राजकुमार के वो डायलॉग्स जिन्हें सुन कांप जाता था दुश्मनों का कलेजा, आज भी नहीं है कोई टक्कर

Birthday Special: राजकुमार बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता राजकुमार अपने बेहतरीन डायलॉन्स के लिए जाने जाते थे.  भले ही आज वह हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके डायलॉग्स ने उन्हें अमर बना दिया है. उनके जन्मदिन पर पढ़ते हैं डायलॉग्स   

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 8, 2022, 10:14 AM IST
  • राजकुमार के शानदार डायलॉग्स
  • दमदार एक्टिंग से जीता दिल
राजकुमार के वो डायलॉग्स जिन्हें सुन कांप जाता था दुश्मनों का कलेजा, आज भी नहीं है कोई टक्कर

नई दिल्ली: Birthday Special:  बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता राजकुमार अपने अभिनय और डायलॉन्स के लिए जाने जाते थे. उनका जन्म  8 अक्टूबर 1926 बलुचिस्तान में हुआ था.  3 जुलाई 1996 को 69 वर्ष की उम्र में वह दुनिया को अलविदा कह गए थे. बता दें कि राजकुमार का असली नाम कुलभूषण पंडित था. फिल्मों में एक्टिंग करने से पहले वह सब इंस्पेक्टर थे. लेकिन उन्होंने अपने अभिनय खासकर डायलॉग्स से इंडस्ट्री में अलग ही पहचान बनाई थी. भले ही आज वह हमारे बीच नहीं है लेकिन उनक दमदार डायलॉग्स ने उन्हें अमर बना दिया है. आइए उनकी बर्थ एनिवर्सरी पर पढ़ते हैं उनके शानदार डायलॉग्स. 

औरों की ज़मीन खोदोगे तो उसमें से मिट्टी और पत्थर मिलेंगे. और हमारी ज़मीन खोदोगे तो उसमें से हमारे दुश्मनों के सिर मिलेंगे.  (बेताज बादशाह -1994)

 बच्चे बहादुर सिंह, कृष्ण प्रसाद मौत की डायरी में एक बार जिसका नाम लिख देता है, उसे यमराज भी नहीं मिटा सकता. (जंग बाज 1989)

कौवा ऊंचाई पर बैठने से कबूतर नहीं बन जाता मिनिस्टर साहब! ये क्या हैं और क्या नहीं हैं, ये तो वक्त ही दिखलाएगा. (पुलिस पब्लिक 1990)

ये बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं, हाथ कट जाए तो ख़ून निकल आता है. (वक्त 1965)

 बोटियां नोचने वाला गीदड़, गला फाड़ने से शेर नहीं बन जाता. ( मरते दम तक 1987)

अपना तो उसूल है. पहले मुलाकात, फिर बात, और फिर अगर जरूरत पड़े तो लात. ( तिरंगा (1992)

ताक़त पर तमीज़ की लगाम जरूरी है. लेकिन इतनी नहीं कि बुज़दिली बन जाए. (सौदागर 1991)

हम तुम्हें वो मौत देंगे, जो ना तो किसी कानून की किताब में लिखी होगी और ना ही कभी किसी मुजरिम ने सोची होगी. (तिरंगा 1992)

बेशक मुझसे गलती हुई. मैं भूल ही गया था, इस घर के इंसानों को हर सांस के बाद दूसरी सांस के लिए भी आपसे इजाज़त लेनी पड़ती है. और आपकी औलाद ख़ुदा की बनाई हुई ज़मीन पर नहीं चलती, आपकी हथेली पर रेंगती है. (पाक़ीज़ा 1972)

जिसके दालान में चंदन का ताड़ होगा, वहां तो सांपों का आना-जाना लगा ही रहेगा. (बेताज बादशाह 1994)

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