छावा ने पिता शिवाजी से की बगावत, मुगलों से मिला बैठे थे हाथ... इतिहास का ये किस्सा आपने नहीं पढ़ा होगा!

भारत के इतिहास कई ऐसे किस्से छिपे हैं, जिनके बारे में आज भी लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है. ऐसे में चलिए आज उन वाकये के बारे में बात करते हैं जब संभाजी ने मुगलों से हाथ मिला लिया था.

Written by - Bhawna Sahni | Last Updated : Feb 19, 2025, 10:24 AM IST
    • पिता के खिलाफ हो गए थे संभाजी
    • संभाजी ने मिलाया था मुगलों से हाथ
छावा ने पिता शिवाजी से की बगावत, मुगलों से मिला बैठे थे हाथ... इतिहास का ये किस्सा आपने नहीं पढ़ा होगा!

नई दिल्ली: बॉलीवुड एक्टर विक्की कौशल की फिल्म 'छावा' इस समय खूब सुर्खियां बटोर रही है. इस फिल्म में विक्की को छत्रपति शिवाजी महाराज के बड़े बेटे संभाजी राजे का किरदार निभाते हुए देखा गया है, जो बाद में छत्रपति के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर हुए. जब संभाजी का जन्म हुआ तो उन्हें शिवाजी छावा कहा गया, जिसका अर्थ है 'शेर का बच्चा'. संभाजी कमाल की प्रतीभा के धनी थे, लेकिन उनके जीवन में एक वक्त वो भी आया वह अपने ही पिता शिवाजी बागी बन गए और उन्होंने औरंगजेब से हाथ मिला लिया. यह वाकया अक्सर लोगों को हैरान कर देता है. ऐसे में चलिए जान लेते हैं क्या है ये पूरा किस्सा.

शिवाजी ने खूब की संभाजी की देख-रेख

संभाजी जब 2 वर्ष के तभी उनकी मां सईबाई का निधन हो गया. वहीं, शिवाजी महाराज अपने बेटे संभाजी को शिक्षित करने के लिए कई विद्वानों को रखते थे. वहीं  संभाजी की संस्कृत पर बेहतरीन पकड़ थी. जब संभाजी केवल 9 वर्ष के थे, तभी का एक किस्सा काफी मशहूर है. दरअसल, उस समय औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुलाया, उनके साथ संभाजी भी आगरा पहुंचे, लेकिन इस दौरान औरंगजेब ने दोनों को नजरबंद कर लिया. हालांकि, वह लंबे वक्त तक उन्हें कैद नहीं कर पाया. शिवाजी उन्हें चकमा देकर वहां से भागने में कामयाब हो गए. उनके साथ संभाजी भी कैद से भाग निकले.

शिवाजी महाराज ने किया बेटे को सुरक्षित

कहा जाता है कि जब शिवाजी आगरा से महाराष्ट्र जा रहे थे तब वह मथुरा में अपने किसी रिश्तेदार के घर ही संभाजी को छोड़ गए. इसी के साथ उन्होंने अपने बेटे के मौत की झूठी खबर भी फैला दी. ऐसे में जब मुगल दोनों को खोजने निकले तो उन्हें संभाजी की मौत की अफवाह मिली, जिस पर उन्होंने भरोसा कर लिया. वहीं, शिवाजी महाराज को लेकर मुगल समझ चुके थे कि अब वह उनकी पहुंच से बहुत दूर जा चुके हैं और उन्होंने अपनी खोज रोक दी. इसके बाद ही संभाजी को महाराष्ट्र पहुंचाने की व्यवस्था की गई.

संभाजी की छवि बिगाड़ी

कमल गोखले की किताब शिवपुत्र संभाजी और विश्वास पाटिल की किताब महासम्राट में बताया गया है कि शिवाजी का उत्तराधिकारी संभाजी को माना गया था, लेकिन इसी दौरान उनके बागी होने की खबरें फैलने लगी, जिससे संभाजी कि छवि बिगड़ने लगी. कहते हैं कि ये अफवाहें उनकी सौतेली मां सोयराबाई ने उड़वाई थीं, ताकि सिंहासन का उत्तराधिकारी वह अपने बेटे राजाराम को बना सकें.

भाग निकले थे संभाजी

दूसरी ओर जेएल मेहता की किताब 'एडवांस्ड स्टडी इन द हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न इंडिया' में बताया गया है कि शिवाजी ने संभाजी को बेहतरीन शिक्षा और प्रशिक्षण दिलाई थी, ऐसे में एक अच्छे सैनिक भी थे. हालांकि, उनकी छवि बिगड़ने की खबरें शिवाजी के कानों तक भी पहुंच गईं, ऐसे में उन्होंने साल 1678 में पन्हाला के किले में संभाजी को निगरानी में रखवा दिया, लेकिन कुछ ही महीनों में संभाजी यहां से भाग निकले.

दिलेर खान से मिलाया था हाथ

यह बात है साल 1678 की, जब संभाजी ने औरंगाबाद में तैनात मुगल गवर्नर दिलेर खान से हाथ मिला लिया. दिलेर खान संभाजी की प्रतिभा से बखूबी वाकिफ था. मराठा साम्राज्य में संभाजी की मजबूत स्थिति को देखते हुए दिलेर खान ने अपनी राजनीतिक चाल चलते हुए उन्हें अपने साथ रख लिया. बताया जाता है कि संभाजी यहां करीब एक साल तक रहे.

संभाजी की खुली आंखें

अब साल आया 1679 में, यहां कुछ ऐसा हुआ कि संभाजी कि आंखें खुलने लगीं. दरअसल, मुगल सेना ने भूपलगढ़ के किले पर हमला कर दिया था. वहां दिलेर खान और उसके सैनिकों ने मासूम लोगों के साथ बेहद क्रूर व्यवहार किया. इतना ही नहीं मुगलों ने महाराष्ट्र के कई गांवों पर कब्जा भी कर लिया. संभाजी को जब यह सब पता चला तो वह बहुत नाराज हो गए. इसी दौरान उन्होंने यह खबर भी मिली कि औरंगजेब के आदेश पर उन्हें गिरफ्तार कर दिल्ली भेजने की तैयारी की जा रही है. 

जब छत्रपति बने शिवाजी

ऐसे में संभाजी, पत्नी संग मुगलों को चकमा देकर वहां से भाग निकले और बीजापुर पहुंच गए. वहां से दिसंबर की शुरुआत में वह पन्हला पहुंच गए, जहां शिवाजी महाराज पूरी गर्मजोशी से उनसे मिले. इसके बाद संभाजी औपचारिक तौर पर 20 जुलाई 1680 को छत्रपति बने. उस समय उन्होंने पिता शिवाजी महाराज की ही तरह मुगलों का सामना किया. औरंगजेब को तो उन्होंने नाकों चने चबवा दिए थे.

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