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नेपाल एक बार फिर दहशत और पीड़ा के साए में है। लोग अभी 25 अप्रैल को आए विनाशकारी भूकंप की त्रासदी से उबर भी नहीं पाए थे कि 12 मई को (मंगलवार) आए भूकंप के ताजा झटकों ने उनके जेहन में विनाश, भय और पीड़ा की भयावह तस्वीर ताजा कर दी। 12 मई को दिन में 12 बजकर 35 मिनट पर आए भूकंप की तीव्रता 7.4 बताई गई है और इससे नेपाल और भारत में दोनों जगहों पर जानें गई हैं, इमारतों को नुकसान पहुंचा है। भूगर्भ वैज्ञानिकों ने इसे 12 मई के भूकंप का ऑफ्टरशॉक बताया है। इस भूकंप का केंद्र काठमांडू के 83 किलोमीटर पूर्व में देहाती इलाके नेपाल-चीन सीमा के नजदीक कोडारी में था। भारत में इस भूकंप के झटके उत्तर प्रदेश, राजधानी दिल्ली, पश्चिम बंगाल और बिहार के विभिन्न हिस्सों में महसूस किए गए।
भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि 12 मई का भूकंप 25 अप्रैल को आए भूकंप का ऑफ्टरशॉक था। इसलिए इसकी नुकसान पहुंचाने की क्षमता पिछेल भूकंप की तीव्रता से 15 गुना कम थी। इसलिए जान एवं माल का नुकसान कम हुआ। नेपाल में राहत एवं बचाव कार्य के बाद अभी लोगों के पुनर्वास का कार्यक्रम जारी है। भारी संख्या में लोग अपने घरों में लौटे नहीं हैं। अभी वे राहत-शिविरों में जीवन-यापन करने के मजबूर हैं और उनका जीवन राहत-सामग्री पर ही पूरी तरह निर्भर है। ऐसे में उनके ऊपर कुदरत की दोहरी मार पड़ी है। बताया जा रहा है कि भूकंप के ताजा झटकों से सबसे ज्यादा नुकसान सिंधुपालचौक जिले में हुआ है। सिंधुपाल चौक और उसके आस-पास के इलाकों में ज्यादातर कच्चे मकान हैं, वहां जान-माल का ज्यादा नुकसान हो सकता है। लेकिन इतना तो तय है कि जो मकान 7.9 तीव्रता के भूकंप के झटकों को झले गए वे इस बार बच गए होंगे।
समूचे नेपाल और उत्तर भारत के लोगों में दहशत का माहौल पैदा करने वाले भूकंप से आखिर बचा कैसे जाए। यह एक बड़ा प्रश्न है। यह सत्य है कि भूकंप के बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती लेकिन यह भी सत्य है कि भूकंप स्वयं किसी की जान नहीं लेता। बल्कि जान एवं माल की सर्वाधिक क्षति इमारतों के गिरने से होती है। इमारतों को भूकंप रोधी बनाकर नुकसान से बचा जा सकता है। लेकिन इस ओर लोगों का ध्यान न के बराबर है। ग्रामीण इलाकों में भवन निर्माण के समय भूकंप रोधी इमारत के बारे में शायद ही ध्यान दिया जाता है। मेट्रोपॉलिटन शहरों खासकर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु में चुनिंदा बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में ही भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।
देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो यह शहर भूंकप संभावित क्षेत्र सेस्मिक जोन-4 में आता है। भू-गर्भ विज्ञानी लंबे समय से अंदेशा जता रहे हैं कि दिल्ली में कभी भी बड़ा भूकंप आ सकता है। दिल्ली पिछले कुछ सालों में आबादी का बड़ा दबाव झेल रही है। पूर्वी दिल्ली की अगर बात करें तो यहां के ज्यादातर इलाकों की इमारतें जीर्ण अवस्था में हैं। लक्ष्मी नगर में कुछ साल पहले एक इमारत के गिरने से सैकड़ों लोगों की जानें गई थीं। यह इमारत भूकंप में नहीं बल्कि बेसमेंट में लंबे समय से जमे पानी की वजह से गिरी। अंदाजा लगाया जा सकता है कि रिक्टर पैमाने पर 6 तीव्रता का भूंकप दिल्ली एवं एनसीआर क्षेत्र में बड़ी तबाही मचा सकता है। दिल्ली में अभी जो इमारतें बन रही हैं उनमें भूकंपरोधी मानकों का पालन नहीं हो रहा है, यहां तक कि इमारत की नीव भी इतनी कमजोर हैं कि वे तीव्रता वाले भूकंप के झटकों को झेल नहीं सकतीं। दिल्ली में भी सबसे ज्यादा खतरा यमुना के किनारे बसे इलाकों में है, पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मी नगर, पटपड़गंज के अलावा अक्षरधाम मंदिर सबसे ज्यादा खतरे वाले इलाकों में हैं।
मान लिया जाय कि 25 अप्रैल की तीव्रता वाला भूकंप यदि दिल्ली में आया होता तो क्या होता? भूकंप के झटकों को झेलने के लिए कितनी सुरक्षित है दिल्ली? यह बड़ा प्रश्न है। भूगर्भशास्त्री कहते हैं कि दिल्ली की दुविधा यह भी है कि वह हिमालय के निकट है जो भारत और यूरेशिया जैसी टेक्टॉनिक प्लेटों के मिलने से बना था और इसे धरती के भीतर की प्लेटों में होने वाली हलचल का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। दिल्ली की 70-80% इमारतें भूकंप का औसत से बड़ा झटका झेलने के लिहाज से बनाई ही नहीं गई हैं। पिछले कई दशकों के दौरान यमुना नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर बढ़ती गईं इमारतें खास तौर पर बहुत ज्यादा चिंता की बात है। बीते दस-पंद्रह सालों में हुए विकास का ही नतीजा है कि राजधानी दिल्ली और एनसीआर में कंक्रीट की आसमान छूती इमारतें दिखाई दे रही हैं। इनमें से दो-तीन प्रतिशत ही भूंकपरोधी तकनीक से बनाई गई हैं। या इनके निर्माण में किसी नियम-कायदे-कानूनों का पालन किया गया है। ये बहुमंजिली इमारतें भूकंप आने की स्थिति में जान एवं माल की भारी क्षति का कारण बन सकती हैं।
कुल मुलाकर यही कहना है कि भूकंप से हमें डरने की जरूरत नहीं है। जरूरत है लोगों को जागरूक होने की। केवल सरकार भूकंप से बचाव नहीं कर सकती। इसके लिए लोगों को भी आगे आना होगा। यह सबको पता है कि भूकंप के आने पर इमारतें ही सर्वाधिक नुकसान पहुंचाती हैं। इसलिए भूकंप से बचाव के लिए पहले से घरों को बनाने की इंजीनियरिंग तय होनी चाहिए। हम भूकंप को रोक नहीं सकते, लेकिन जापान की तरह उससे बचने के प्रयास तो कर ही सकते हैं। विडंबना यह है अपने देश में लोगों को भूकंप के बारे में बहुत जानकारी नहीं है। समय की मांग है कि नेपाल में आए भूकंप से हम और सरकार दोनों सीख लें और इमारतों के निर्माण में भूंकपरोधी तकनीक का इस्तेमाल करें तभी जाकर भूकंप की विपदा एवं त्रासदी से बचा जा सकेगा।