Republic Day 2025: 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया था. इसके बाद से ही हर साल इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है. हर भारतीय के लिए यह दिन बेहद खास होता है. बचपन में तो गणतंत्र दिवस का रंग और गहरा दिखता था. स्कूलों में कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था. वहीं, 26 जनवरी के दिन टीवी के सामने बैठकर रिपब्लिक डे की परेड देखना एक अलग ही अनुभव होता था, जहां देशभर के अलग-अलग राज्यों की बेहद खूबसूरत झांकियां देखने को मिलती थीं.
हालांकि, इन झांकियों को देखते हुए कई लोगों के मन में यह सवाल उठते होंगे कि आखिर गणतंत्र पर ये परेड क्यों निकाली जाती हैं? अगर आप भी आज तक इस तरह के सवालों के जवाब खोजते आ रहे हैं तो चलिए आज हम इन्हें सुलझाने की कोशिश करते हैं.
क्यों निकाली जाती है परेड?
परेड निकालने को अगर सीधी भाषा में समझना हो तो कह सकते हैं कि इसका अर्थ है अपने सैनिकों, देश और हथियारों का प्रदर्शन करना, जिसे देख पूरे देश की सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. हालांकि, शायद ही किसी को जानकारी होगी कि परेड निकालने की ये परंपरा कोई नहीं है, बल्कि इसके तार मेसोपोटामिया के समय से जुड़े हैं. मेसोपोटामिया के राजा इसी तरह की परेड निकाला करते थे.
ब्रिटिश काल में भी निकलती है परेड
वहीं, भारत में परेड की बात करें तो देश में ब्रिटिश काल के दौरान भी इस तरह की परेड निकाली जाती थीं. ब्रिटिश भारतीयों के साथ-साथ पूरी दुनिया के सामने अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए परेड निकालते थे. खासतौर पर वह अपनी शक्तियां पुर्तगाल और फ्रांस के समक्ष किया करते थे. वहीं, अंग्रेज जाने के बाद अपनी कुछ चीजें यहीं छोड़ गए. इन्हीं में से अपनी एक चीज जो उन्होंने भारत को सौंपी वो है सैनिक परेड.
पूरे भारत से दिल्ली पहुंचे थे लोग
भारत की पहली परेड की बात करें तो 26 जनवरी, 1950 को इर्विन स्टेडियम में आयोजन की गई थी, जिसे आज मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम भी कहा जाता है. पूरे भारत के कोने-कोने से भारी भीड़ दिल्ली पहुंच रही थी. बताया जाता है कि रायसीना हिल से लेकर इरविन स्टेडियम तक सिर्फ लोगों के सिर ही नजर आ रहे थे. लाखों लोग एक साथ एक ही जगह पर उमड़ आए थे, पैर तक रखने की जगह नहीं थी. इसके बाद दिल्ली की सबसे बड़ी इमारत से राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद बाहर आए. कभी इसी रास्ते से अंग्रेजों के सबसे बड़े अफसर बाहर आते थे.
गर्व से ऊंचा था भारतीयों का सिर
राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को देख नारों का शोर सुनाई देने लगा. लोग खुशी से तालियां बजा रहे थे. इस दौरान इंडोनेशिया के राष्ट्रपति अहमद सुकर्णों को पहले इंटरनेशनल चीफ गेस्ट के तौर पर आमंत्रित किया था. इस मंजर को देख हर भारतीय का चेहरा खुशी से खिला हुआ था. सभी का सिर गर्व से ऊंचा था.
अलग-अलग जगहों पर होती थी परेड
बता दें कि शुरुआती कुछ सालों तक गणतंत्र दिवस की परेड के लिए अलग-अलग जगहें चुनी जाती थीं. 1950 में सबसे पहले ये परेड इर्विन स्टेडियम में हुई. इसके बाद इसे किंग्सवे कैंप तो कभी रामलीला मैदान में भी आयोजित किया गया. 1950 से लेकर 1954 तक इसी तरह चलता रहा. गणतंत्र दिवस की परेड 8 किलोमीटर की दूरी तय की जाती है. यह राष्ट्रपति भवन से शुरू होकर लाल किले पर जाकर खत्म होती है.
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