Holi 2023: लट्ठमार, फूल, गुलाल की होली तो सुनी होगी, क्या छतरी होली के बारे में जानते हैं आप

Holi 2023: आमतौर पर होली पूरे देश में मनाई जाती है. देश में अलग-अलग जगह अलग-अलग तरह से होली मनाने की परंपरा है. ब्रज क्षेत्र में लट्ठमार होली खेली जाती है. गुजरात के द्वारका क्षेत्र की फूलों की होली मशहूर है. काशी में मसाने की होली खेली जाती है. राजस्थान के कुछ इलाकों में अंगारों से होली खेली जाती है. ऐसे ही छतरी होली की भी अपनी पहचान है. 

Written by - Lalit Mohan Belwal | Last Updated : Mar 5, 2023, 02:00 PM IST
  • टोलों को बड़े-बड़े छाते से सजाया जाता है
  • फाग के गीतों के साथ होता है होली मिलन
Holi 2023: लट्ठमार, फूल, गुलाल की होली तो सुनी होगी, क्या छतरी होली के बारे में जानते हैं आप

नई दिल्लीः Holi 2023: आमतौर पर होली पूरे देश में मनाई जाती है. देश में अलग-अलग जगह अलग-अलग तरह से होली मनाने की परंपरा है. ब्रज क्षेत्र में लट्ठमार होली खेली जाती है. गुजरात के द्वारका क्षेत्र की फूलों की होली मशहूर है. काशी में मसाने की होली खेली जाती है. राजस्थान के कुछ इलाकों में अंगारों से होली खेली जाती है. ऐसे ही छतरी होली की भी अपनी पहचान है. 

समस्तीपुर में मनाई जाती है छतरी होली
दरअसल, बिहार के समस्तीपुर के धमौन इलाके में छाता या छतरी होली मनाई जाती है. इस छाता होली का उल्लास थोड़ा अलग होता है और इसकी तैयारी भी एक पखवाड़े पहले से ही शुरू हो जाती है. जिले के पटोरी अनुमंडल क्षेत्र के पांच पंचायतों वाले विशाल गांव धमौन में दशकों से ये होली मनाई जाती है.

टोलों को बड़े-बड़े छाते से सजाया जाता है
होली के दिन हुरिहारों (होल्यारों) की टोली बांस की तैयार छतरी के साथ फाग गाते निकलती है तो फिर पूरा इलाका रंगों से सराबोर हो जाता है. सभी टोलों में बांस के बड़े-बड़े छाते तैयार किए जाते हैं और इन्हें कागजों तथा अन्य सजावटी सामानों से आकर्षक ढंग से सजाया जाता है.

फाग के गीतों के साथ होता है होली मिलन
प्रत्येक टोले में बांस के विशाल, कलात्मक छाते बनाए जाते हैं. पूरे गांव में करीब 30 से 35 ऐसी ही छतरियों का निर्माण होता है. होली के दिन का प्रारंभ छातों के साथ सभी ग्रामीण अपने कुल देवता स्वामी निरंजन मंदिर परिसर में एकत्र होकर अबीर-गुलाल चढ़ाते हैं और फिर इसके बाद तो ढोल की थाप और हारमोनियम की लय पर फाग के गीतों के साथ लोग गले मिलते हैं और फिर दिनभर यही कार्यक्रम चलता है.

लौटते हुए चैती गाते हैं ग्रामीण
ग्रामीण अपने टोले के छातों के साथ शोभा यात्रा में तब्दील होकर महादेव स्थान के लिए प्रस्थान करते हैं. परिवारों में मिलते-जुलते खाते-पीते यह शोभा यात्रा मध्य रात्रि महादेव स्थान पहुंचती है. जाने के क्रम में ये लोग फाग गाते हैं, लेकिन लौटने के क्रम में ये चैती गाते लौटते हैं. इस समय फाल्गुन मास समाप्त होकर चैत्र माह की शुरुआत हो जाती है.

ग्रामीण बताते हैं कि इस दौरान गांव के लोग रंग और गुलाल की बरसात करते हैं और कई स्थानों पर शरबत और ठंडई की व्यवस्था होती है.

होली के लिए 50 मंडली बनाई जाती हैं
ग्रामीणों का कहना है कि 5 पंचायत उत्तरी धमौन, दक्षिणी धमौन, इनायतपुर, हरपुर सैदाबाद और चांदपुर की लगभग 70 हजार आबादी इस छाता होली में हिस्सा लेती है. इसके लिए करीब 50 मंडली बनाई जाती है. एक मंडली में 20 से 25 लोग शामिल होते हैं.

पहले एक ही छतरी की जाती थी तैयार
इस अनोखी होली की शुरुआत कब हुई इसकी प्रमाणिक जानकारी तो कहीं उपलब्ध नहीं है, लेकिन गांव के बुजुर्ग हरिवंश राय बताते हैं कि इसकी शुरुआत 1930-35 में बताई जाती है. अब यह होली इस इलाके की पहचान बन गई है. आसपास के क्षेत्र के सैकड़ों लोग इस आकर्षक और अनूठी परंपरा को देखने के लिए जमा होते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि पहले एक ही छतरी तैयार की जाताी थी, लेकिन धीरे-धीरे इन छतरियों की संख्या बढ़ती चली गई.

गांव के बुजुर्ग मानते हैं कि आज के युवाओं ने भी इस परंपरा को जिंदा रखा हुआ है. उनका मानना है कि इससे केल देवता प्रसन्न होते हैं और गांवों में एक साल तक खुशहाली और गांव पवित्र बना रहता है.

(इनपुटः आईएएनएस)

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