नई दिल्ली: अपने सीधे-सादे शब्दों को एक खूबसूरत तस्वीर बनाकर पेश करके गुलजार साहब की तारीफ में जितने कसीदे पढ़े जाएं उतने कम ही लगते हैं. उन्होंने अपने शब्दों का जादू़ कई गानों में ऐसा भरा कि वो यादगार बन गए. गुलजार साहब ने एक लंबा सफर इस इंडस्ट्री में तय किया है. यहां उन्होंने सफलता की बुलंदियों को छुआ, वहीं, इस ऊंचे मुकाम, तरक्की और शोहरत को हासिल करने के लिए उन्हें कड़ा संघर्ष भी करना पड़ा.
गुलजार ने किए छोटे-मोटे काम
18 अगस्त, 1934 को पंजाब के दीना गांव (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) में जन्में संपूर्ण सिंह कालरा उर्फ गुलजार साहब का परिवार भी 1947 को भारत-पाकिस्तान के बंटवारे में जैसे बर्बाद हो गया था. घर, स्कूल, दोस्त, रिश्तेदार सब कुछ एक बीता हुआ कल हो बन गया था. अब लड़ाई थी बस खुद को अपने परिवार को जिंदा रखने की. रोजमर्रा की जरूरतों और आर्थिक मदद के लिए संपूर्ण सिंह ने भी छोटे-मोटे काम करना शुरू कर दिया.
मैकेनिक के तौर पर किया काम
संपूर्ण सिंह एक गैराज में मैकेनिक के तौर पर काम करने लगे. हालांकि, इस मुश्किल वक्त में दिल के किसी कोने में एक लेखक छिपा बैठा था, जिसे जब वक्त मिलता वह शायरियां लिखने बैठ जाता. हालांकि, पिता मक्खन सिंह कालरा के कानों में जब ये बात पड़ी कि उनका बेटा लेखक बनना चाहता है तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया, लेकिन तब उन्हें क्या पता था कि उनके संपूर्ण की किस्मत उन्हें 'गुलजार साहब' बनाने वाली है.
पिता ने लगाई थी फटकार
पिता ने गुस्से में बेटे को खूब फटकार लगाई, लेकिन गुलजार भी कहां मानने वालों में से थे उन्होंने अपने शब्दों के जाल बिछाना नहीं छोड़ा. वक्त आगे बढ़ा और गुलजार जुड़ गए प्रोग्रेसिव राइटर्स असोसिएशन के साथ. यहां उनकी मुलाकात हुई बिमल रॉय और शैलेंद्र से. वे भी गुलजार के शब्दों के जादू से बच नहीं पाए और उन्होंने गुलजार को फिल्मों में आने के लिए जोर देना शुरू कर दिया. ऐसे में वह भी अपने लेखक बनने के सपने को पूरा करने के लिए मुंबई आ गए.
दिल्ली में हो गया था पिता का निधन
मुंबई आने के बाद गुलजार साहब की जिंदगी में सबसे बड़ी घटना घटी, जिससे वह पूरी तरह बेखबर थे और अपने सपने को पूरा करने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे. दरअसल, उस वक्त गुलजार के पिता का दिल्ली में निधन हो गया और अपने परिवार से मीलों दूर मुंबई में थे. किसी ने उन्हें इस दुखद घटना की खबर तक नहीं की.
परिवार ने नहीं दी थी जानकारी
गुलजार मुंबई में बिमल रॉय के असिस्टेंट के तौर पर काम कर रहे थे. उन्होंने किताब 'हाउसफुल: द गोल्डन ईयर्स ऑफ बॉलीवुड' में पिता के निधन का जिक्र किया है. उन्होंने इसमें बताया, 'मेरे बड़े भाई भी मुंबई में ही रहते थे. उन्हें पिता के निधन का पता चला और वह उसी समय फ्लाइट लेकर दिल्ली चले गए. मुझे 2 दिन बाद पड़ोसियों से खबर मिली कि पिताजी का निधन हो गया. पैसों की तंगी के कारण पैसे फ्लाइट की जगह ट्रेन ली और 24 घंटे बाद घर पहुंचा. तब तक सब खत्म हो चुका था.'
पिता की अस्थियां लेकर लौट आए थे गुलजार
पिता के निधन के बाद गुलजार साहब के मन में एक सूनापन आ गया था. वह मुंबई लौट आए, लेकिन पिता की अस्थियां अपने साथ ही ले आए. उन्होंने अपने पिता का अंतिम संस्कार नहीं किया. कुछ समय बाद गुलजार के बेहद करीबी बिमल रॉय को कैंसर हो गया और वह धीरे-धीरे करके हर दिन मौत के करीब जाने लगे. गुलजार उनके पास बैठकर रोते रहते थे. बिमल दा भी कैंसर से जंग हार गए और इस दुनिया को अलविदा कह गए.
5 साल बाद किया अंतिम संस्कार
बिमल दा के निधन ने गुलजार को भीतर से तोड़ दिया था, लेकिन उनके निधन के साथ ही गुलजार ने अपने पिता को भी अंतिम विदाई दे दी. जब बिमल दा का अंतिम संस्कार किया गया, उसी समय गुलजार साहब ने पिता की अस्थियां विसर्जित कर दीं. तब उनके पिता के निधन को 5 साल हो चुके थे.
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