिसे शिव जी की पूजा के बाद पढ़ सकते हैं

यहां पढ़ें शिव जी की पूरी आरती

ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥

ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEंWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

 

Trending news